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Sawan 2025: असोथर का मोटे महादेव मंदिर, जहां आज भी गूंजती हैं महाभारत काल की अनसुनी कहानियाँ

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद के हृदय में बसा असोथर कस्बा, सिर्फ एक भूगोलिक स्थान नहीं बल्कि इतिहास, रहस्य और आध्यात्म का मिलन स्थल है। इस पावन भूमि पर स्थित है "मोटे महादेव मंदिर", जहां मान्यता है कि महाभारत काल के अमर योद्धा, गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा आज भी तड़के प्रार्थना करने आते हैं।
Post Published By: Rohit Goyal
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Sawan 2025: असोथर का मोटे महादेव मंदिर, जहां आज भी गूंजती हैं महाभारत काल की अनसुनी कहानियाँ

Fatehpur: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद के हृदय में बसा असोथर कस्बा, सिर्फ एक भूगोलिक स्थान नहीं बल्कि इतिहास, रहस्य और आध्यात्म का मिलन स्थल है। इस पावन भूमि पर स्थित है “मोटे महादेव मंदिर”, जहां मान्यता है कि महाभारत काल के अमर योद्धा, गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा आज भी तड़के प्रार्थना करने आते हैं।

असोथर को लोक मान्यता में ‘अश्वत्थामा की नगरी’ कहा जाता है। महाभारत के अंतिम अध्याय के बाद से ही अश्वत्थामा अमरत्व के साथ इस धरती पर विचरण कर रहे हैं, और इस क्षेत्र के मोटे महादेव मंदिर को उन्होंने अपना आराध्य स्थल बनाया है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार यह मंदिर अपनी विशेष स्थापत्य कला और स्वयंभू शिवलिंग के कारण ‘छोटी काशी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस शिवलिंग की खास बात यह है कि यह ईशान कोण की दिशा में झुका हुआ है, जो वास्तु और आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से अत्यंत दुर्लभ माना जाता है।

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कहा जाता है कि सदियों पूर्व यहाँ एक घना जंगल और बड़ा श्मशान क्षेत्र था। एक चरवाहे की गाय प्रतिदिन एक टीले के ऊपर जाकर घंटों खड़ी रहती और उसके थनों से अपने आप दूध गिरने लगता।

चरवाहे ने जब इस घटना को गौर से देखा और गांव वालों को बताया, तो लोगों ने उस टीले को खोदा, जहां से स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ।

यहीं से इस पावन स्थल की महिमा का प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे श्रद्धालुओं ने यहां पूजा-अर्चना शुरू की।

मंदिर के वर्तमान प्रधान पुजारी आचार्य श्री राजू शुक्ल बताते हैं कि लगभग 200 वर्ष पूर्व जयपुर के राजा भगवान दास के पुत्र राजा मान सिंह, जो अपने राज्य के महान योद्धा और धर्म संरक्षक माने जाते थे, अस्वस्थ हो गए थे।

उनके दरबार में कार्यरत जोरावर महाराज के भाई इस मंदिर के पुजारी थे। उन्होंने मोटे महादेव मंदिर की पवित्र भभूति और जल लेकर राजा को दिया, जिससे उनका स्वास्थ्य पुनः ठीक हो गया।

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आभार स्वरूप राजा मान सिंह ने असोथर आकर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और इसे भव्य स्वरूप प्रदान किया।

आधुनिक दौर में भी जारी है सेवा और निर्माण कार्य

समय के साथ इस मंदिर की ख्याति और भी बढ़ती गई। जिले में पहली बार सांसद बने श्री अशोक पटेल ने मंदिर में संगमरमर का कार्य कराया और इसके सौंदर्य को बढ़ाया।

वर्तमान समय में असोथर कस्बा निवासी, समाजसेवी और मोटे महादेव के अनन्य भक्त शिव प्रकाश शुक्ला (शुक्ला टायर वाले) जी के द्वारा निरंतर मंदिर के जीर्णोद्धार, नवीनीकरण और धार्मिक आयोजन संपन्न कराए जाते हैं।

सावन के पवित्र महीने में हजारों श्रद्धालु यहाँ जलाभिषेक करने आते हैं। विशेष बात यह है कि इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से मुराद मांगता है, उसकी कामना अवश्य पूरी होती है।

सुबह तड़के मंदिर के प्रांगण में मंत्रोच्चार और घंटियों की गूंज, हवन की सुगंध और श्रद्धालुओं के मुख से निकली ‘हर हर महादेव’ की ध्वनि वातावरण को पूरी तरह आध्यात्मिक बना देती है।

मोटे महादेव मंदिर का इतिहास केवल ईंट-पत्थरों में नहीं, बल्कि यहां की मिट्टी, हवाओं और श्रद्धालुओं के ह्रदय में रचा-बसा है। यह स्थान आज भी महाभारत काल की अनसुनी कहानियों का साक्षी है और आने वाली पीढ़ियों को भारत के गौरवशाली इतिहास से जोड़ता है।

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