बागपत से खत्म हुआ पाक का रिश्ता: परवेज मुशर्रफ का नाम सरकारी दस्तावेजों से भी हटा, शत्रु संपत्ति हुई नीलाम, जानिए किसने खरीदी?

इस जमीन को बड़ौत के पंकज ठेकेदार, मनोज गोयल और गाजियाबाद की जेके स्टील कंपनी ने संयुक्त रूप से खरीदा। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की खास खबर

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 3 June 2025, 4:10 PM IST
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बागपत: पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और उनके परिवार का नाम अब कोताना गांव से ही नहीं, बल्कि सरकारी रिकॉर्ड से भी हमेशा के लिए मिट गया है। वर्षों से शत्रु संपत्ति घोषित की गई उनकी कृषि भूमि की नीलामी पूरी होने के बाद अब यह संपत्ति नए मालिकों के नाम दर्ज हो चुकी है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, बागपत जिले के बड़ौत तहसील क्षेत्र के कोताना गांव में परवेज मुशर्रफ के भाई डॉ. जावेद मुशर्रफ और अन्य परिजनों के नाम पर लगभग 13 बीघा कृषि भूमि दर्ज थी। देश के विभाजन के बाद मुशर्रफ परिवार पाकिस्तान चला गया था, जिसके चलते इस भूमि को ‘शत्रु संपत्ति’ की श्रेणी में डाल दिया गया था।

1.38 करोड़ रुपये में खरीदी जमीन

उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश पर शत्रु संपत्ति अभिरक्षक कार्यालय (लखनऊ) ने इस भूमि की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। कुछ महीने पूर्व संपन्न हुई इस नीलामी में बड़ौत के पंकज ठेकेदार, मनोज गोयल और गाजियाबाद की जेके स्टील कंपनी ने संयुक्त रूप से इस भूमि को 1.38 करोड़ रुपये में खरीदा। अब यह भूमि पूरी तरह से इन खरीदारों के नाम पर बैनामा हो चुकी है।

अब नए मालिकों के अधीन आ गई जमीन

इस प्रक्रिया के तहत शत्रु संपत्ति अभिरक्षक कार्यालय लखनऊ से पर्यवेक्षक प्रशांत सैनी बड़ौत तहसील पहुंचे और दस्तावेजी कार्यवाही पूरी करवाई। एसडीएम बड़ौत मनीष कुमार यादव ने जानकारी दी कि बैनामे की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब यह जमीन कानूनी रूप से नए मालिकों के अधीन आ गई है।

इतिहास से जुड़ी जड़ें

परवेज मुशर्रफ के पिता मुशर्रफुद्दीन और माता बेगम जरीन मूल रूप से कोताना गांव के निवासी थे। दोनों की शादी भी यहीं हुई थी। वर्ष 1943 में वे दिल्ली चले गए थे, जहां परवेज मुशर्रफ और उनके भाई जावेद का जन्म हुआ। लेकिन वर्ष 1947 के विभाजन के समय पूरा परिवार पाकिस्तान चला गया और वहीं बस गया।

यह एक ऐतिहासिक पड़ाव

हालांकि, उनके परिवार की एक हवेली और कुछ कृषि भूमि कोताना में शेष रही। हवेली बाद में उनके चचेरे भाई हुमायूं के नाम दर्ज हो गई। जबकि कृषि भूमि को शत्रु संपत्ति के अंतर्गत रख दिया गया। इस प्रकार अब न केवल कोताना गांव से, बल्कि भारतीय सरकारी दस्तावेजों से भी परवेज मुशर्रफ और उनके परिवार का नाम हमेशा के लिए समाप्त हो गया है। यह एक ऐतिहासिक पड़ाव है, जिसमें भारत-पाक बंटवारे के बाद छूटे रिश्तों और संपत्तियों का एक लंबा अध्याय अब बंद हो चुका है।

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