डॉलर के मुकाबले रुपये की ऐतिहासिक गिरावट, RBI ने दबाव कम करने के लिए लागू की ये नई रणनीति

भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 90 के पार पहुंचकर रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया है। गिरावट के पीछे ट्रेड डेफिसिट, FPI सेलिंग और अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ जैसे कारण जिम्मेदार हैं। दबाव कम करने के लिए RBI ने 45,000 करोड़ रुपये की डॉलर-रुपया स्वैप नीलामी का ऐलान किया है।

Post Published By: Sapna Srivastava
Updated : 10 December 2025, 8:23 AM IST
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New Delhi: भारतीय रुपया इन दिनों बड़े दबाव में है। सितंबर तिमाही में मजबूत GDP ग्रोथ दर्ज होने के बावजूद रुपये में सुधार नहीं दिखा और यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90 के स्तर को पार कर अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। 2025 में रुपये में लगभग 4.9 प्रतिशत की गिरावट आई, जिससे यह दुनिया की 31 प्रमुख करेंसियों में तीसरा सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गया।

विशेषज्ञों के मुताबिक रुपये की कमजोरी के कई प्रमुख कारण हैं। सबसे पहले, भारत का ट्रेड डेफिसिट लगातार बढ़ रहा है, जिससे विदेशी मुद्रा की मांग बढ़ जाती है। इसके साथ ही अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने से निर्यात पर दबाव पड़ा है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा भारी बिकवाली और भारत-अमेरिका ट्रेड डील में प्रगति न होने से भी रुपये पर नकारात्मक असर पड़ा है।

क्या कर रहा है RBI?

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया रुपये में तेज उतार-चढ़ाव को रोकने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इस बार का अप्रोच पहले की तुलना में काफी संतुलित है। रिपोर्टों के अनुसार, RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा रुपये को किसी खास स्तर पर मजबूती से नहीं पकड़ना चाहते, बल्कि मार्केट वोलैटिलिटी को सीमित करने के लिए सीमित हस्तक्षेप की रणनीति अपना रहे हैं।

IMF के पूर्व अधिकारी और वर्तमान में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स प्रोफेसर ईश्वर प्रसाद का कहना है कि RBI “हवा के खिलाफ हल्का झुकने वाली नीति” अपना रहा है। यानी करेंसी को पूरी तरह नियंत्रित करने की बजाय RBI उसका अचानक टूटना या ओवरशूटिंग रोकने पर फोकस कर रहा है।

साउथ मुंबई स्थित RBI मुख्यालय में रोजाना इंटरवेंशन स्ट्रेटेजी पर समीक्षा बैठकों का सिलसिला चलता है। वित्तीय बाजार समिति (FMC) की मीटिंग में एक्सचेंज रेट के दबाव का आकलन किया जाता है और जरूरत पड़ने पर बड़े सरकारी बैंकों को निर्देश भेजे जाते हैं, जो RBI की ओर से करेंसी मार्केट में हस्तक्षेप करते हैं।

हालांकि RBI ने बैंकों को यह स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे स्पेक्युलेटिव ट्रेड न लें और केवल क्लाइंट की जरूरत या पोजीशन बंद करने तक ही सीमित रहें।

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RBI का बड़ा फैसला

रुपये पर बढ़ते दबाव के बीच RBI ने 16 दिसंबर को 45,000 करोड़ रुपये की डॉलर-रुपया बाय-सेल स्वैप नीलामी का ऐलान किया है। यह नीलामी तीन साल की अवधि के लिए होगी। इस प्रक्रिया से बैंक RBI को डॉलर बेचेंगे और उसके बदले रुपये प्राप्त करेंगे।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस नीलामी से बैंकिंग सिस्टम में अतिरिक्त लिक्विडिटी आएगी, जिससे ब्याज दरों में स्थिरता बनी रहेगी और रेपो रेट घटाने के प्रभाव को मजबूती मिलेगी। साथ ही बाजार में रुपये की उपलब्धता बढ़ने से करेंसी पर दबाव भी कम होगा।

करेंसी प्रबंधन का पुराना अनुभव

भारत का करेंसी हस्तक्षेप का इतिहास लंबा रहा है। 1991 में विदेशी मुद्रा संकट के दौरान भारत को गोल्ड रिजर्व गिरवी रखना पड़ा था। 2013 की टेपर टैंट्रम घटना के बाद RBI ने फॉरेन रिजर्व मजबूत करने पर जोर दिया, जो अब बढ़कर 686 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है।

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आगे क्या?

बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक अमेरिका-भारत ट्रेड विवाद कम नहीं होता और FPI फ्लो स्थिर नहीं होता, तब तक रुपये पर दबाव बना रह सकता है। RBI की नई रणनीति से स्थिति नियंत्रण में रह सकती है, लेकिन वैश्विक कारक अभी भी सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं।

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  • 10 December 2025, 8:23 AM IST