लखनऊ विकास प्राधिकरण के तत्कालीन संयुक्त सचिव समेत चार को लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने सुनाई सजा

डीएन ब्यूरो

लखनऊ विकास प्राधिकरण के तत्कालीन संयुक्त सचिव समेत चार को लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने सजा सुनाई है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज की ये रिपोर्ट

सीबीआई कोर्ट  लखनऊ
सीबीआई कोर्ट लखनऊ


लखनऊ: लखनऊ विकास प्राधिकरण के तत्कालीन संयुक्त सचिव समेत चार को लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने सजा सुनाई है। इसमें एलडीए के तत्कालीन संयुक्त सचिव एवं तीन अन्य सहित चार आरोपियों को 3-4 वर्ष की कठोर कारावास की सजा के साथ कुल 1.25 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई है।

डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के मुताबिक नामित सीबीआई अदालत ने भूखंड आवंटन में अनियमितताओं से संबंधित मामले में एलडीए के तत्कालीन संयुक्त सचिव एवं तीन अन्य सहित चार आरोपियों को 3-4 वर्ष की कठोर कारावास की सजा के साथ कुल 1.25 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। सीबीआई मामलों के विशेष न्यायाधीश, सीबीआई पश्चिम कोर्ट, लखनऊ ने वर्ष 1987-1999 के दौरान,  लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) की जानकीपुरम योजना के तहत भूखंडों के आवंटन में अनियमितताओं से संबंधित एक मामले में चार आरोपियों को 3-4 वर्ष की  कठोर कारावास (आरआई) के साथ कुल 1.25 लाख रु. जुर्माने की सजा सुनाई। कठोर कारावास एवं जुर्माने की सजा पाने वाले आरोपियों में  आर.एन. सिंह, तत्कालीन संयुक्त सचिव, एलडीए को ३ वर्ष की कठोर कारावास के साथ 35,000 रुपये का जुर्माना, लिपिक श्री राज नारायण द्विवेदी एलडीए को 4 वर्ष की कठोर कारावास के साथ 60,000 रुपये का जुर्माना, महेंद्र सिंह सेंगर, निजी व्यक्ति, को 03 वर्ष की कठोर कारावास के साथ 15 हजार का जुर्माना एवं दिवाकर सिंह निजी व्यक्ति को 3 वर्ष की कठोर कारावास  के साथ 15 हजार का जुर्माना शामिल है।

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केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने सिविल समादेश  याचिका संख्या 7883/2006 में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ पीठ के दिनांक 21 फरवरी 2006 के आदेश के अनुपालन में दिनांक 28 फरवरी 2006 को आर.एन. सिंह, संयुक्त सचिव, लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) एवं अन्यों सहित सात आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, जिसमें आरोप था कि वर्ष 1987 से 1999 की अवधि के दौरा एलडीए की जानकीपुरम योजना के अंतर्गत 123 भूखंडों को संयुक्त सचिव और उप सचिव स्तर के विभिन्न अधिकारियों द्वारा एलडीए के तत्कालीन प्रधान लिपिकों व अन्य लिपिकों की मिलीभगत से उन लोगों को आवंटित किया गया था, जिन्होंने पंजीकरण फॉर्म नहीं भरे थे। साथ ही आवंटन  एवं वितरण के लिए अपेक्षित रकम जमा नहीं की थी। 

जांच के बाद 6 फरवरी 2010 को सात आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। न्यायालय ने विचारण के पश्चात  चार आरोपियों को दोषी ठहराया एवं उन्हें सजा सुनाई। दो आरोपियों की मृत्यु के कारण उनके खिलाफ मुकदमा समाप्त कर दिया गया, जबकि एक आरोपी को न्यायालय ने बरी कर दिया।

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