Rudraprayag News: सारी-देवरिया ताल पैदल ट्रैक पर वृहद सफाई अभियान, पेड़ों पर बांधे रिंगाल के डस्टबिन

रुद्रप्रयाग के देवरिया ताल प्रवेश द्वार से सफाई अभियान शुरू किया गया। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

Post Published By: Jay Chauhan
Updated : 19 June 2025, 5:20 PM IST
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रुद्रप्रयाग: काफल फेस्टिवल के चौथे दिन सारी-देवरिया ताल पैदल ट्रैक पर वृहद सफाई अभियान चलाया गया। इसमें रास्ते की सफाई के साथ पेड़ों पर रिंगाल के डस्टबिन बांधे गये जिसमें स्वयं सेवकों ने पूरे उत्साह के साथ बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार इस सफाई अभियान में तामीर फाउंडेशन सहित श्रीनगर, पौड़ी, चमोली, रूद्रप्रयाग से आए स्वयं सेवक व युवक मंगल दल सारी के सदस्यों ने हिस्सा लिया। देवरिया ताल प्रवेश द्वार से सफाई अभियान शुरू किया गया। ट्रैक के किनारे पेड़ों पर रिंगाल के डस्टबिन बांधे गए। इसके साथ ही ट्रैक से प्लास्टिक कचरा एकत्र किया गया। इस दौरान टूरिस्टों ने इस पहल को सराहनीय बताया। पूरे ट्रेक पर करीब सौ डस्टबिन स्थापित कर स्वच्छता का संदेश दिया गया।

देवरिया ताल प्रवेश द्वार से सफाई अभियान में भाग लेते सदस्य

टीम प्रभारी सलिल डोभाल ने कहा कि 20 जून को सारी गाँव में फेस्टिवल का मुख्य कार्यक्रम होगा। जिसमें योगाभ्यास, कवि सम्मेलन, वन्यजीव, वनाग्नि परिचर्चा एवं लोक संगीत की प्रस्तुति के साथ ही फेस्टिवल का समापन होगा। वहीं दूसरी तरफ फेस्टिवल की तैयारी में आरसा, रोटना, पकोड़ी, मारछा के लड्डू व जूट बैग, बुरांस का जूस, अचार आदि उत्पाद की प्रदर्शनी हेतु स्वंय सहायता की महिलाएं तैयारी में जुटी हुई हैं।

पेड़ों पर बांधते रिंगाल के डस्टबिन

अभियान में अध्यक्ष युवक मंगल दल सारी धर्मेन्द्र भट्ट, हर्ष मोहन नेगी, हनुमंत नेगी, आरती नेगी, अदिति, बलवीर राणा, सहित तामीर फाउंडेशन के सौरभ व उनकी टीम, पांडवाज ग्रुप के कुणाल डोभाल, ईशान, सौरभ त्रिवेदी, प्रियंका, अनन्या, रंजना आदि सहित करीब 35-40 लोग शामिल थे।

फेस्टिवल की तैयारी में जुटी महिलाएं

बता दें कि उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से 49 किमी की दूरी पर स्थित देवरिया ताल (Deoria Tal Lake) एक सुंदर पर्यटन स्थल (Tourist Spot) है। यहां हर साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) पर्व पर देवरिया महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

देवरिया ताल का अपना धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि इस झील में देवता स्नान किया करते थे। झील को पुराणों में इंद्र सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि पांडवों के वनवास के दौरान उनसे सवाल पूछने वाले यक्ष इसी झील में रहते हैं। यक्ष यहां प्राकृतिक खजानों और वृक्षों की जड़ों की रक्षा करते हैं।

एक अन्य मान्यता के अनुसार यहां पर बाणासुर की पोती ऊषा और भगवान श्रीकृष्ण का पोता अनिरूद्ध जल क्रीड़ा करने के लिए आया करते थे। लोगों की आस्था है कि प्राचीन समय में इस स्थान पर सच्चे मन से प्रार्थना करने वाले को ही नाग देवता दर्शन देते थे।

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