

सरकार पर आरोप हैं कि वह अपनी छवि सुधारने के लिए करोड़ों विज्ञापनों पर खर्च कर रही है। जबकि राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य और आपदा राहत कार्यों की स्थिति बेहद खराब है। धामी की सरकार को लेकर जनता और विपक्ष ने गंभीर सवाल उठाए हैं।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी
Nainital: राजनीतिक जगत में अक्सर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है, लेकिन जब बात सार्वजनिक धन के खर्च की हो, तो इसे लेकर गंभीर सवाल उठते हैं। उत्तराखंड राज्य की सरकार पर हाल ही में यह आरोप लगाया गया कि वह अपने प्रचार पर अविश्वसनीय रूप से ज्यादा खर्च कर रही है। इस विषय पर एक रिपोर्ट में यह सामने आया कि राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल में विज्ञापन पर खर्च की राशि काफी बढ़ गई है, जबकि राज्य पर पहले से ही 73,000 करोड़ रुपये का कर्ज है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए विज्ञापन अब एक महत्वपूर्ण राजनीतिक औजार बन चुका है। सरकार ने 2024-25 में विज्ञापनों पर खर्च बढ़ाकर इसे 227.35 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया है, जबकि 2017 से पहले यह राशि महज 77.71 करोड़ रुपये थी। विज्ञापन का यह खर्च हर दिन 55 लाख रुपये से भी ज्यादा हो गया है। हालांकि यह खर्च राज्य के विकास में कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं कर रहा है, बल्कि यह सिर्फ मुख्यमंत्री और उनकी सरकार की छवि को चमकाने के लिए किया जा रहा है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी
यह तथ्य बहुत ही चौंकाने वाला है कि इस विशाल प्रचार बजट में से ज्यादातर पैसा राज्य के बाहर के चैनलों और मीडिया प्लेटफॉर्मों पर खर्च किया गया है, जिनका उत्तराखंड से कोई सीधा संबंध नहीं है। उदाहरण के लिए, नगालैंड, ओडिशा और असम स्थित चैनल्स पर भी विज्ञापन दिए गए हैं, जबकि इन राज्यों का उत्तराखंड से कोई ताल्लुक नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब राज्य को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है, तो इन विज्ञापनों पर इतने पैसे क्यों खर्च किए जा रहे हैं?
एक और हैरान करने वाली बात यह है कि अगस्त माह में जब राज्य के अधिकांश गांव बाढ़ की चपेट में थे, तब भी राज्य सरकार द्वारा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री धामी के विज्ञापनों से राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र भरे हुए थे। इन विज्ञापनों में राज्य को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में प्रचारित किया जा रहा था, जबकि लाखों लोग आपदा की वजह से संकट में थे। यह स्थिति राज्य के नागरिकों के लिए एक कटु विडंबना साबित हुई है, क्योंकि सरकार का प्राथमिक ध्यान राज्य के लोगों के राहत और पुनर्वास पर नहीं, बल्कि छवि निर्माण पर था।
उत्तराखंड में शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार का एक और सनसनीखेज मामला सामने आया है। 17 सितंबर को उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षा के पेपर लीक होने की खबर ने राज्य के शिक्षा प्रणाली को शर्मसार कर दिया। हरिद्वार के एक परीक्षा केंद्र से खालिद मलिक नाम के एक उम्मीदवार ने पेपर लीक किया था, जिससे पूरे परीक्षा केंद्र में हलचल मच गई। यह घटना उस समय हुई जब मुख्यमंत्री धामी और उनकी सरकार पहले से ही विवादों में थे।
मुख्यमंत्री धामी ने इस पेपर लीक की घटना को ‘नकल जिहाद’ का नाम दिया। यह शब्द राजनीतिक रूप से संवेदनशील और विवादास्पद था, क्योंकि इससे पहले भी उन्होंने 'लव जिहाद' और 'जमीन जिहाद' जैसे विवादास्पद शब्दों का इस्तेमाल किया था। इस मामले में एक और अहम पहलू यह है कि भाजपा के पुराने वफादार और 2021 के पेपर लीक के मास्टरमाइंड हाकम सिंह को सलाखों के पीछे डाला गया है, जो पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के करीबी थे।
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परीक्षा घोटाले के खिलाफ उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें हजारों छात्र बेरोजगारी की समस्या के खिलाफ सड़कों पर उतरे। देहरादून के परेड ग्राउंड में बेरोजगार संघ के छात्र नेता बॉबी पंवार के नेतृत्व में सैकड़ों युवाओं ने प्रदर्शन किया। छात्रों ने मुख्यमंत्री से सीबीआई जांच की मांग की, लेकिन इसके साथ ही यह भी सवाल उठाया कि क्या सीबीआई जांच से किसी घोटाले का सुलझना संभव होगा, क्योंकि अतीत में कई मामलों में सीबीआई जांच के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।
उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवा का हाल भी कुछ खास नहीं है। सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) पर लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद, जनता को बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। हाल ही में बागेश्वर जिले के सैकड़ों गांववालों ने सीएचसी में सुविधाओं की कमी के खिलाफ बेमियादी अनशन शुरू कर दिया। इसके अलावा, गर्भवती महिलाओं को बिना जांच के लौटा दिया जा रहा है और गंभीर बीमारियों से पीड़ित बच्चों को दूर-दराज के अस्पतालों में भेजा जा रहा है।
इस घटना ने राज्य सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर कमी को उजागर किया। एक गर्भवती महिला को इलाज के अभाव में सड़क पर बच्चे को जन्म देना पड़ा। इस घटना के बाद स्थानीय लोगों का गुस्सा फूटा, और उन्होंने मुख्यमंत्री से आश्वासन लिया कि जल्द ही स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर किया जाएगा।
स्वास्थ्य सेवा के खस्ताहाल होने की एक और वजह है ‘स्वास्थ्य माफिया’। उत्तरकाशी के पत्रकार राजीव प्रताप की हत्या ने राज्य के स्वास्थ्य माफियाओं की साजिश को उजागर किया। राजीव प्रताप उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं के घोटाले पर काम कर रहे थे, जिसमें अस्पतालों के उपकरणों और दवाओं की खरीद में लाखों रुपये की गड़बड़ी शामिल थी। उनकी हत्या के बाद यह आशंका जताई जा रही है कि उन्हें माफियाओं ने निशाना बनाया।