बुलंदशहर हिंसा: यूपी के WhatsApp वीर आईपीएस अफसरों का ज्ञान सुनकर दंग रह जायेंगे आप..

यूपी के कलाकार आईपीएस अफसरों की कोई सानी नही है। इन आईपीएस अफसरों के WhatsApp ग्रुप इन दिनों बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के शहीद होने की चर्चाओं से भरे पड़े हैं। सब अपने-अपने हिसाब से ज्ञान ले-दे रहे हैं कि मानो ये होते तो न जाने क्या तीर मार लेते। किसी में भी रत्ती भर नैतिक साहस नही है जो वाजिब सवालों का जवाब दे सके। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव..

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 4 December 2018, 9:10 PM IST
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नई दिल्ली: वो कहते हैं ना कि किसी भी व्यक्ति की असल परीक्षा तब होती है जब वह खुद मैदान में समस्या को झेल रहा हो.. बाहर से तो ज्ञान देना बड़ा आसान है। कुछ ऐसा ही हाल यूपी के ज्ञानबाज आईपीएस अफसरों का है। इन अफसरों के WhatsApp ग्रुपों में बुलंदशहर हिंसा में शहीद हुए इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के बारे में जमकर चर्चा हो रही है। चर्चा अच्छी बात है बुरी नहीं लेकिन यह जब एकतरफा हो.. तो फिर अजीबोगरीब तो लगेगा ही।

इन चर्चाओं को धार देने के केन्द्र में ज्यादातर सीनियर आईपीएस हैं.. एडीजी, आईजी औऱ डीआईजी रैंक के। 

यदि शहीद के परिजनों की भलाई के लिए ये आईपीएस अफसर आगे आते हैं तो ये स्वागत योग्य है लेकिन क्या इनमें इतना नैतिक साहस है कि ये अफसर इस बात की स्वस्थ चर्चा कर सकें कि आखिर ये घटना घटी ही क्यों.. क्या इसे रोका जा सकता था? ऐसा कौन सा कदम उठाया जाना चाहिये जिससे आगे किसी जिले में किसी आईपीएस अफसर की लापरवाही की भेंट फिर कोई जांबाज पुलिसवाला न चढ़ जाये.. ये स्वस्थ चर्चा वाजिब भी होगी और भविष्य के लिहाज से सार्थक भी.. क्योंकि जब भी कोई बवाल फील्ड में होगा तो आखिर जिले, रेंज और जोन में इन्हीं चर्चाबाज आफिसर्स में से ही कोई तैनात होगा और उसकी जिम्मेदारी और जवाबदेही होगी कि ऐसी घटना होने की नौबत ही न आये। 

क्या इस बात की चर्चा नही होनी चाहिये कि बुलंदशहर की घटना में किसी आईपीएस अफसर का दोष है या नही.. इन अनुभवी अफसरों को अपने साथियों से क्या ये नही पूछना चाहिये कि फील्ड की छोटी सी दिखने वाली घटना को नजरअंदाज नही करना चाहिये.. वैसे भी एडीजी और आईजी का काम है क्या? सुपरविजन, प्लानिंग और रिस्पांस.. क्या मेरठ जोन के एडीजी और रेंज के आईजी ने अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन किया? क्या समूचे मामले को बुलंदशहर के एसएसपी ने सही से डील किया? इस पर कोई चर्चा नही होगी.. अगर होगी तो इस बात की कैसे राजनेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाये।

डाइनामाइट न्यूज़ को एडीजी रैंक के एक अधिकारी ने बताया कि हकीकत तल्ख है.. जब 2011 में मुरादाबाद जिले में एक आईपीएस अफसर अशोक कुमार सिंह मॉब लिंचिंग के शिकार हुए तो बीच में उन्हें मरता छोड़ तत्कालीन डीएम समेत सभी भाग खड़े हुए। गंभीर रुप से चोटिल अशोक की किसी तरह जान बच सकी.. और तो और बाद में इससे जुड़ा मामला तक सरकारी दबाव में समाप्त करा दिया गया। बड़ा सवाल ये है कि ये इन्हीं ज्ञानवीर अफसरों में से किसी एक ने इन मुकदमों को समाप्त करने की सिफारिश की होगी.. अब आप ही सोचिये फिर कौन लड़ेगा फोर्स की लड़ाई और कैसे रहेगा मनोबल ऊंचा?

तीन साल पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक दरोगा को जब वकीलों ने घेर कर जान से मारने की कोशिश की तो आत्मरक्षार्थ उस पुलिस वाले ने गोली चलायी और एक वकील मारा गया। अब नतीजा देखिये.. दरोगा तब से लेकर आज तक जेल में सड़ रहा है.. कहां गया आईपीएस एशोसिएसन? क्या किसी में नैतिक साहस है जो उस दरोगा के पक्ष में बोल सके? क्या ग्रुपों और एशोसिएसन की आड़ में सेटिंगबाज आईपीएस दूसरों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाते रहेंगे और मलाईदार पोस्टिंग जैसे अपने उल्लू सीधे करते रहेंगे।

सेवानिवृत्त डीजीपी प्रकाश सिंह व दो-तीन अन्य को छोड़ दिया जाये तो शायद ही कोई ईमानदारी से नि:स्वार्थ पुलिस वालों की भलाई के लिए ठोस काम करता होगा..

जरा सोचिये सुबोध सिंह ने यदि आत्मरक्षार्थ गोली किसी उपद्रवी को मार दी होती तो क्या होता.. क्या वे इलाहाबाद कांड के दरोगा की तरह जेल में नही सड़ने को मजबूर होते.. तब क्या कोई ज्ञानवीर आईपीएस उनके पक्ष में खड़ा होने का साहस दिखा पाता? यह ऐसे सवाल हैं जिसे इन ज्ञानबाजों को अपने आप से पूछना चाहिये..