इंडिया बनाम भारत: सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई से किया इंकार, कही ये बात
उच्चतम न्यायालय ने देश के अंग्रेजी नाम ‘इंडिया’ को बदलकर ‘भारत’ या ‘हिन्दुस्तान’ करने संबंधी याचिका पर विचार करने से बुधवार को इनकार कर दिया। जानिये, क्या बोली शीर्ष अदालत..
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने देश के अंग्रेजी नाम ‘इंडिया’ को बदलकर ‘भारत’ या ‘हिन्दुस्तान’ करने संबंधी याचिका पर विचार करने से बुधवार को इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता से कहा कि वह अपनी बात सरकार के समक्ष रखें।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता नम: की ओर से पेश वकील अश्विन वैश्य की दलीलें सुनने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता अपना ज्ञापन सरकार को दें।
Supreme Court disposes off petition seeking its directions to the Centre to amend Constitution & replace the word 'India' with 'Bharat', directs petitioner to send copy of his writ petition as representation to concerned ministry(s) which will decide representation appropriately. pic.twitter.com/ZZK4NXV4QF
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— ANI (@ANI) June 3, 2020
सुनवाई की शुरुआत करते हुए वकील ने दलील दी कि इंडिया नाम ग्रीक शब्द ‘इंडिका’ से निकला है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता यहां क्यों आये हैं? संविधान में देश का नाम भारत है ही।
न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, “हमारे संविधान की शुरुआत में ही लिखा गया है, ‘इंडिया दैट इज भारत’ (इंडिया जो भारत है)। आपको क्या समस्या है?” याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि सदियों से भारत और भारत माता की जय बोला जाता रहा है। इस पर न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि याचिकाकर्ता अपना ज्ञापन गृह मंत्रालय को दें।
याचिकाकर्ता ने ‘इंडिया’ शब्द को औपनिवेशिक और गुलामी का प्रतीक बताते हुए संविधान के अनुच्छेद एक में संशोधन का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया था। याचिकाकर्ता ने यह याचिका वकील राजकिशोर चौधरी के माध्यम से दायर की थी।
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याचिका में कहा गया था कि इंडिया की जगह भारत नामकरण से देश में एक राष्ट्रीय भावना पैदा होगी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में 15 नवंबर, 1948 को हुए संविधान के मसौदे का भी उल्लेख किया था, जिसमें संविधान के प्रारूप एक के अनुच्छेद एक पर बहस करते हुए एम. अनंतशयनम अय्यंगर और सेठ गोविन्द दास ने ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत, भारतवर्ष, हिंदुस्तान’ नामों को अपनाने की वकालत की थी। (वार्ता)