Kanwar 2025: किसी ने देवरानी, किसी ने बेटे तो किसी ने प्यार के खातिर उठाई कांवड़, पढ़ें 3 चमत्कारी कहानी

दिल्ली के उत्तम नगर की रहने वाली रेनू पिछले 25 वर्षों से हरिद्वार से जल ला रही हैं। रेनू बताती हैं, “मेरे देवर की शादी नहीं हो रही थी। तब मैंने मन्नत मांगी थी कि अगर शादी हो गई तो मैं हर साल कांवड़ लाऊंगी। मन्नत मांगने के 15 दिन के भीतर उसकी शादी हो गई।

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 18 July 2025, 7:37 AM IST
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Meerut News: सावन के इस पावन महीने में उत्तराखंड से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक के हाईवे 'बम भोले' और 'हर हर महादेव' के जयकारों से गूंज रहे हैं। पथरीले और कंटीले रास्तों पर नंगे पांव चल रहे श्रद्धालु अपनी पीठ पर भक्ति की कांवड़ लेकर आगे बढ़ रहे हैं। हर किसी के पास है एक मन्नत, एक कहानी और भोलेनाथ से जुड़ी एक आस्था जो उन्हें सैकड़ों किलोमीटर दूर से गंगाजल लाने के लिए प्रेरित कर रही है।

हर साल कांवड़ लाने वाली रेनू की कहानी

दिल्ली के उत्तम नगर की रहने वाली रेनू पिछले 25 वर्षों से हरिद्वार से जल ला रही हैं। रेनू बताती हैं, "मेरे देवर की शादी नहीं हो रही थी। तब मैंने मन्नत मांगी थी कि अगर शादी हो गई तो मैं हर साल कांवड़ लाऊंगी। मन्नत मांगने के 15 दिन के भीतर उसकी शादी हो गई। तब से मैंने ये कांवड यात्रा शुरू की।"

रेनू अब अकेली नहीं चलतीं- उनकी बेटी और आठ साल का पोता अनुज भी उनके साथ कांवड़ लाते हैं। बेटी ने भी अपनी प्रेम विवाह की मन्नत पूरी होने के बाद मां के साथ कांवड़ यात्रा शुरू की है।

बेटे की आवाज के लिए कांवड़ उठाई नर्स वंदना ने

वहीं, दूसरी ओर दिल्ली की एक नर्स वंदना अपने 10 वर्षीय बेटे के साथ कांवड़ यात्रा पर हैं। वंदना कहती हैं, "मेरा बेटा जब ढाई साल का था तो दूसरी मंजिल से गिर गया था। सिर और रीढ़ में चोट आई और बोलने की शक्ति चली गई। किसी ने कहा भोलेनाथ से मन्नत मांगो। मैंने कांवड़ बोली। आज मेरा बेटा बोल सकता है, स्कूल जाता है।" वंदना तीन वर्षों से लगातार कांवड़ ला रही हैं। उनकी आस्था अब परिवार की परंपरा बन गई है। उनका बेटा अब तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है और हर साल मां के साथ यात्रा करता है।

35 साल से तिरंगा लेकर जल ला रहे हैं मेरठ के महेश

मेरठ के डिमोला गांव के 55 वर्षीय महेश पिछले 35 सालों से साइकिल पर हरिद्वार से जल लाकर कांवड़ चढ़ा रहे हैं। उनकी साइकिल पर देश का तिरंगा और भोलेनाथ का ध्वज साथ-साथ लहराता है। महेश की कहानी भी किसी तपस्या से कम नहीं।

सिर्फ यात्रा नहीं, आस्था का उत्सव

इन भक्तों की कहानियां सिर्फ श्रद्धा नहीं, बल्कि मन की शक्ति, विश्वास और अपने ईश्वर से जुड़े रिश्ते का प्रमाण हैं। सावन का यह महीना इन लाखों श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उनकी ज़िंदगी की सबसे अहम साधना बन चुका है। शिवभक्तों की भीड़ बढ़ती जा रही है, और हाईवे उनकी भक्ति के रंग में रंगते जा रहे हैं। कहीं मां अपने बेटे के लिए जल ला रही है, कहीं दादी अपने पोते के साथ चल रही है, तो कहीं एक पिता अपनी टूटी उम्मीदों को फिर से जोड़कर साइकिल से निकल पड़ा है...बस एक ही विश्वास के साथ भोलेबाबा सुनते हैं।

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