

दुनिया का सबसे खतरनाक बॉम्बर, जो रडार में नहीं आता, वो कैसे लापता हो गया? ईरान ने क्या इस विमान को मार गिराया या अमेरिका इसके बारे में सच्चाई छुपा रहा है? जानिए इस रहस्य की पूरी कहानी बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश
कैसे लापता हुआ दुनिया का सबसे खतरनाक बॉम्बर
नई दिल्ली: पश्चिम एशिया में इजरायल और ईरान के बीच तनावपूर्ण हालात के बीच एक और सनसनीखेज खबर ने वैश्विक सुरक्षा विशेषज्ञों से लेकर खुफिया एजेंसियों तक को बेचैन कर दिया है। अमेरिका का एक अत्याधुनिक B-2 स्पिरिट स्टील्थ बॉम्बर — जिसे दुनिया का सबसे घातक और महंगा बमवर्षक विमान माना जाता है — अचानक लापता हो गया है। जिस मिशन के लिए यह विमान रवाना हुआ था, वह भी रहस्यों से घिरा है। कहा जा रहा है कि यह बमवर्षक ईरान की परमाणु सुविधाओं पर हमला करने के मिशन के तहत उड़ान पर था। लेकिन फिर न तो वह विमान अपने बेस पर लौटा, न ही उसका कोई मलबा मिला, और न ही कोई आधिकारिक बयान।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में इस रहस्य को लेकर गहन विश्लेषण किया और इससे जुड़े तथ्यों को सामने लाने की कोशिश की।
इस पूरे मामले ने अमेरिका की सैन्य विश्वसनीयता और उसकी पारंपरिक रणनीति को कटघरे में खड़ा कर दिया है। 23 जून को अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने यह जानकारी दी थी कि अमेरिकी बी-2 बॉम्बर्स "ऑपरेशन मिडनाइट हैमर" के तहत सफलतापूर्वक मिशन पूरा कर अमेरिकी धरती पर लौट आए हैं। यह जानकारी मीडिया ब्रीफिंग के जरिए जारी की गई थी, जिसमें कहा गया कि ये विमान व्हाइटमैन एयर फोर्स बेस, मिसौरी में सुरक्षित उतर गए हैं। लेकिन इसी दावे के 48 घंटे के भीतर कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स और सैटेलाइट इंटेलिजेंस ने यह संकेत दिए कि इन विमानों में से एक — B-2 स्पिरिट — उड़ान के दौरान ही गायब हो गया और उसे आखिरी बार हवाई में डैनियल के इनोउये एयरपोर्ट पर आपातकालीन लैंडिंग की कोशिश करते हुए ट्रैक किया गया था।
भविष्य में ईरान पर व्यापक सैन्य कार्रवाई
अब सवाल यह उठता है कि क्या यह विमान किसी तकनीकी खामी का शिकार हुआ? क्या वह ईरान की मिसाइल प्रणाली द्वारा मार गिराया गया? या फिर यह अमेरिका की एक रणनीतिक चाल का हिस्सा है — एक ‘फॉल्स फ्लैग’ ऑपरेशन? क्योंकि हालिया वर्षों में कई बार देखा गया है कि जब अमेरिका को किसी विशेष सैन्य अभियान को न्यायोचित ठहराना होता है, तो वह किसी संकट या उकसावे वाली घटना का सहारा लेता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के रहस्यमयी घटनाक्रम का उपयोग भविष्य में ईरान पर व्यापक सैन्य कार्रवाई को सही ठहराने के लिए किया जा सकता है।
कीमत प्रति यूनिट लगभग 2 बिलियन डॉलर
यहां यह जानना भी जरूरी है कि B-2 स्पिरिट स्टील्थ बॉम्बर विमान सिर्फ तकनीकी नहीं, रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत संवेदनशील और शक्तिशाली उपकरण है। अमेरिका के पास ऐसे केवल 20 विमान हैं, जिनकी कीमत प्रति यूनिट लगभग 2 बिलियन डॉलर है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसका ‘स्टील्थ’ डिज़ाइन — यानी यह रडार से बच निकलने की क्षमता रखता है। यह बिना पकड़े हजारों किलोमीटर उड़ान भर सकता है और परमाणु व पारंपरिक हथियार ले जाने में सक्षम है। इसका उपयोग अमेरिका ने अब तक सिर्फ उच्चस्तरीय सैन्य अभियानों में ही किया है — जैसे सर्बिया युद्ध, इराक पर हमला, अफगानिस्तान में तालिबान ठिकानों पर हमले, और अब संभावित रूप से ईरान के खिलाफ।
खुफिया प्रणाली की विफलता
इस विमान का यूं लापता हो जाना न सिर्फ सैन्य बल्कि खुफिया प्रणाली की विफलता की ओर भी संकेत करता है। इस घटनाक्रम से जुड़ी सबसे बड़ी पहेली यह है कि अगर यह विमान लापता हुआ है, तो अमेरिका की खुफिया एजेंसियां और सैटेलाइट निगरानी तंत्र अब तक इसकी स्थिति का पता क्यों नहीं लगा पाया? क्या यह वाकई में टेक्निकल फेल्योर था या फिर दुश्मन द्वारा किए गए साइबर या इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर का नतीजा? ईरान की ओर से कोई औपचारिक दावा नहीं किया गया है कि उसने ऐसा कोई विमान मार गिराया है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में ईरान ने अपनी एयर डिफेंस टेक्नोलॉजी को अत्याधुनिक स्तर पर पहुंचाया है।
अमेरिका के सैन्य प्रभुत्व के लिए भी एक गंभीर चुनौती
2020 में जनरल सोलैमानी की हत्या के बाद से ईरान ने रूस से एस-300 और घरेलू प्रणाली “Bavar-373” जैसी मिसाइल प्रणालियों को विकसित और तैनात किया है। ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने पहले यह दावा किया था कि उन्होंने अमेरिकी ड्रोन और रडार-प्रूफ विमानों को ट्रैक करके मार गिराया है। ऐसे में यह संभव है कि B-2 बॉम्बर उनके रडार में आ गया हो और उसे निशाना बनाया गया हो। एक और संभावना जिस पर चर्चा तेज है, वह है इलेक्ट्रॉनिक या साइबर हमला। 2011 में ईरान ने अमेरिकी RQ-170 सेंटिनल ड्रोन को कथित तौर पर साइबर टेक्नोलॉजी से ‘हाईजैक’ करके सुरक्षित लैंड करवाया था। अगर ऐसी ही किसी प्रणाली का इस्तेमाल B-2 बॉम्बर के खिलाफ किया गया हो तो यह न सिर्फ सैन्य खतरा है, बल्कि अमेरिका के सैन्य प्रभुत्व के लिए भी एक गंभीर चुनौती बन सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ईरान के खिलाफ माहौल
वहीं दूसरी ओर, कई रणनीतिक विश्लेषक इस घटना को अमेरिका और इजरायल की "साइकोलॉजिकल वॉरफेयर" यानी मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा भी मान रहे हैं। अमेरिका और इजरायल पहले भी इस तरह की सूचनाओं और छद्म अभियानों का उपयोग कर चुके हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ईरान के खिलाफ माहौल बनाया जा सके। यदि दुनिया को यह विश्वास दिला दिया जाए कि ईरान अमेरिका के अत्याधुनिक विमानों को मार गिरा सकता है, तो इससे संयुक्त सैन्य कार्रवाई का औचित्य तैयार किया जा सकता है।
विदेश नीति में एक गहरा रिश्ता
इस पूरे घटनाक्रम का एक और पहलू यह भी है कि यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नज़दीक हैं और डोनाल्ड ट्रंप तथा जो बाइडन दोनों पश्चिम एशिया में ताकत दिखाने की होड़ में लगे हैं। रिपब्लिकन लॉबी और इजरायल समर्थक समूह लंबे समय से ईरान के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। ऐसे में यह विमान लापता होने की खबर घरेलू राजनीति को प्रभावित करने का भी साधन बन सकती है। इस संदर्भ में यह देखना महत्वपूर्ण है कि पिछले एक दशक में अमेरिकी रक्षा बजट और उसकी विदेश नीति में एक गहरा रिश्ता रहा है। जब भी किसी खतरे की संभावना दिखती है, सैन्य बजट में बढ़ोतरी की मांग और रक्षा उद्योगों की लॉबी को लाभ मिलता है। 2025 के लिए प्रस्तावित अमेरिकी रक्षा बजट 886 बिलियन डॉलर है, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है।
देशों की खुफिया एजेंसियां
अब बात करें अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की। रूस और चीन ने इस पूरे प्रकरण पर चुप्पी तो साध रखी है, लेकिन दोनों देशों की खुफिया एजेंसियां इस घटनाक्रम की निगरानी कर रही हैं। रूस, जो ईरान का प्रमुख सैन्य और रणनीतिक साझेदार है, उसके लिए यह घटना दो अर्थों में महत्वपूर्ण है — एक, अगर ईरान ने सचमुच इस विमान को गिराया है, तो यह पश्चिमी तकनीक के खिलाफ एक मनोवैज्ञानिक विजय है। और दूसरा, इससे रूस-ईरान सैन्य सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है। उधर, इजरायल ने सार्वजनिक तौर पर इस मिशन की पुष्टि नहीं की है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि यह विमान इजरायल के एयरबेस से उड़ा था, तो इजरायल इस पूरे घटनाक्रम में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल था। इजरायल के लिए ईरान का परमाणु कार्यक्रम एक "एक्सिस्टेंशियल थ्रेट" यानी अस्तित्व का संकट माना जाता है और वह किसी भी कीमत पर इसे रोकना चाहता है।
घटना के बाद ईरान पर खुलकर हमला
अब सवाल यह उठता है कि आगे क्या होगा? क्या अमेरिका इस घटना के बाद ईरान पर खुलकर हमला करेगा? या फिर यह एक सामरिक चेतावनी मात्र थी? क्या यह विमान फिर कभी मिलेगा? या यह रहस्य इतिहास की किताबों में दर्ज हो जाएगा जैसे 1943 में लापता हुआ अमेरिकी B-24 लिबरेटर, जो दशकों तक समुद्र में डूबा पड़ा रहा?
एक बात स्पष्ट है — यह घटना सिर्फ एक विमान के लापता होने की नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन, सैन्य तकनीक, और अंतरराष्ट्रीय रणनीति के केंद्र में घट रही बड़ी हलचल का संकेत है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि आधुनिक युद्ध सिर्फ मैदान पर नहीं, बल्कि आकाश, साइबर स्पेस, मनोविज्ञान और सूचना के स्तर पर भी लड़े जा रहे हैं।