2027 चुनाव से पहले RSS की बड़ी रणनीति, पश्चिमी यूपी में प्रचारकों को लेकर किया ये बड़ा बदलाव

उत्तर प्रदेश की राजनीति में आगामी 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज़ हो चुकी है, और इस बार सबसे पहले कदम बढ़ाया है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने। बीजेपी की वैचारिक रीढ़ माने जाने वाले संघ ने एक बार फिर साबित किया है कि चुनावी रणनीति केवल घोषणा पत्रों से नहीं, ज़मीन पर काम करने वालों के सही उपयोग से भी बनती है।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 15 July 2025, 5:34 PM IST
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Lucknow: उत्तर प्रदेश की राजनीति में आगामी 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज़ हो चुकी है, और इस बार सबसे पहले कदम बढ़ाया है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)ने। बीजेपी की वैचारिक रीढ़ माने जाने वाले संघ ने एक बार फिर साबित किया है कि चुनावी रणनीति केवल घोषणा पत्रों से नहीं, ज़मीन पर काम करने वालों के सही उपयोग से भी बनती है।

पश्चिमी यूपी में बड़ा फेरबदल

संघ ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संवेदनशील और रणनीतिक दृष्टिकोण से अहम जिलों में प्रचारकों की नई तैनाती की है। यह क्षेत्र जाट-मुस्लिम बहुल है और परंपरागत रूप से राष्ट्रीय लोकदल (RLD) का गढ़ माना जाता रहा है। हालांकि RLD नेता जयंत चौधरी इस समय एनडीए का हिस्सा हैं, फिर भी संघ ने कोई जोखिम न लेते हुए संगठनात्मक स्तर पर अपनी उपस्थिति को मज़बूत करने की तैयारी शुरू कर दी है।

प्रचारकों की नई जिम्मेदारियाँ

संघ द्वारा किए गए ताज़ा बदलाव के तहत अब जिन प्रचारकों को ज़िम्मेदारी सौंपी गई है, वे इस प्रकार हैं:

गाजियाबाद: अतुल

सहारनपुर: आशुतोष

आगरा: रोहित

बदायूं: सुधांशु

चंदननगर: अखिलेश

नोएडा: चिरंजीवी

हरिद्वार: राकेश

शाहजहांपुर: रवि प्रकाश

बरेली: कृष्णा

एटा: कुलदीप

हरिगढ़: गोविंद

मथुरा: पारस

बुलंदशहर: देशराज (सह विभाग प्रचारक)

हरिद्वार: ललित शंकर (सह विभाग प्रचारक)

मेरठ: नमन (सह विभाग प्रचारक)

इन प्रचारकों को केवल ज़िला संचालन की जिम्मेदारी ही नहीं दी गई है, बल्कि उनका प्रमुख कार्य होगा – क्षेत्रीय सामाजिक समीकरणों को समझकर जनता से संवाद स्थापित करना, बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाना और विभिन्न वर्गों को पार्टी और संघ के साथ जोड़ना।

संघ की ज़मीनी रणनीति

आरएसएस इस बार किसी भी सियासी गलती की गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहता। जाट वोट बैंक की नब्ज़ को समझते हुए, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अपनी साख बढ़ाने के लिए संघ ने लंबे समय की योजना तैयार की है। संघ की कोशिश है कि सामाजिक सद्भाव, शिक्षा, सेवा और संवाद के ज़रिए लोगों से जुड़ा जाए – जिससे वैचारिक प्रभाव के साथ-साथ राजनीतिक लाभ भी सुनिश्चित किया जा सके।

क्या है असली मकसद?

इस रणनीतिक बदलाव का असली मकसद 2027 में बीजेपी की जीत को सुनिश्चित करना है। संघ भले ही सार्वजनिक रूप से चुनावी राजनीति से दूरी बनाकर रखता हो, लेकिन उसकी ज़मीनी सक्रियता किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकती है – और भाजपा इसका सबसे बड़ा लाभार्थी रही है।

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