सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर याचिकाकर्ता और वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश की प्रतिक्रिया

डीएन ब्यूरो

देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की खंडपीठ ने बुधवार को अवैध तरीके से मकान गिराने से जुड़ी याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले के बाद देश के वरिष्ठ पत्रकार और मामले में याचिकाकर्ता मनोज टिबड़ेवाल आकाश का बयान भी सामने आया है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट



नई दिल्ली: वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। यह आदेश मेरी जीत तो है ही इसके अलावा यह महराजगंज जिले के 40 लाख लोगों की जीत है और देश के 140 करोड़ लोगों की जीत है। इस आदेश के बाद महराजगंज में जिन-जिन लोगों को दहशत फैलाकर खुद मकान तोड़ने को मजबूर किया गया, उन सभी को मुआवजा मिलने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महराजगंज में गैरकानूनी ढ़ंग से मनोज टिबड़ेवाल आकाश का मकान गिराया गया है। इसके लिए अफसर दोषी हैं। मुख्य सचिव तत्काल याचिकाकर्ता मनोज टिबड़ेवाल आकाश को 25 लाख का दंडात्मक मुआवजा दें। साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि एक महीने के अंदर जांच कराकर समस्त दोषी अधिकारियों के खिलाफ क्रिमिनल और विभागीय दंडात्मक कार्रवाई कर सुप्रीम कोर्ट को सूचित करें। 

सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अफसरों को कड़ी फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना नोटिस या समय दिये बिना किसी का मकान सिर्फ मुनादी करावकर गिराने की प्रक्रिया सरकार और अफसरों हिटलरशाही है। जहां कहीं भी ऐसा हो, वो कानून का राज नहीं हो सकता।   

सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के मुख्य सचिवों को निर्देश दिया है कि जहां कहीं भी बुलडोजर कार्यवाही होगी वहां पर आज के आदेश का सख्ती से पालन करना होगा। मनमानी कर किसी का मकान देश में नहीं गिराया जा सकता। यह ऐतिहासिक देश भर में एक लैंडमार्क जजमेंट के रुप में सामने आया है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को सड़क या किसी तरह के सार्वजनिक निर्माण या अतिक्रमण हटाने के दौरान किसी मकान को गिराने से पहले सभी कानूनी प्रकियाओं का पालन करने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में डिमार्केशन करने के साथ ही मकान मालिकों नोटिस और अन्य जानकारी भी समय पर देनी जरूरी है।

देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की खंडपीठ ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल पहले 13 सितंबर 2019 को यूपी के महराजगंज जिले में वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के पैतृक मकान को बुलडोजरों से बिना विधिक प्रक्रिया के गिराने जाने के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। मामले की सुनवाई करीब 1 घंटे 40 मिनट तक चली।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा पीठ में जस्टिस जेबी पार्डिवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल रहे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था। सुनवाई करते हुए जजों ने काफी तल्ख टिप्पणियां की। याचिकाकर्ता व वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश की ओर से कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्दार्थ भटनागर, शुभम कुलश्रेष्ठ, ओपी व्यास और आदित्य ने दलीलें पेश की।  

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सुनवाई के दौरान, पीठ ने इस तरह की मनमानी के लिए राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की और कहा, "आप कहते हैं कि वह एक अतिक्रमणकारी था लेकिन आप इस तरह से लोगों के घरों को कैसे ध्वस्त करना शुरू कर सकते हैं? यह अराजकता है कि किसी के घर में घुसकर बिना किसी नोटिस के उसे ध्वस्त कर दिया जाए।

"सीजेआई ने राज्य सरकार से याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश देते हुए कहा, "यह पूरी तरह से मनमानी है। उचित प्रक्रिया का पालन कहां किया गया? हमारे पास हलफनामा है, जिसमें कहा गया है कि कोई नोटिस जारी नहीं किया गया, आप केवल मौके पर गए और लाउडस्पीकर के जरिए लोगों को सूचित किया।" 

इस पर न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, जो न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के साथ पीठ का हिस्सा थे, ने कहा, "यह बहुत मनमानी है। आप बुलडोजर लेकर नहीं आ सकते और रातों-रात घर नहीं तोड़ सकते। आप परिवार को घर खाली करने का समय नहीं देते। घरेलू सामानों का क्या? उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। आप केवल ढोलकी कराकर लोगों से घर खाली करने और उन्हें ध्वस्त करने के लिए नहीं कह सकते। उचित नोटिस दिया जाना चाहिए।"

पीठ ने यूपी के मुख्य सचिव को अवैध विध्वंस के लिए जिम्मेदार सभी अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ जांच करने और अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का भी निर्देश दिया और कहा कि निर्देशों का एक महीने के भीतर सख्ती से पालन किया जाना है।










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