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नैनीताल अपने 184 साल पूरे कर रहा है। झीलों, पहाड़ों और देवभूमि की पौराणिक आस्थाओं से भरा यह शहर प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहर का अनोखा संगम है। ‘त्रि-ऋषि सरोवर’ से लेकर शक्तिपीठ तक और अंग्रेजों के दौर से आधुनिक पर्यटन हब बनने तक नैनीताल हर रूप में अद्वितीय है। यह केवल एक हिल स्टेशन नहीं, बल्कि कुमाऊं घाटी की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत चित्र है।


नैनीताल का नाम ही जैसे ठंडी हवा, हरी-भरी वादियों और झील की चुप्पी की याद दिलाता है। यहां कदम रखते ही शहर की हल्की नमी, पहाड़ों की ठंडक और झील की शांत लहरों का एहसास मन को सुकून देता है। यह केवल एक हिल स्टेशन नहीं, बल्कि कुमाऊं घाटी की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत चित्र है। लोग दूर-दूर से आते हैं ताकि नैनी झील की शांति, घने जंगलों और साफ हवा का आनंद ले सकें और अपने मन को रोज़मर्रा की हलचल से कुछ पल के लिए दूर रख सकें।



दरअसल, कहानी यह है कि प्राचीन समय में इस जगह को ‘त्रि-ऋषि सरोवर’ कहा जाता था। यहां ऋषि अत्री, पुलस्थ्य और पुलाहा ने गहरी तपस्या की। माना जाता है कि जल की कमी को दूर करने के लिए उन्होंने तिब्बत की पवित्र मानसरोवर झील का जल इस स्थल पर लाया। आज भी नैनी झील में वही जल मौजूद है और इसे पवित्र मानकर लोग स्नान करते हैं।



नैनीताल का औपचारिक जन्म 18 नवंबर 1841 को हुआ। 18 नवंबर 2025 तक यह शहर 184 साल और 11 महीने का हो चुका है। हर साल इस दिन नैनीताल अपने प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक वैभव का जश्न मनाता है। झील के किनारे लोग ताजगी महसूस करते हैं और हर मौसम में यहां का वातावरण विशेष उत्साह और शांति का अनुभव कराता है।



1839 में अंग्रेज व्यापारी पी. बैरन यहां पहुंचे और नैनीताल की प्राकृतिक सुंदरता देखकर मोहित हो गए। उन्होंने स्थानीय व्यापारी नूरसिंह से भूमि खरीदने की कोशिश की, जिसे नूरसिंह ने पहले मना कर दिया। बाद में नौकायन के दौरान दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कर राज़ी किया गया। 1842 में शहर में पहला कॉटेज ‘पिलग्रिम’ बना। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूरे क्षेत्र को व्यवस्थित नगर का रूप दिया।



नैनीताल '64 शक्तिपीठों' में से एक है। कहा जाता है कि देवी सती की बाईं आंख यहीं गिरी थी और नैना देवी को क्षेत्र की रक्षक माना जाता है। झील के उत्तरी किनारे स्थित मंदिर आज भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। इसी कारण पहले इस जगह का नाम ‘नैन-ताल’ पड़ा, जो बाद में नैनीताल बन गया।



1847 तक नैनीताल एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन बन गया। 3 अक्टूबर 1850 को नगर निगम की स्थापना हुई और 1862 में यह उत्तर पश्चिमी प्रांत का ग्रीष्मकालीन मुख्यालय बन गया। भव्य बंगले, मनोरंजन केंद्र और प्रशासनिक इकाइयां शहर की पहचान बन गईं। आज भी राजभवन और उच्च न्यायालय यहां स्थित हैं।



आज का नैनीताल सिर्फ पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिकता का संगम बन चुका है। घने जंगल, शांत झील और पौराणिक कथाएं इसे हर मौसम में पर्यटकों के लिए स्वर्ग जैसी जगह बनाती हैं। जन्मदिन के अवसर पर शहर अपने आप में उत्सव और सुकून का अनुभव कराता है, जैसे प्रकृति खुद अपने आगंतुकों को आमंत्रित कर रही हो।
