कृष्ण की ससुराल में जन्माष्टमी की धूम, जानें औरैया जिले के इस महल की खास कहानी

जन्माष्टमी का पर्व आते ही देशभर में उत्साह की लहर दौड़ पड़ती है। मंदिरों से लेकर घर-घर तक भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो जाती हैं। लेकिन आज हम आपको ले चलते हैं भगवान श्रीकृष्ण के ससुराल, औरैया जिले के कुदरकोट में, जहां आज भी देवी रुक्मिणी का महल और मंदिर मौजूद है।

Post Published By: Deepika Tiwari
Updated : 16 August 2025, 4:03 PM IST
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औरैया: जन्माष्टमी का पर्व आते ही देशभर में उत्साह की लहर दौड़ पड़ती है। मंदिरों से लेकर घर-घर तक भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो जाती हैं। लेकिन आज हम आपको ले चलते हैं भगवान श्रीकृष्ण के ससुराल, औरैया जिले के कुदरकोट में, जहां आज भी देवी रुक्मिणी का महल और मंदिर मौजूद है। यहां जन्माष्टमी की तैयारियां अपने चरम पर हैं, जहां महिलाएं ढोलक की थाप पर भक्ति भजनों में डूबी नजर आ रही हैं। आइए, जानते हैं इस पौराणिक नगरी की रोचक कहानी।

गौरवशाली अतीत की गवाही...

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औरैया का कुदरकोट, जो कभी द्वापर युग में कुंदनपुर के नाम से राजा भीष्मक की राजधानी हुआ करता था, आज भी श्रीकृष्ण और रुक्मिणी की प्रेम कहानी का साक्षी है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने अपनी प्रिय रुक्मिणी का हरण इसी कुदरकोट के आलोपा देवी मंदिर से किया था। पुरहा नदी के तट पर बसी यह नगरी ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व की अनमोल धरोहर है। राजा भीष्मक के महल के अवशेष आज खंडहर में तब्दील हो चुके हैं, जहां अब एक स्कूल चल रहा है। लेकिन आसपास की खुदाई में मिलने वाली विखंडित मूर्तियां इस स्थान के गौरवशाली अतीत की गवाही देती हैं।

ससुराल के रूप में अपनी पहचान

यहां का आलोपा देवी मंदिर रुक्मिणी की भक्ति का प्रतीक है। कथा है कि रुक्मिणी प्रतिदिन माता गौरी की पूजा करने इस मंदिर में आती थीं और उन्होंने श्रीकृष्ण को अपने पति के रूप में वर मांगा था। उनकी यह इच्छा पूरी हुई, जब श्रीकृष्ण ने उन्हें मंदिर से पूजा के बाद हरण कर द्वारका ले गए। उसी समय से यह मंदिर आलोपा देवी के नाम से प्रसिद्ध है। कथाओं के अनुसार, रुक्मिणी की शादी शिशुपाल से तय थी, लेकिन उनका मन श्रीकृष्ण में रमता था। श्रीकृष्ण नदी मार्ग से गुप्त रास्ते के जरिए इस मंदिर तक पहुंचे और रुक्मिणी को अपने साथ ले गए। आज वह गुप्त गुफाएं बंद हो चुकी हैं, लेकिन कुदरकोट आज भी श्रीकृष्ण की ससुराल के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए है।

81 कोस की परिक्रमा में श्रद्धालुओं को सुविधा

औरैया की धरती न केवल श्रीकृष्ण और रुक्मिणी की प्रेमकथा की गवाह है, बल्कि इंद्र के ऐरावत, दुर्वासा ऋषि, पांडवों और तक्षक यज्ञ जैसे पौराणिक प्रसंगों से भी जुड़ी है। कुदरकोट के आसपास बिखरे शिवलिंग और मंदिर इस क्षेत्र के धार्मिक महत्व को और गहरा करते हैं। लेकिन अफसोस, पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के कारण यह पौराणिक स्थल आज भी देश-दुनिया की नजरों से ओझल है। स्थानीय लोग चाहते हैं कि मथुरा, वृंदावन और द्वारका की तरह कुदरकोट को भी धार्मिक पर्यटन के नक्शे पर लाया जाए। वे मांग करते हैं कि यहां बेहतर सड़कें बनें, ताकि 81 कोस की परिक्रमा में श्रद्धालुओं को सुविधा हो।

जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ...

स्थानीय निवासी रामप्रकाश कहते हैं “हमारी कुदरकोट नगरी श्रीकृष्ण की ससुराल है, लेकिन इसे वह पहचान नहीं मिली, जो मिलनी चाहिए। जन्माष्टमी पर यहां भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है, लेकिन अगर सड़क और अन्य सुविधाएं हों, तो दूर-दूर से लोग यहां आएंगे।” कुदरकोट में जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आलोपा देवी मंदिर में रुक्मिणी माता की मूर्ति की विशेष पूजा होती है। दूर-दराज से श्रद्धालु यहां पहुंचकर भक्ति में डूब जाते हैं। ढोलक की थाप और भजनों की स्वरलहरियों के बीच यह नगरी श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के प्रेम की स्मृति को जीवंत करती है।

मथुरा और द्वारका की तरह श्रद्धालुओं का केंद्र

कुदरकोट की यह पौराणिक धरती न केवल श्रीकृष्ण की ससुराल के रूप में प्रसिद्ध है, बल्कि यह एक ऐसी नगरी है, जो अपने गौरवशाली अतीत को आज भी संजोए हुए है। सवाल यह है कि आलोपा देवी मंदिर और राजा भीष्मक के खंडहरों को कब तक दुनिया की नजरों से छिपाकर रखा जाएगा? क्या पुरहा नदी के तट पर बसी यह नगरी कभी मथुरा और द्वारका की तरह श्रद्धालुओं का केंद्र बनेगी? यह यक्ष प्रश्न भविष्य के गर्भ में छिपा है।

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