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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 64.66% रिकॉर्ड वोटिंग दर्ज हुई। इतिहास बताता है कि 60% से अधिक मतदान वाले चुनावों में सियासी समीकरण बदलते रहे हैं। इस बार भी इस भारी मतदान ने राजनीतिक हलकों में नई चर्चा और भविष्य के संकेत दे दिए हैं।
जनता सक्रिय हुई, तब सियासत ने बदली दिशा
Patna: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण ने इतिहास रच दिया है। गुरुवार को राज्य की 121 विधानसभा सीटों पर लगभग 3.75 करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया और मतदान दर रिकॉर्ड 64.66 प्रतिशत दर्ज की गई। यह आंकड़ा बिहार के चुनावी इतिहास में सबसे ऊंचा है, जिसने पिछले सभी रिकॉर्ड्स को पीछे छोड़ दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में जब-जब वोटिंग का प्रतिशत 60% से अधिक रहा है, तब सत्ता समीकरण में बदलाव देखने को मिला है। इस बार भी पहली चरण की इतनी भारी मतदान दर ने राजनीतिक हलकों में नई चर्चा शुरू कर दी है।
चुनाव आयोग ने इस चरण में सख्त निगरानी के तहत मतदान कराया। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार और चुनाव आयुक्तों डॉ. सुखबीर सिंह संधू व डॉ. विवेक जोशी ने सभी 45,341 मतदान केंद्रों पर 100 प्रतिशत लाइव वेबकास्टिंग के जरिए मतदान प्रक्रिया की समीक्षा की। आयोग के नियंत्रण कक्ष से सीधे जिलाधिकारियों और प्रेक्षकों से संवाद कर स्थिति की निगरानी की गई। इस तरह की व्यापक निगरानी और पारदर्शिता ने चुनाव को शांतिपूर्ण और उत्सवपूर्ण माहौल में संपन्न कराया।
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बिहार का यह चुनाव चर्चा में रहा। इंटरनेशनल इलेक्शन विजिटर्स प्रोग्राम (IEVP) के तहत 6 देशों के 16 प्रतिनिधियों ने मतदान प्रक्रिया का निरीक्षण किया। दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, बेल्जियम और कोलंबिया के पर्यवेक्षकों ने बिहार की चुनाव व्यवस्था की सराहना की और इसे संगठित, पारदर्शी और सहभागी लोकतंत्र का उत्कृष्ट उदाहरण बताया।
मतदान केंद्रों पर मतदाताओं के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए इस बार कई नई पहल की गईं। ईवीएम पर उम्मीदवारों की रंगीन तस्वीरें, मतदान केंद्रों पर मोबाइल जमा सुविधा और नई डिजाइन की गई वोटर सूचना पर्चियां (VIS) दी गईं। दिव्यांग मतदाताओं के लिए व्हीलचेयर, ई-रिक्शा सेवा और स्वयंसेवी सहायकों की व्यवस्था भी की गई, ताकि कोई भी नागरिक अपने मताधिकार से वंचित न रहे।
60% से अधिक मतदान वाले चुनाव
इतिहास के पन्नों को देखें तो बिहार में जब-जब मतदान का प्रतिशत 60% से अधिक हुआ है, तब राजनीतिक बदलाव देखने को मिले हैं।
1990 में 62.04% मतदान- लालू प्रसाद यादव पहली बार सत्ता में आए।
1995 में 61.79% मतदान- लालू यादव ने सत्ता में वापसी की।
2000 में 62.57% मतदान- नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच कांटे की टक्कर हुई और अंततः राबड़ी देवी की सरकार बनी।
यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि बिहार की जनता जब बड़ी संख्या में मतदान करती है, तो राजनीतिक समीकरण बदलते हैं। इस बार पहले चरण की भारी वोटिंग ने सियासत में हलचल बढ़ा दी है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ने इसे अपने पक्ष में देखा। एनडीए का कहना है कि इतनी बड़ी मतदान दर विकास और स्थिरता पर जनता के भरोसे का प्रमाण है, जबकि महागठबंधन इसे बदलाव की ओर संकेत मान रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पहले चरण में हुई इतनी बड़ी मतदान दर भविष्य के चरणों में और भी उत्साह बढ़ा सकती है। बिहार की जनता अब अपने मत से तय करेगी कि वह विकास और स्थिरता की दिशा में विश्वास जताएगी या फिर बदलाव की नई लहर का समर्थन करेगी।
इतिहास और आंकड़ों को देखें तो यह साफ है कि बिहार में जब-जब वोटिंग 60% से ऊपर रही है, तब राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव देखने को मिला है। इस बार भी पहला चरण यह संकेत दे चुका है कि लोकतंत्र की धुरी पर खड़े बिहार के मतदाता इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। आने वाले चरणों में यह देखना रोचक होगा कि यह रिकॉर्ड वोटिंग किसके पक्ष में जाती है और क्या बिहार फिर से अपने राजनीतिक इतिहास में नया अध्याय जोड़ता है।