

बुलंदशहर जिले के अहमदगढ़ क्षेत्र के किसान सिंघाड़े की खेती पर पूरी तरह निर्भर हैं, लेकिन उन्हें पानी की कमी और मंडी की सुविधा की कमी से मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं। यहां हर साल 10,000 से 12,000 बीघा क्षेत्र में सिंघाड़ा उगाया जाता है।
सिंघाड़े की खेती
Bulandshahr: बुलंदशहर जिले की शिकारपुर तहसील के अहमदगढ़ क्षेत्र में किसान सिंघाड़े की खेती पर पूरी तरह निर्भर हैं। यहां सिंघाड़ा सबसे अधिक उत्पादित होता है, जो न केवल प्रदेश में, बल्कि देश के कई राज्यों में भेजा जाता है। हालांकि, खेती की इस महत्वपूर्ण फसल के बावजूद यहां के किसान कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जो उनके जीवन यापन को मुश्किल बना रहे हैं।
अहमदगढ़ में सिंघाड़े की खेती पानी की खेती मानी जाती है, और इसे "पानी का फल" भी कहा जाता है क्योंकि इसे उगाने के लिए सबसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है। किसान बताते हैं कि यहां लगभग 10,000 से 12,000 बीघा भूमि पर सिंघाड़े की खेती होती है। यह फल राज्य के साथ-साथ दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, गुजरात, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी भेजा जाता है।
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हालांकि अहमदगढ़ में सिंघाड़े की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और वातावरण है, लेकिन किसानों की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। यहां न तो ट्रांसपोर्ट की उचित सुविधा है और न ही मंडी की कोई व्यवस्था। किसानों को अपने उत्पाद को बेचने के लिए दिल्ली के आज़ादपुर और गाज़ीपुर मंडियों में जाना पड़ता है, जो लगभग 110 किलोमीटर दूर हैं। इससे उन्हें भारी ट्रांसपोर्ट खर्च और समय की बर्बादी होती है।
इस बार अहमदगढ़ नहर ने किसानों को बहुत परेशान किया है। किसान बताते हैं कि इस सीजन में नहर में पानी केवल दो बार आया, जिससे उन्हें सिंघाड़े की खेती के लिए खुद ट्यूबवेल और इंजन से पानी भरने की मजबूरी झेलनी पड़ी। इससे सिंघाड़े की खेती में काफी खर्च बढ़ गया है। एक बीघा सिंघाड़ा उगाने में 20,000 से 25,000 रुपये का खर्च आता है, लेकिन इस बार किसानों को अपनी लागत निकालने में भी कठिनाई हो रही है।
किसान इस बार सिंघाड़े की फसल में बीमारी के कारण चिंतित हैं। उनका कहना है कि सिंघाड़े की फसल में बीमारी फैलने पर कृषि विभाग के डॉक्टरों द्वारा समय पर निरीक्षण नहीं किया जाता, जिससे नुकसान बढ़ रहा है। किसानों की मांग है कि अगर कृषि विभाग समय से निरीक्षण करे और दवाइयां सही तरीके से उपलब्ध कराए, तो इस वर्ष उनका मुनाफा बढ़ सकता है।
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अहमदगढ़ के किसान यह भी कहते हैं कि अगर यहां पर सरकार मंडी की व्यवस्था कर दे, तो उनका व्यापार बहुत बढ़ सकता है। नगर पालिका के अध्यक्ष ने भी अधिकारियों से मंडी बनाने की अपील की है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। किसान चाहते हैं कि सिंघाड़े की खेती को बेहतर करने के लिए सरकार सुविधाएं मुहैया कराए ताकि उनकी मेहनत का सही मूल्य मिल सके।
सिंघाड़े की खेती में मजदूरों का भी अहम योगदान है, जो पानी में घुसकर सिंघाड़े तोड़ते हैं। अगर कहीं पानी अधिक होता है, तो महिलाएं और पुरुष छोटी नाव में बैठकर सिंघाड़े तोड़ते हैं, लेकिन पानी में पलटने का डर भी उन्हें सता सकता है। यह स्थिति मजदूरों के लिए भी खतरनाक साबित हो रही है।
किसान सरकार से यह अपील करते हैं कि नहर का पानी समय पर आना चाहिए और एक अच्छी मंडी की व्यवस्था की जाए ताकि वे अपने सिंघाड़े को आस-पास ही बेच सकें। इस बार सिंघाड़े का रेट भी अच्छा नहीं मिल रहा है, जिससे उनकी चिंताएं और बढ़ गई हैं। अगर सरकार जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाती, तो उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता है।