

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन को लेकर एक नया संवैधानिक बवंडर खड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जहां इस प्रक्रिया को तर्कसंगत और संवैधानिक रूप से अनिवार्य बताया, वहीं इसके समय पर गंभीर सवाल भी खड़े कर दिए है।
वोटर लिस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई
Patna: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन को लेकर एक नया संवैधानिक बवंडर खड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जहां इस प्रक्रिया को तर्कसंगत और संवैधानिक रूप से अनिवार्य बताया, वहीं इसके समय पर गंभीर सवाल भी खड़े कर दिए है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वोटर वेरिफिकेशन की यह कवायद संविधान के दायरे में है और व्यावहारिक भी। लेकिन यह कार्य बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले ही क्यों शुरू हुआ? कोर्ट ने इस पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि इसे पहले शुरू किया जाना चाहिए था ताकि मतदाताओं को मतदान के अधिकार से वंचित न होना पड़े।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकीलों ने इस प्रक्रिया को मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया है। साथ ही वकील कपिल सिब्बल ने तीखा सवाल किया है। उन्होंने कहा है कि, "चुनाव आयोग यह कैसे तय कर सकता है कि कौन नागरिक है और कौन नहीं? यह जिम्मेदारी उनकी नहीं, राज्य की है।"
तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, राजद के मनोज झा, एनसीपी की सुप्रिया सुले, शिवसेना (UBT) के अरविंद सावंत, CPI और JMM समेत कई दलों के नेताओं ने इस प्रक्रिया को चुनौती दी है। इन नेताओं का तर्क है कि "यह कवायद वोटर डेटाबेस से खास तबके को बाहर निकालने की एक साजिश हो सकती है।"
ECI का कहना है कि यह केवल वेरिफिकेशन प्रक्रिया है, जिसमें अंतिम सूची जारी होने से पहले सुप्रीम कोर्ट भी नजर डाल सकती है। लेकिन कोर्ट इस बात पर अडिग है कि अगर पहले से वोटर लिस्ट में मौजूद लोगों को फिर से प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, तो कहीं न कहीं उनके अधिकारों का हनन हो सकता है।