यूपी में देश का एकलौता गांव: जहां पैदा हुए 15 हजार सैनिक, वर्ष 1965 के बाद से कोई जवान नहीं हुआ शहीद

आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे है। जिस गांव में अभी तक 15,000 सैनिक पैदा हो चुके हैं। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की खास रिपोर्ट

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 16 May 2025, 5:41 PM IST
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गाजीपुर: 8 मई की रात लगभग 10 बजे थे। मेरे बेटे नीरज का फोन आया, जो कश्मीर के उरी सेक्टर में तैनात है। बोला, "पापा, फायरिंग तेज हो गई है, ड्यूटी बढ़ा दी गई है। अब कुछ दिनों तक फोन नहीं कर पाऊंगा। आप चिंता मत करना। फिर तीन दिन कोई खबर नहीं आई। 11 मई को जब उसका फिर से फोन आया और उसने बताया कि वह ठीक है, तब जाकर चैन की सांस ली।"

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, 56 वर्षीय दिनेश सिंह की आंखें बेटे के गर्व में चमकती हैं। गाजीपुर जिले के गहमर गांव का रहने वाला नीरज, उन हजारों सैनिकों में से एक है, जो देश की सीमाओं की रक्षा में लगे हैं। लेकिन गहमर गांव केवल नीरज तक सीमित नहीं है। ये वो गांव है जहां देशभक्ति न केवल भावना है, बल्कि एक परंपरा है।

एशिया का सबसे बड़ा गांव, पर पहचान 'फौजियों वाला गांव'

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित गहमर पूरे एशिया का सबसे बड़ा गांव माना जाता है। लेकिन इसकी असली पहचान ‘फौजियों का गांव’ है। यहां हर गली, हर घर और हर दीवार पर सेना का इतिहास दर्ज है। लगभग हर परिवार से कोई न कोई भारतीय सेना में है या रहा है।

गांव ने दिए अब तक 15,000 सैनिक

यहां 5,000 से अधिक रिटायर्ड सैनिक और करीब 10,000 सक्रिय सैनिक हैं। अकेले जम्मू-कश्मीर में इस वक्त गांव के 200 से ज्यादा युवा तैनात हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यहां मां अपने बच्चों को जन्म के साथ ही ‘फौजी’ बनाने की कसम खाती हैं।

100 साल पुरानी परंपरा

गांव में फौजियों का सिलसिला नया नहीं है। यहां के लोग वर्ष 1914-1919 के पहले विश्व युद्ध में भी शामिल रहे। अंग्रेजों के खिलाफ लड़े 228 जवानों में से 21 शहीद हुए थे। फिर वर्ष 1965, 1971 और कारगिल युद्ध में भी गहमर के सैनिकों ने अहम भूमिका निभाई। गांव में 42 लेफ्टिनेंट से लेकर 23 ब्रिगेडियर तक के अधिकारी रहे हैं। जबकि वर्तमान में 45 कर्नल रैंक के अफसर सेवा में हैं। यहां के 50 से अधिक सैनिक 1965 से लेकर कारगिल युद्ध तक लड़ चुके हैं।

‘अगर इजाजत मिले तो आज भी जंग लड़ने को तैयार हूं’

90 साल के बंशीधर सिंह वर्ष 1971 की जंग लड़ चुके हैं। वह कहते हैं, "अगर सरकार इजाजत दे तो मैं आज भी बॉर्डर पर जाकर दुश्मनों का सामना कर सकता हूं।" वहीं, 72 साल के पूर्व सूबेदार मेजर वीरबहादुर सिंह कहते हैं, "इस बार मौका था कि हम PoK को भारत में मिला सकते थे, लेकिन अफसोस रह गया। हमारी सेना ने जबरदस्त पराक्रम दिखाया। पाकिस्तान के पास अब रोने के अलावा कुछ नहीं बचा।"

गांव की हर गली में सेना की छाप

गांव की हर गली किसी सैनिक के नाम पर है। यहां का हर तीसरा युवा सेना में जाने की तैयारी कर रहा है। ‘मठिया’ नामक मैदान में रोजाना सुबह-शाम युवा आर्मी की ट्रेनिंग लेते हैं। मैदान को गांव के रिटायर्ड सैनिकों ने खुद डिजाइन किया है। जिसमें रनिंग ट्रैक, मंकी रोप और लॉन्ग जंप जैसी सभी सैन्य प्रशिक्षण सुविधाएं हैं।

बेटों की रक्षा के लिए मां कामाख्या की पूजा

गांव की महिलाएं अपने बेटों की रक्षा के लिए कुलदेवी मां कामाख्या की पूजा करती हैं। गांव के हर सैनिक की रक्षा मां कामाख्या करती हैं। वर्ष 1965 के बाद से अब तक गांव का कोई जवान शहीद नहीं हुआ है।

Location : 
  • Ghazipur

Published : 
  • 16 May 2025, 5:41 PM IST