Mukhtar Ansari: जुर्म की दुनिया का बादशाह कैसे बना यूपी का सियासी सितारा, पढ़िये माफिया मुख्तार अंसारी की पूरी क्राइम कुंडली

डीएन ब्यूरो

तीन दशक से अधिक समय तक जरायम की दुनिया में हुकूमत करने माफिया मुख्तार अंसारी की तूती पूर्वांचल की राजनीति में भी सिर चढ़ कर बोलती थी। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

माफिया  मुख्तार अंसारी
माफिया मुख्तार अंसारी


गाजीपुर: माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी ने गुरूवार की रात को दुनिया को अलविदा कह दिया। ताउम्र चर्चाओं में रहने वाले माफिया मुख्तार की मौत भी सुर्खियों में है। तीन दशक से अधिक समय तक जरायम की दुनिया में अपना सिक्का जमाने वाले माफिया सरगना मुख्तार अंसारी की तूती पूर्वांचल की राजनीति में भी सिर चढ़ कर बोलती थी। गैंगस्टर के रूप में हर घर-गांव और शहर में उसकी चर्चा होती थी। बदलते वक्त के साथ वह यूपी की सियासत में हमेशा सुर्खियों में रहने लगा।  

गाजीपुर के यूसूफपुर मोहम्मदाबाद निवासी माफिया पिछले करीब तीन साल से बांदा जेल में बंद था।अंसारी की मौत के बाद उसके राजनीतिक क्षेत्र मऊ और गृह जनपद गाजीपुर में ऐहतियात के तौर पर अलर्ट घोषित कर दिया गया है।

मुख्तार का अंतिम संस्कार आज यूसुफपुर मोहम्मदाबाद स्थित उसके पैतृक शमशान कब्रिस्तान में किया जायेगा।

मुख्तार अंसारी के दादा मुख्‍तार अहमद अंसारी कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष भी रहे, वहीं मुख्‍तार के नाना ब्रिगेड‍ियर उस्‍मान महावीर चक्र व‍िजेता रहे। मुख्तार अंसारी के पिता भी अपने समय के बड़े वामपंथी नेताओं में शुमार रहे।

रूंगटा अपहरण और हत्याकांड

दबंग छवि को लेकर पूर्वांचल की राजनीति का बादशाह बने मुख्तार अंसारी विहिप अंतरराष्ट्रीय कोषाध्यक्ष नंदकिशोर रूंगटा अपहरण और हत्याकांड के बाद जयराम की दुनिया का सिरमौर बना था। मुख्तार अंसारी अपने छात्र जीवन से ही काफी दबंग युवा माना जाता रहा। 30 जून 1963 को गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में सुबहानउल्लाह अंसारी और बेगम राबिया के घर जन्में मुख्‍तार अंसारी तीन भाईयों में सबसे छोटा था।

मुख्तार अंसारी दबंगई करते हुए कब अपराधिक जीवन में पहुंचा, इसकी खबर दुनिया को तब लगी जब वह अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए चुनाव लड़ने का निर्णय लिया।

योजनाबद्ध तरीके से जनवरी 1997 में मुख्तार अंसारी ने नंदकिशोर रुंगटा जो उस समय विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष का अपहरण उनके आवास से कर लिया। उनको छोड़ने की आवाज में तीन करोड रुपए फिरौती के रूप में मांगी गई जो उसे समय की काफी बड़ी रकम हुआ करती थी।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार रकम प्राप्त होने के बाद भी नंदकिशोर रुंगटा को मारकर शव गायब कर दिया गया जो आज तक प्राप्त नहीं हो सका। इस घटना के बाद मुख्तार अंसारी अपराध जगत का एक नया स्तंभ बनकर उभरा।

राजनैतिक सफर 

उसके बाद मुख्तार अंसारी मऊ से चुनाव लड़कर विधायक बना जो लगातार विधायक का चुनाव जीतता रहा। इस दौरान मुख्तार अंसारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कद्दावर नेता मोहन मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ वाराणसी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा जो काफी कम मतों से पराजित हुआ। इस दौरान मुख्तार अंसारी पूरे पूर्वांचल में माफिया जगत का बादशाह बन गया था। कोयला व्यवसाय से लेकर सरकारी ठेकों में मुख्तार अंसारी की इजाजत के बिना कोई कार्य संभव नहीं हो पता था।

यहां तक की मऊ जनपद में पीडब्ल्यूडी व अन्य सरकारी ठेकों के वितरण का काम मुख्तार अंसारी ही देखता रहा। अपराध जगत में साम्राज्य बढ़ता गया और लगातार अपराधिक घटनाएं भी बढ़ती गई। दर्जन भर से अधिक हत्याएं हुई जिसमें सीधे-सीधे परोक्ष से अपरोक्ष रूप से मुख्तार अंसारी का ही नाम आया।

कृष्णानंद राय की उनके सात साथियों की हत्या

2005 में मऊ में हुए दंगों में खुली जिप्सी के ऊपर मुख्तार का लहराता वीडियो उसके द्वारा की जा रही अपील एक अलग ही हवा खड़ा करता नजर आया। 2005 में ही गाजीपुर के मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र से तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय की उनके सात साथियों समेत गोली मारकर हत्या की गयी। इस हत्याकांड में 500 से अधिक राउंड गोली चले थे।

इस तरह से देखें तो एक दबंग छवि का युवक मुख्तार अपराधिक जगत का बादशाह बन गया था। इतना ही नहीं वह अपनी व्यवस्थाओं के चलते पूर्वांचल की आधा दर्जन विधानसभा सीटों का मालिक भी बन बैठा था। जहां वह कभी बसपा व सपा के बैनर तले विधायक बना। कई बार निर्दल भी चुनाव जीत गया।

इस दौरान मुख्तार अंसारी ने हिंदू मुस्लिम एकता दल, कौमी एकता दल जैसी छोटी-छोटी पार्टियों का भी गठन किया। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के लगभग 7- 8 लोकसभा और लगभग 35-40 व‍िधानसभा सीटों पर माफिया मुख्तार अंसारी का सीधा या आंशिक प्रभाव माना जाता रहा है। कभी पूर्वांचल के वाराणसी, गाजीपुर, बल‍िया, जौनपुर और मऊ में मुख्‍तार अंसारी की तूती बोलती थी।

इन जिलों में मुख्‍तार अंसारी और इसके कुनबे का दबदबा माना जाता रहा है। यही वजह थी कि कभी सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव तो कभी बसपा मुखिया मायावती ने मुख्तार को अपनाया । मायावती ने तो मुख्तार अंसारी को गरीबों का मसीहा तक कह डाला था।

नब्बे के दशक में गाजीपुर मऊ, बलिया ,वाराणसी और जौनपुर में सरकारी ठेकों को लेकर गैंगवार शुरू हो गए थे। इस दौर में इन जिलों में सबसे चर्चित नाम मुख्तार अंसारी का रहा था। मुख्तार अंसारी 1996 में पहली बार बसपा से मऊ सदर से विधायक बना और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। मुख्तार ने मऊ को अपना गढ़ बनाया और यहां से लगातार पांच बार 2022 तक विधायक रहा।

मुख्तार अंसारी ने 2002 में बसपा से टिकट न मिलने पर निर्दल मऊ सदर से चुनाव लड़ने का फैसला किया और जीत हासिल की उसके बाद उसने अपनी खुद की पार्टी का गठन किया और कौमी एकता दल के नाम से चुनाव मैदान में उतरा और लगातार दो बार जीत हासिल की।

2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार ने एक बार फिर बसपा का दामन थामा और अपने पार्टी कौमी एकता दल का बसपा में विलय कर लिया और जीत हासिल की। 2022 में विधान सभा चुनाव में किन्ही कारणों से उसने चुनाव लड़ने से मना कर दिया और इस सीट पर अपने बेटे अब्बास अंसारी को मैदान में उतारा और मुख्तार की विरासत मऊ सदर पर अब्बास ने जीत हासिल कर ली।

आलम यह रहा की योगी सरकार के अपराध के खिलाफ चलाए जा रहे हैं मुहिम में 2024 तक माफिया मुख्तार की लगभग 500 करोड़ की संपत्ति या तो जब्त की जा चुकी है या उस पर बुलडोजर चलाया जा चुका है।










संबंधित समाचार