

जब कोई राजनीतिक नेता “100% सबूत” की बात करता है, तो यह सामान्य बयान नहीं होता खासकर तब, जब वह भारत के चुनाव आयोग को खुली चुनौती दे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का ताज़ा हमला सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को लेकर उठे संविधान बनाम सिस्टम के नए संघर्ष का संकेत हो सकता है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी (सोर्स इंटरनेट)
Patna: जब कोई राजनीतिक नेता “100% सबूत” की बात करता है, तो यह सामान्य बयान नहीं होता खासकर तब, जब वह भारत के चुनाव आयोग को खुली चुनौती दे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का ताज़ा हमला सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को लेकर उठे संविधान बनाम सिस्टम के नए संघर्ष का संकेत हो सकता है।
सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी ने संसद भवन परिसर में जो आरोप लगाए हैं, वो सिर्फ “मतदाता सूची में गड़बड़ी” भर नहीं हैं बल्कि इससे ‘इलेक्शन इंजीनियरिंग’ की एक सुव्यवस्थित मशीनरी की आहट मिलती है। राहुल ने साफ कहा कि उन्होंने कर्नाटक की सिर्फ एक लोकसभा सीट को स्कैन किया और वहां हजारों "नए वोटर" एक ही उम्र वर्ग (45-65 साल) में जोड़े गए पाए गए। क्या यह महज़ संयोग है?
कांग्रेस का दावा है कि यह ‘वोट बैंक का साइंटिफिक एडजस्टमेंट’ है जिसमें पहले विपक्ष के वोटर को "डिलीट" किया जाता है और फिर "विकृत आंकड़ों" के आधार पर नए वोटर जोड़े जाते हैं। राहुल गांधी का इशारा यही कहता है कि यह कोई तकनीकी चूक नहीं, बल्कि एक "ऑपरेशन वोट-शिफ्ट" है, जिसे उन्होंने जल्द ही "डॉक्यूमेंटेड" रूप में सामने लाने की बात कही है।
राहुल गांधी की रणनीति में सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने जानबूझकर केवल एक सीट की जांच की और वहीं से शुरुआत की। यह एक राजनीतिक संकेत हो सकता है कि कांग्रेस आने वाले हफ्तों में सैंपल एनालिसिस से एक राष्ट्रव्यापी ‘डेटा पेटर्न’ सामने लाने की तैयारी में है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह 2024 लोकसभा के बाद भारत के चुनावी तंत्र पर सबसे बड़ा सवाल बन सकता है — क्या तकनीक और डेटा का प्रयोग पारदर्शिता के लिए हो रहा है या सत्ता बनाए रखने के लिए?
राहुल गांधी के शब्द – “अगर चुनाव आयोग यह सोचता है कि वह बच जाएगा, तो यह उसकी भूल है” – पहली बार ऐसा नहीं है जब किसी नेता ने EC को घेरा हो, लेकिन यह सीधा एलान-ए-जंग जरूर लगता है। यह बयान संवैधानिक संस्थाओं और विपक्ष के बीच गहराते अविश्वास की पुष्टि भी करता है।
बिहार में चल रहा Special Intensive Revision (SIR) भी अब शक के घेरे में है। कांग्रेस का आरोप है कि इस प्रक्रिया के ज़रिए लाखों वोटरों को "पते पर न मिलने" के बहाने सूची से हटाया जा रहा है, और यह सब विधानसभा चुनाव से पहले जानबूझकर किया गया खेल है।
राहुल गांधी का यह भी दावा है कि “भारत में चुनाव चुराए जा रहे हैं”, यह बयान यूं ही नहीं आया। पिछले कुछ वर्षों में वोटर लिस्ट मैनेजमेंट, वोटर डिलीशन, डेटा फॉर्मिंग, ऐप्स के माध्यम से प्रभाव जैसी तमाम बातें उठती रही हैं। अब सवाल उठ रहा है – क्या भारतीय लोकतंत्र एक ‘डेटा-चालित वोट मैनेजमेंट युग’ में प्रवेश कर चुका है?