The MTA Speaks: स्टेट लेवल खिलाड़ी राधिका की उसके ही पिता ने हत्या की, ये थी बड़ी वजह

एक 25 वर्षीय स्टेट लेवल टेनिस प्लेयर राधिका यादव की हत्या उनके ही पिता दीपक यादव ने कर दी। इस दिल दहला देने वाली वारदात ने न केवल एक परिवार को बर्बाद कर दिया।

Post Published By: Deepika Tiwari
Updated : 13 July 2025, 7:52 PM IST
google-preferred

नई दिल्ली:  दिल्ली से सटे गुरुग्राम में एक ऐसी घटना हुई है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। एक 25 वर्षीय स्टेट लेवल टेनिस प्लेयर राधिका यादव की हत्या उनके ही पिता दीपक यादव ने कर दी। इस दिल दहला देने वाली वारदात ने न केवल एक परिवार को बर्बाद कर दिया, बल्कि समाज में बेटियों की सुरक्षा, महिलाओं की स्वतंत्रता, पारिवारिक तनाव और घरेलू हिंसा जैसे गंभीर सवालों को भी जन्म दिया है। कल सुबह लगभग 10:30 बजे गुरुग्राम के सेक्टर 57 में स्थित उनके घर में यह वीभत्स घटना घटी। राधिका उस वक्त अपने घर की रसोई में थी, जब उसके पिता दीपक यादव ने उसे तीन गोलियां मारीं। ये गोलीकांड बेहद नज़दीक से किया गया और पीछे से मारी गई गोलियां सीधे उसकी पीठ में धँस गईं। मौके पर ही उसकी मृत्यु हो गई।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में  घटना पर बड़ी जानकारी दी।

यह कोई सामान्य परिवार नहीं था। राधिका यादव न केवल एक राज्यस्तरीय खिलाड़ी थी, बल्कि खेल में चोट लगने के बाद उसने अपने जुनून को जिंदा रखते हुए एक टेनिस एकेडमी शुरू की थी। यह एकेडमी वह पिछले कुछ वर्षों से चला रही थी और इसने धीरे-धीरे अपनी एक पहचान भी बना ली थी। राधिका युवाओं को प्रशिक्षित कर रही थी और उसके माता-पिता भी कभी इस पहल का समर्थन करते नज़र आए थे। ऐसे में अचानक से यह कहना कि पिता दीपक यादव को यह पसंद नहीं था कि उनकी बेटी उनकी मर्जी के खिलाफ एकेडमी चला रही थी, पुलिस ने अपनी प्रारंभिक जांच में यही कारण बताया है कि पिता को बेटी की “आज़ादी” और आर्थिक स्वावलंबन से समस्या थी। परंतु यह तर्क अधूरा और सतही प्रतीत होता है।

 एफआईआर दर्ज

राधिका के चाचा कुलदीप यादव ने इस हत्या के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज कराई और पुलिस को बताया कि राधिका पिछले कुछ समय से मानसिक तनाव में थी, क्योंकि पिता उसे एकेडमी बंद करने के लिए दबाव डाल रहे थे। लेकिन राधिका अपने फैसले पर अडिग थी। यही असहमति धीरे-धीरे एक गहरे पारिवारिक तनाव में बदल गई। दीपक यादव ने जो तीन गोलियां मारीं, वह उनके लाइसेंसी .32 बोर रिवॉल्वर से चलाई गई थीं। यह स्पष्ट है कि यह कोई अचानक का गुस्सा नहीं था, बल्कि एक सोच-समझ कर की गई हत्या थी। पुलिस ने आरोपी पिता को हिरासत में लेकर एक दिन की रिमांड पर भेज दिया है और गहन पूछताछ जारी है। हत्या के बाद से पूरे सेक्टर 57 क्षेत्र में सन्नाटा पसरा है और स्थानीय लोगों में गुस्सा और सदमा दोनों व्याप्त है। मामले की गंभीरता तब और बढ़ जाती है जब हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि क्या यह हत्या केवल एकेडमी के संचालन को लेकर हुई थी या इसके पीछे और भी गहरे सामाजिक-मानसिक कारण हैं। समाज में कई बार ऐसा देखा गया है कि जब बेटियां आत्मनिर्भर होती हैं, घर की आर्थिक ज़िम्मेदारियाँ संभालती हैं, या अपनी शर्तों पर जीवन जीती हैं, तो उन्हें परिवार के भीतर ही विरोध का सामना करना पड़ता है।

जीवन खत्म करने पर क्यों आमादा

दीपक यादव जैसे पिता, जिन्होंने कभी बेटी को टेनिस कोर्ट तक पहुँचाया था, अचानक उसका जीवन खत्म करने पर क्यों आमादा हो गए? क्या समाज के ताने और दबाव वाकई इतने प्रभावी हो सकते हैं कि एक पिता को अपनी ही बेटी की कमाई ‘अपमान’ जैसी लगने लगे? राधिका की हत्या के बाद पुलिस जांच में एक और पहलू सामने आया — दीपक यादव अपने परिचितों के सामने अक्सर यह बात कहते थे कि “लोग कहते हैं मैं बेटी की कमाई खा रहा हूं।” यह वाक्य अपने आप में समाज की उस कड़वी सच्चाई को उजागर करता है, जो पुरुषों के आत्मसम्मान और पितृसत्ता से जुड़ा है। राधिका की एकेडमी सफल हो रही थी, छात्र संख्या बढ़ रही थी, वह खुद एक प्रेरणा बन चुकी थी, लेकिन यही सफलता शायद उसके पिता को बोझ लगने लगी थी। राधिका के पड़ोसियों और जानने वालों का कहना है कि वह अत्यंत विनम्र, मेहनती और प्रेरणास्पद युवती थी। उसकी एकेडमी में लड़के-लड़कियों को टेनिस की प्रोफेशनल ट्रेनिंग मिलती थी और वह अपने माता-पिता के साथ ही उसी घर में रहती थी। कोई भी यह कल्पना नहीं कर सकता था कि उसके पिता एक दिन उसका जीवन ही छीन लेंगे।

पुरुषों को महिलाओं की सफलता सहन नहीं

यह घटना केवल एक घरेलू हत्या नहीं है। यह उस गहरी मानसिकता की परत खोलती है जिसमें पुरुषों को महिलाओं की सफलता सहन नहीं होती, भले ही वे उनके अपने ही घर की क्यों न हों। बेटी की तरक्की को अपनी असफलता के रूप में देखने वाले ऐसे पिता समाज में दुर्भाग्य से कम नहीं हैं। हरियाणा और खासकर गुरुग्राम जैसे क्षेत्रों में बेटियों को खेलों में आगे बढ़ाने की परंपरा रही है। बॉक्सर, पहलवान, बैडमिंटन और टेनिस खिलाड़ियों की कई कहानियाँ हमने सुनी हैं जहाँ परिवार ने बेटी का साथ दिया और वे इंटरनेशनल स्तर पर पहुँचीं। लेकिन वही समाज, जब किसी लड़की की तरक्की को ‘पुरुष की परछाईं से बाहर निकलना’ मान लेता है, तब यही समर्थन हिंसा में बदल जाता है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस मामले पर संज्ञान लिया है और हरियाणा सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। आयोग ने इसे ‘घरेलू हिंसा का उग्रतम रूप’ बताया है और कहा है कि यदि राधिका की सुरक्षा को लेकर पहले कोई शिकायत की गई होती, तो शायद यह जान बचाई जा सकती थी। महिला आयोग ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार को खेल क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए विशेष मनोवैज्ञानिक सहायता और परिवार परामर्श की व्यवस्था करनी चाहिए।

केवल एक हत्या का मामला

राधिका की हत्या का मामला अब केवल एक हत्या का मामला नहीं रह गया है। यह उन तमाम लड़कियों के लिए चेतावनी है जो आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं, अपने फैसले खुद लेना चाहती हैं, और पारंपरिक भूमिकाओं से बाहर निकलना चाहती हैं। यह उन परिवारों के लिए भी एक संदेश है जो बाहर से तो ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा लगाते हैं लेकिन अंदर से अब भी पुरुष अहम की दीवारें गिरा नहीं पाए हैं। घटना के बाद सोशल मीडिया पर भी इस हत्याकांड को लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर राधिका के लिए न्याय की मांग की जा रही है। #JusticeForRadhika हैशटैग ट्रेंड कर रहा है और लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या बेटियों की जान अब अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है?

राधिका जैसी बेटियाँ अपने ही घर में असुरक्षित

मनोरंजन और खेल जगत की हस्तियों ने भी इस पर गहरा दुख जताया है। ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक ने कहा, “राधिका ने जो सपना देखा, उसे किसी और ने नहीं, बल्कि उसके अपने पिता ने तोड़ा। यह हमारे समाज के लिए आईना है। राधिका यादव की हत्या केवल एक बेटी की हत्या नहीं है, यह हमारे समाज की सोच, हमारी परवरिश, और हमारी पुरुषवादी संरचना की भी हत्या है। यह वह बिंदु है जहाँ हर एक व्यक्ति को रुक कर सोचना होगा कि हम बेटियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं या केवल उतना ही समर्थन देते हैं, जब तक वे हमारी शर्तों पर चलें राधिका को न्याय दिलाने की जिम्मेदारी अब केवल कानून की नहीं, समाज की भी है। पुलिस को चाहिए कि वह इस केस में गहराई से जांच कर न केवल आरोपी को सज़ा दिलाए, बल्कि यह भी उजागर करे कि इस हत्या के पीछे की मानसिकता किस हद तक सामाजिक दबाव और पारिवारिक संरचना से प्रभावित थी। जब तक हम इस सोच को नहीं बदलेंगे कि एक बेटी की सफलता पिता के सम्मान को घटाती नहीं, बल्कि बढ़ाती है — तब तक राधिका जैसी बेटियाँ अपने ही घर में असुरक्षित रहेंगी।

Location : 

Published :