DN Exclusive: झील के नीचे दफ़न एक पूरा शहर और संस्कृति, वो कहानी जिसे बेहद कम लोग जानते हैं!

उत्तराखंड के टिहरी डैम ने देश को बिजली और सिंचाई दी, लेकिन इसके बदले एक पूरा गाँव पानी में डूब गया। आज भी विस्थापित परिवार अपनी जड़ों से बिछड़ने की पीड़ा और पुनर्वास की अधूरी कहानियों को ढो रहे हैं।

Post Published By: Tanya Chand
Updated : 4 October 2025, 6:21 PM IST
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Tehri: उत्तराखंड का टिहरी डैम एशिया के सबसे बड़े जलविद्युत परियोजनाओं में से एक है। भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर बने इस डैम ने देश को 2400 मेगावाट से ज्यादा बिजली देने का वादा किया। लेकिन इस वादे के नीचे कई गाँवों की ज़मीन, घर और सदियों की यादें पानी में समा गईं। खासकर टिहरी शहर और उसके आसपास के गाँव पूरी तरह डूब गए।

एक लेख में कहा गया था कि टिहरी डैम से 125 गांव प्रभावित हुए, 37 पूरी तरह डूबे और 88 आंशिक रूप से प्रभावित है। साथ ही लेख में यह भी लिखा है कि पुराने टिहरी शहर के लगभग 5,291 परिवारों को पुनर्वास करना पड़ा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, लगभग 40 गांव डैम तट पर आज भी समस्याओं का सामना कर रहे हैं और कुछ को अभी तक पुनर्वास नहीं मिला। वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि लगभग 35 गांव पूरी तरह डूबे और पुराने टिहरी शहर भी पानी में गया।

विस्थापन की त्रासदी

डैम बनने से हजारों परिवारों को अपना पैतृक गाँव छोड़ना पड़ा। खेत-खलिहान, मंदिर, घर और बाजार सबकुछ पानी में समा गए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 1 लाख लोग विस्थापित हुए, जबकि स्थानीय संगठनों का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा है। टिहरी का पुराना बाजार, ऐतिहासिक किले और कई सांस्कृतिक स्थल अब केवल स्मृति का हिस्सा हैं।

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अधूरा पुनर्वास

सरकार ने विस्थापित परिवारों को नई टिहरी और ऋषिकेश, हरिद्वार जैसे शहरों में बसाने का दावा किया, लेकिन अधिकांश परिवारों को आज भी उचित मुआवजा और जमीन नहीं मिली। बहुत से लोगों को छोटे-छोटे प्लॉट मिले, जिन पर खेती संभव नहीं थी। रोज़गार और शिक्षा की कमी ने विस्थापितों को आर्थिक संकट में धकेल दिया।

उत्तराखंड का टिहरी डैम

भावनात्मक जड़ों का खोना

जो गाँव डूब गए, वहाँ के लोग आज भी ‘अपने गाँव की मिट्टी’ की याद करते हैं। टिहरी बाँध बनने से धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का भी अस्तित्व समाप्त हो गया। स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि गाँव का हर मंदिर, हर खेत एक कहानी कहता था, लेकिन अब वह सब पानी के नीचे छिपा है।

विरोध और आंदोलन

डैम निर्माण के खिलाफ 1970 और 1980 के दशक में बड़े आंदोलन हुए। सुन्दरलाल बहुगुणा जैसे पर्यावरणविदों ने वर्षों तक ‘टिहरी बचाओ आंदोलन’ चलाया। उनका कहना था कि यह डैम न केवल गाँवों को डुबाएगा बल्कि भविष्य में भूकंपीय क्षेत्र में होने के कारण बड़ी आपदा भी ला सकता है।

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आज की स्थिति

आज टिहरी डैम देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में अहम है, लेकिन विस्थापितों की पीड़ा अब भी जस की तस है। नई पीढ़ी रोजगार और शिक्षा के लिए भटक रही है। डूबे हुए गाँव अब केवल कहानियों और स्मृतियों में हैं।

Location : 
  • Tehri

Published : 
  • 4 October 2025, 6:21 PM IST