बिहार मतदाता सूची संशोधन: चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल, SC बोला- साबित करें आयोग गलत कर रहा

सुप्रीम कोर्ट में बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) पर महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। इस दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि उन्हें सभी याचिकाओं की कॉपी नहीं मिली है, जिससे पूरी तरह से पक्ष रखना मुश्किल हो रहा है। वहीं, याचिकाकर्ता के वकील ने आयोग की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों को मान्यता नहीं दी जा रही है, जबकि इन्हें पहचान के सबसे विश्वसनीय दस्तावेज माना जाता है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 10 July 2025, 1:59 PM IST
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New Delhi: सुप्रीम कोर्ट में बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) पर 10 जुलाई 2025 को सुनवाई शुरू हुई। चुनाव आयोग के वकील ने कोर्ट में कहा कि उन्हें अभी तक सभी याचिकाओं की कॉपी नहीं मिली है। जिससे उनकी तरफ से पक्ष स्पष्ट रूप से रखा जाना मुश्किल हो रहा है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, याचिकाकर्ता के वकील, वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि वोटर लिस्ट रिवीजन का प्रावधान कानून में मौजूद है, और यह प्रक्रिया संक्षिप्त रूप में या पूरी लिस्ट को नए सिरे से तैयार कर के भी हो सकती है। उन्होंने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा चुनाव आयोग ने एक नया शब्द गढ़ा है स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन'। आयोग का कहना है कि 2003 में यह किया गया था, लेकिन तब मतदाताओं की संख्या काफी कम थी। अब बिहार में 7 करोड़ से ज़्यादा वोटर हैं और पूरी प्रक्रिया तेजी से अंजाम दी जा रही है। वकील ने कहा कि चुनाव आयोग को यह अधिकार तो है, लेकिन प्रक्रिया को कानून सम्मत, पारदर्शी और व्यावहारिक तरीके से चलाना चाहिए, खासकर जब करोड़ों मतदाता सूची में शामिल हों।

चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल

याचिकाकर्ता के वकील ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग 11 दस्तावेजों को वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए स्वीकार कर रहा है, लेकिन आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे महत्वपूर्ण पहचान पत्रों को इस प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है। उन्होंने कहा आधार कार्ड और वोटर आईडी सबसे विश्वसनीय पहचान के दस्तावेज हैं तो इन्हें बाहर रखना तर्कसंगत नहीं है। इससे पूरी प्रक्रिया मनमानी और भेदभावपूर्ण नजर आती है।

गृह-घर जाकर जांच की जरूरत पर बहस

वकील ने यह भी बताया कि अगर चुनाव आयोग जो प्रक्रिया चला रहा है, वह सघन पुनरीक्षण है, तो अधिकारियों को हर घर जाकर वोटर की जानकारी जुटानी चाहिए। उनका कहना था कि अगर यह सिर्फ कागजों पर नहीं, बल्कि असली सघन पुनरीक्षण है तो घर-घर जाकर जांच जरूरी है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा।

जस्टिस धुलिया का बयान

सुनवाई के दौरान जस्टिस धुलिया ने कहा अगर 2003 में SIR हुआ था और आयोग के पास डेटा पहले से मौजूद है, तो शायद घर-घर जाकर जानकारी जुटाना जरूरी नहीं हो। यह दलील आयोग की तरफ से दी जा सकती है। याचिकाकर्ता के वकील ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा अगर कोई व्यक्ति पिछले 10 साल से वोटर है, तो अब उसे अपनी नागरिकता या पहचान फिर से साबित करने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है?

जस्टिस जोयमाल्या बागची ने दी आयोग के अधिकारों की स्पष्टता

जस्टिस जोयमाल्या बागची ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि स्पेशल रिवीजन का प्रावधान रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट, 1950 की धारा 21(3) में है। उन्होंने कहा, धारा 21(3) के तहत विशेष पुनरीक्षण की अनुमति है और कानून में साफ तौर पर लिखा है कि इस प्रक्रिया को कैसे अंजाम देना है, यह तय करने का अधिकार चुनाव आयोग के पास है।

याचिकाकर्ता के वकील की गंभीर आपत्तियां

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने गंभीर आपत्तियां उठाईं। उन्होंने कहा, "आधार कार्ड को पहले वोटर लिस्ट में पहचान के दस्तावेज के रूप में माना जाता था, लेकिन अब इसे हटा दिया गया है। यह पूरी तरह से मनमाना फैसला है।" इसके साथ ही उन्होंने चुनाव प्रक्रिया में सुधार की जरूरत भी जताई और कहा कि बिहार में इस वक्त लगभग 7.5 करोड़ मतदाता हैं और अब इस प्रक्रिया के जरिए बड़े पैमाने पर लोगों के नाम हटाने की कोशिश की जा रही है, जो लोकतंत्र के मूलभूत अधिकारों पर असर डाल सकता है।

कोर्ट ने वकील से संक्षिप्त तरीके से मुद्दा रखने को कहा

सुनवाई के दौरान एक समय पर माहौल तीखा हो गया, जब याचिकाकर्ता के वकील ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल उठाए। इस पर जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस धुलिया ने वकील से संक्षिप्त में बात रखने को कहा। जस्टिस धुलिया ने टिप्पणी की हम हाईवे पर चल रहे हैं, आप गलियों में मत घुसिए। मुद्दे की बात कीजिए।

चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी का बयान

चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट में कहा वोट देने का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को है। आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, इसलिए इसे मान्य नहीं किया गया। इस पर जस्टिस धुलिया ने कटाक्ष करते हुए कहा आपको यह प्रक्रिया पहले शुरू कर देनी चाहिए थी।

वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल का तर्क

कपिल सिब्बल ने अदालत में दलील दी कि आयोग मतदाताओं पर नागरिकता साबित करने का बोझ डाल रहा है। उन्होंने कहा, "आयोग को यह बताना चाहिए कि वह किस आधार पर किसी को भारतीय नागरिक नहीं मानता। मतदाता पहचान पत्र, बर्थ सर्टिफिकेट और मनरेगा कार्ड तक को नहीं स्वीकार किया जा रहा है।"

अभिषेक मनु सिंघवी का तर्क

अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि 2003 में जब ऐसा व्यापक पुनरीक्षण हुआ था, तब चुनाव में काफी समय बचा था, लेकिन इस बार चुनाव नज़दीक हैं, जिससे लाखों लोगों को सूची से हटाने की आशंका है।

चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट के सवाल

चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट को बताया कि मतदान का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को है, और यह जरूरी है कि मतदाता की पहचान की जांच हो। उन्होंने कहा आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। आयोग 11 प्रकार के दस्तावेज स्वीकार कर रहा है।

कोर्ट का अंत में सवाल

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को समय से पहले क्यों शुरू नहीं किया। जस्टिस धुलिया ने कहा अगर एक बार सूची बन गई तो फिर कोर्ट उसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा, इसलिए सावधानी जरूरी है।

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