धार्मिक नाम वाली पार्टियों के खिलाफ याचिका पर अदालत ने केंद्र से चार सप्ताह में मांगा जवाब
दिल्ली उच्च न्यायालय ने “जाति, धर्म, नस्ल या भाषाई’ संबंध वाले नाम रखने और राष्ट्रीय ध्वज से मिलता-जुलता झंडा इस्तेमाल करने वाले राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का आग्रह करने वाली याचिका पर केंद्र को उसका मत बताने के लिए बुधवार को चार सप्ताह का समय दिया है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने “जाति, धर्म, नस्ल या भाषाई’ संबंध वाले नाम रखने और राष्ट्रीय ध्वज से मिलता-जुलता झंडा इस्तेमाल करने वाले राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का आग्रह करने वाली याचिका पर केंद्र को उसका मत बताने के लिए बुधवार को चार सप्ताह का समय दिया है।
मुख्य न्यायाधीश सतीशचंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ को सूचित किया गया कि 2019 में जनहित याचिका पर नोटिस जारी करने के बावजूद केंद्र सरकार ने अब तक जवाब दाखिल नहीं किया है।
पीठ ने कहा कि वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में केंद्र सरकार “ समान रूप से महत्वपूर्ण पक्ष’ है। पीठ ने यह भी कहा, “ भारतीय संघ के वकील ने निर्देश लेने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा है। उन्हें चार सप्ताह का समय दिया जाता है।'
इस मामले में निर्वाचन आयोग पहले ही अपना जवाब दायर कर चुका है लेकिन अदालत ने उसके वकील से इस मामले में और निर्देश लेने को कहा।
उपाध्याय ने अपनी याचिका में दलील दी है कि धार्मिक संबंध वाले नामों का इस्तेमाल या राष्ट्रीय ध्वज या प्रतीक से मिलते जुलते प्रतीकों का उपयोग करने से एक प्रत्याशी की संभावना प्रभावित हो सकती है और यह जन प्रतिनिधि कानून (आरपीए) की धारा 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण के समान है।
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याचिका में कहा गया है, “ जाति, धर्म, नस्ल या भाषाई संबंध वाले नामों से पंजीकृत राजनीतिक दलों की समीक्षा की जाए और सुनिश्चित किया जाए कि वे राष्ट्रीय ध्वज जैसे दिखने वाले झंडे का इस्तेमाल नहीं करें और अगर वे तीन महीने के अंदर बदलाव करने में विफल रहते हैं तो उनका पंजीकरण रद्द किया जाए।”
याचिका में कहा गया है कि ऐसे कदम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में मदद करेंगे।
याचिका में हिंदू सेना, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलीमीन और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसे राजनीतिक दलों का हवाला ऐसे उदाहरणों के तौर पर दिया गया है जिनके नाम धार्मिक संबंध वाले हैं और कहा कि यह आरपीए तथा आदर्श आचार संहिता की ‘भावना के खिलाफ’ है।
इसमें यह भी कहा गया है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दल हैं जो राष्ट्रीय ध्वज से मिलता जुलता झंडा इस्तेमाल करते हैं।
साल 2019 में दायर किए गए अपने जवाब में निर्वाचन आयोग ने कहा कि 2005 में उसने नीतिगत फैसला किया था जिसके तहत धार्मिक संबंध रखने वाले नाम से किसी भी दल का पंजीकरण नहीं किया जाएगा और ऐसी कोई पार्टी पंजीकृत नहीं की गई है।
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आयोग ने कहा था कि 2005 से पहले पंजीकृत ऐसे दलों का पंजीकरण रद्द नहीं किया जाएगा।
उसने यह भी कहा कि राष्ट्रीय ध्वज से मिलता जुलता झंडा इस्तेमाल करने का मामला है और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का ऐसा झंडा है तो इस मामले पर उच्चतम न्यायालय फैसला कर चुका है जिसने कहा है कि पार्टी लंबे वक्त से इसका इस्तेमाल कर रही है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, आयोग ने यह भी कहा कि उसने अलग से सभी मान्यता प्राप्त दलों को धर्म या जाति के आधार पर वोट नहीं मांगने के उच्चतम न्यायायलय के निर्देश पर ध्यान देने और इसका सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
उसने कहा कि धर्म या जाति के आधार पर वोट मांगना भी आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन करता है। मामले की अगली सुनवाई नौ अगस्त को होगी।