

खजनी क्षेत्र के उसवा बाबू स्थित ककेस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय बुधवार को तनाव और आक्रोश का केंद्र बन गया, जब विद्यालय की सैकड़ों छात्राएं रोती-बिलखती लगभग 7 किलोमीटर पैदल चलकर खजनी थाने पहुंचीं। इन छात्राओं ने वार्डेन अर्चना पांडेय के खिलाफ जोरदार विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि वे उनके डर और कठोर व्यवहार से दहशत में हैं।
वार्डेन के खौफ से दहलीं छात्राएं
Gorakhpur: खजनी क्षेत्र के उसवा बाबू स्थित ककेस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय बुधवार को तनाव और आक्रोश का केंद्र बन गया, जब विद्यालय की सैकड़ों छात्राएं रोती-बिलखती लगभग 7 किलोमीटर पैदल चलकर खजनी थाने पहुंचीं। इन छात्राओं ने वार्डेन अर्चना पांडेय के खिलाफ जोरदार विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि वे उनके डर और कठोर व्यवहार से दहशत में हैं।
छात्राओं का आरोप है कि वार्डेन का रवैया बेहद क्रूर और डराने-धमकाने वाला है। अर्चना पांडेय का नाम पहले भी विवादों में रह चुका है। कुछ माह पूर्व एक छात्रा को कथित ‘तालिबानी सजा’ देने के मामले में उन्हें पद से हटाया गया था, जब इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। लेकिन हाल ही में उनकी पुनर्नियुक्ति की खबर ने छात्राओं में फिर भय का माहौल बना दिया। उनका कहना है कि वार्डेन के रहते वे विद्यालय में नहीं रह सकतीं।
थाने पहुंची छात्राओं का आक्रोश देखकर पुलिस और स्थानीय लोग हतप्रभ रह गए। घंटों तक थाने में हंगामा और रोना-धोना चलता रहा। छात्राओं ने स्पष्ट चेतावनी दी कि जब तक वार्डेन को तत्काल हटाया नहीं जाएगा, वे वापस विद्यालय नहीं लौटेंगी। यह विरोध पुराने विवाद को फिर से जगा गया है, जिसमें अर्चना पांडेय को पहले भी छात्राओं के विरोध के चलते हटाया गया था।
मामले की गंभीरता को देखते हुए खजनी थानाध्यक्ष शैलेंद्र कुमार ने वार्डेन से पूछताछ की, हालांकि तहरीर न मिलने के कारण औपचारिक कार्रवाई नहीं हो सकी। पुलिस ने उच्चाधिकारियों और शिक्षा विभाग को पूरे प्रकरण की सूचना दी। बेसिक शिक्षा विभाग ने तत्काल एक जांच टीम गठित की है, जो वार्डेन के आचरण और छात्राओं के आरोपों की तहकीकात करेगी।
प्रशासनिक अधिकारी अब छात्राओं से बातचीत कर उन्हें शांत करने और विद्यालय लौटाने के प्रयास में जुटे हैं। लेकिन इस घटना ने कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की कार्यप्रणाली, अनुशासन और प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना का उद्देश्य समाज के कमजोर तबके की बेटियों को सुरक्षित वातावरण में शिक्षा देना है, मगर इस तरह की घटनाएं इसके मूल उद्देश्य पर सीधा आघात करती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले ने शिक्षा विभाग को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि विद्यालयों में नियुक्तियों और प्रबंधन में पारदर्शिता व जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जाए, ताकि छात्राओं की मानसिक और शारीरिक सुरक्षा से कोई समझौता न हो।