Opinion on Coronavirus: लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन हुआ तो कोरोना वायरस नाम का रावण अस्तित्व डाल देगा संकट में

प्रो. सरोज व्यास

21वीं सदी में आज तक का सबसे बड़ा, अदृश्य, छुपा हुआ भयावह मानव जाति का भक्षक "कोरोना वाइरस" विश्व स्वास्थ्य संगठन, वैश्विक महाशक्तियों और विज्ञान को "अंगूठा दिखा" रहा है। इस सुक्ष्म जानलेवा राक्षस ने राष्ट्राध्यक्षों, राजकुमारों, राजनेताओं, सिने तारिकाओं एवं अनेकों बड़ी-बड़ी हस्तियों को अपने आगोश में लेकर पस्त कर दिया है। क्या राजा क्या रंक, सभी त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं।

प्रो. सरोज व्यास
प्रो. सरोज व्यास


नई दिल्ली: दुनिया भर की इस समय अजीबोगरीब हालत हो गयी है। संसार में "कोरोना वाइरस" नामक दैत्य ने धरती पर विद्यमान समस्त मानव जाति को स्वयं के अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए विवश कर दिया है। सभी अपने-अपने स्तर पर आस्था, विश्वास, समझ, बुद्धि और सामर्थ्य के साथ इस अजात अज्ञात शत्रु से लड़ रहे हैं। राष्ट्रों के मध्य यदि सीमाओं के अतिक्रमण और घुसपैठ का मामला होता तो पाकिस्तान जैसा अराजकता का प्रतीक, आतंकवादियों का संरक्षक तथा असंवेदनशील राष्ट्र "न्यूक्लियर बम" की "गीदड़ भभकी"  देकर पड़ोसियों को आतंकित करने में अग्रणी भूमिका निभा सकता था। 

किसी जीव-जंतु या कीट-पतंगे से महामारी फैलती तो उनके भोज्य उपभोग पर प्रतिबंध लगाकर तथा कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करके, विश्व स्वास्थ्य संगठन और विभिन्न राष्ट्रों के राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं कृषि  मंत्रालय निपट लेते। इसके विपरीत अंधविश्वासों के चलते यदि लगता कि दैवीय प्रकोप अथवा दानवीय शक्तियों द्वारा मचाया गया आतंक है, तब  पूजा-पाठ, हवन-यज्ञ, झाड़-फूंक और  स्तुति-मंत्रोच्चारों से मनाने अथवा भगाने का उपक्रम कम से कम सार्क देशों द्वारा तो किया जाना संभावित था

जंग कोरोना से

प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों, धर्मगुरुओं, अभिनेताओं/अभिनेत्रियों, डॉक्टरों और पुलिस प्रशासन के द्वारा की गई  प्रार्थना, आदेश, अनुरोध, अपील, आग्रह तथा आवश्यक दिशा-निर्देशों का पालन करने या नही करने की स्वतंत्रता लोकतंत्र में है। शायद इसी वजह से जहां एक ओर कुछ नासमझ, हवाखोर, मनचले, दुखी: आत्मा प्राणी स्वयं, परिवार, पड़ोसियों, समाज और राष्ट्र के प्रति गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करने पर आमादा हो जाते है। वहीं दूसरी ओर कुछ गरीब, बेबस एवं लाचार जनता पेट की आग और रोटी की आस में सड़कों पर निकलने के लिए मजबूर है। 

वैसे रामायण की चौपाई के अंश "भय बिन प्रीत न होय", को चरितार्थ करने में भारतीयों द्वारा सदैव अग्रणी भूमिका निभाई जाती रही है। जवानी, नादानी और जोश में आकर व्यक्ति जब मृत्यु के भय से भयभीत नही होने वाला आचरण करने पर उतारू हो जाता है, तब "लातों के भूत बातों से नहीं मानते" कहावत को सार्थक करने के लिए सुरक्षा व्यवस्था में लगे पुलिस कर्मियों को दंडात्मक कार्यवाही करनी पड़ती है।

आज विश्व पटल पर"कोरोना वाइरस" विश्वव्यापी वैश्विक आपदा घोषित हो चुकी है। भारतीयों को ही नही अपितु सम्पूर्ण मानव जाति को इस मृत्युदूत से जंग व्यक्तिगत रूप से अकेले ही लड़नी होगी। लड़ाई के लिए हथियारों का निर्माण भी प्रत्येक को स्वयं ही करना होगा। हथियार भी "कोरोना वाइरस" की प्रकृति के अनुकूल चाहिए। अदृश्य और अकाट्य संयम, संतोष, आत्मबल और सामाजिक दूरी बनाए हुए एकांतवास रुपी अस्त्रों से ही इस मानवता के दुश्मन को पराजित किया जा सकता है। "कोरोना वाइरस" का दम घोंटने के लिए मनुष्य की मनुष्य से दूरी ही एकमात्र विकल्प, उपाय और मंत्र है, यह कहना अतिशयोक्ति होगा।

सम्पूर्ण लॉकडाउन से "कोरोना वाइरस" की कड़ी को तोड़ने का अभिप्राय यह नहीं है कि यह वाइरस 12 घंटे तक यदि मनुष्य के संपर्क में नहीं आयेगा तो भूख से मर जायेगा और मनुष्य बच जायेगा। सबसे पहले पाठकों को यह समझना होगा कि घरों में रहकर अपनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढाया जा सकता है। बदलते मौसम और प्रदूषण के कारण सामान्य तौर पर होने वाले खांसी,जुकाम, बुखार और श्वास संबंधी बीमारियों से भी बचा जा सकता है।  

जनसंख्या की दृष्टि से देखा जाए तो भारत में चिकित्सा सुविधाएं नितांत ही अपर्याप्त है। वर्तमान परिस्थितियों में भयवश प्रत्येक नागरिक मामूली-सी सर्दी-जुकाम में भी अस्पतालों की ओर स्वास्थ्य परीक्षण के लिए दौड़ेगा। इन परिस्थितियों में चिकित्सालयों में भीड़ और चिकित्सकों पर दबाव बढ़ना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में "कोरोना वाइरस" के मरीजों की गहन चिकित्सा तथा देखभाल में व्यवधान उत्पन्न होने की संभावना और इस बीमारी के संक्रमण को नजरंदाज नहीं किया जा सकता । इसलिए भी सम्पूर्ण लाॅकडाउन आवश्यक हो गया था ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिए गए संकेतों से भी यह स्पष्ट हो गया है कि "कोरोना वाइरस" के लिए वैक्सीन की आवश्यकता है। विश्व चिकित्सा जगत के अनुसंधानकर्ता  इसकी खोज और ईजाद  के प्रयास में लगे हैं और आशान्वित है कि आगामी 2-3 महीनों में निश्चित रूप से इसमें सफलता मिल जायेगी।

फिर भी यदि अभी आप लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करेंगे तो "कोरोना वाइरस" नामक रावण, जीवन रुपी सीता का अपहरण करके आपके अस्तित्व को ही संकट में डाल देगा। जिंदगी की जंग के मैदान में आप ही कृष्ण और आप ही नारायणी सेना। आओ सब मिलकर इसका मुकाबला करें।

(लेखिका प्रो. सरोज व्यास, फेयरफील्ड प्रबंधन एवं तकनीकी संस्थान, कापसहेड़ा, नई दिल्ली में डायरेक्टर हैं। डॉ. व्यास संपादक, शिक्षिका, कवियत्री और लेखिका होने के साथ-साथ समाज सेविका के रूप में भी अपनी पहचान रखती है। ये इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के अध्ययन केंद्र की इंचार्ज भी हैं)










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