ये गलतियां महागठबंधन पर पड़ी भारी: एनडीए ने मारी फिर बाजी, तेजस्वी की उम्मीदों को लगा बड़ा झटका

चुनाव के शुरुआती रुझानों ने साफ कर दिया है कि एनडीए को ऐतिहासिक जनादेश मिला है, जबकि महागठबंधन गंभीर रणनीतिक गलतियों के कारण पिछड़ गया। कांग्रेस के ‘वोट चोरी’ मुद्दे से लेकर अव्यावहारिक वादों और नकारात्मक प्रचार तक, कई फैसलों ने विपक्ष की संभावनाओं को कमजोर किया।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 14 November 2025, 3:24 PM IST
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Patna: बिहार विधानसभा चुनाव के अब तक के रुझानों ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि राज्य में एनडीए को भारी जनादेश मिल रहा है। एनडीए रुझानों में आराम से बहुमत पार कर चुका है, जबकि महागठबंधन बेहद पीछे रह गया है। इस चुनाव को महागठबंधन ने बड़े दांव के साथ लड़ा था, तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरा बनाकर कांग्रेस और अन्य सहयोगियों ने सत्ता वापसी की उम्मीद लगाई थी। लेकिन शुरुआती रुझानों ने विपक्ष के सारे दावों और तैयारियों को ध्वस्त कर दिया।

कांग्रेस की रणनीति उलटी पड़ी

कांग्रेस ने इस बार पूरे चुनाव प्रचार के दौरान “वोट चोरी” का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। पहले चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस और एनडीए पर लगाए गए आरोप जनता को अप्रासंगिक लगे। सबसे बड़ा नुकसान तब हुआ जब दरभंगा में “वोट यात्रा” के मंच से प्रधानमंत्री की मां के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी हुई। इस बयान का फायदा भाजपा ने तुरंत उठाया और कांग्रेस पर तीखे हमले किए।

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SIR विवाद-शोर ज्यादा, असर कम

महागठबंधन ने वोटर लिस्ट संशोधन यानी SIR को भी अपने चुनाव अभियान का केंद्र बनाया। विपक्ष ने आरोप लगाया कि मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई है। लेकिन मामला कोर्ट में जाने के बाद यह विवाद धीमा पड़ गया। जनता को यह मुद्दा तकनीकी और उलझा हुआ लगा, जिसका कोई तात्कालिक प्रभाव उन्हें नहीं दिखा।

अवास्तविक वादों ने तेजस्वी की विश्वसनीयता घटाई

तेजस्वी यादव ने इस चुनाव में कई ऐसे वादे किए जिन्हें पूरा करना आर्थिक रूप से बेहद कठिन या लगभग असंभव माना जा रहा था।
● हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी
● जीविका दीदी को 3,000 की जगह 10,000 रुपये
● बिहार को रोजगार का मॉडल राज्य बनाने के त्वरित दावे
ऐसे वादों को जनता ने अविश्वसनीय माना। दूसरी ओर, एनडीए ने नीतीश कुमार की 20 वर्षों की योजनाओं और भरोसे को आधार बनाया। जनता ने स्थिरता और यथार्थवादी नीतियों को प्राथमिकता देते हुए अव्यावहारिक वादों को अनदेखा कर दिया।

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नकारात्मक चुनावी अभियान का उल्टा असर

पूरा चुनाव अभियान महागठबंधन की ओर से एनडीए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कड़े और आक्रामक हमलों से भरा रहा। प्रधानमंत्री को “भ्रष्टाचार का भीष्म पितामह” कहना बिहार के पारंपरिक राजनीतिक माहौल में जनता को पसंद नहीं आया। विपक्ष ने सकारात्मक एजेंडा और विकास की रणनीति पेश करने के बजाय नकारात्मकतापूर्ण संदेश दिए, जिससे मतदाताओं का भरोसा कमजोर हुआ।

तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाना-भारी चूक

तेजस्वी यादव ने पूरे चुनाव में अपनी युवा छवि और रोजगार के मुद्दे को केंद्र में रखा। लेकिन सत्ताधारी दल ने “जंगल राज” के दौर को फिर से जनता के सामने याद दिलाया-लालू यादव के शासनकाल की कमियां बार-बार दोहराई गईं। तेजस्वी के सभी प्रयासों के बावजूद वे अपने ऊपर लगे इस बोझ को पूरी तरह उतार नहीं सके।

Location : 
  • Patna

Published : 
  • 14 November 2025, 3:24 PM IST