Bihar Caste Census: जाति आधारित गणना को लेकर हाई कोर्ट पहुंचा ट्रांसजेंडर समुदाय, जानें पूरा माजरा

डीएन ब्यूरो

पटना उच्च न्यायालय द्वारा बिहार में जाति आधारित गणना की अनुमति दिए जाने के बाद राज्य के ट्रांसजेंडर समुदाय को उम्मीद है कि इस अभ्यास में थर्ड जेंडर को एक जाति के रूप में शामिल किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत उनकी चिंताओं का समाधान करेगी। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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पटना: पटना उच्च न्यायालय द्वारा बिहार में जाति आधारित गणना की अनुमति दिए जाने के बाद राज्य के ट्रांसजेंडर समुदाय को उम्मीद है कि इस अभ्यास में थर्ड जेंडर को एक जाति के रूप में शामिल किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत उनकी चिंताओं का समाधान करेगी।

ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता और बिहार के गैर सरकारी संगठन ‘दोस्तानासफ़र’ की संस्थापक सचिव रेशमा प्रसाद ने बृहस्पतिवार को कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस मामले की अगली सुनवाई के दिन, 10 अगस्त को उनकी चिंताओं के निराकरण की दिशा में अदालत द्वारा विचार किया जाएगा।

प्रसाद ने ही जाति आधारित जनगणना के फॉर्मेट में थर्ड जेंडर को एक अलग जाति के रूप में शामिल किए जाने के विरोध ट्रांसजेंडर समुदाय की ओर से पटना उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है।

याचिकाकर्ता के वकील शाश्वत ने पीटीआई-भाषा को बताया कि बुधवार को पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने उनके मुवक्किल की याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से अपने समुदाय के लोगों से बात करके बताने को कहा है।

उन्होंने कहा कि पटना उच्च न्यायालय द्वारा अब इस मामले को 10 अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

पटना उच्च न्यायालय की इसी पीठ ने मंगलवार को बिहार में नीतीश कुमार नीत सरकार के जाति आधारित गणना के निर्णय को 'पूरी तरह से वैध' करार देते हुए इसको चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था।

शाश्वत ने कहा, “बुधवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पीठ के समक्ष पेश मेरी दलील बिल्कुल स्पष्ट थीं। ट्रांसजेंडर समुदाय अभी भी चल रहे जातीय सर्वेक्षण से व्यथित है क्योंकि यह लिंग पहचान को जाति पहचान के साथ जोड़ता रहता है। थर्ड जेंडर के सदस्यों को एक अलग जाति नहीं माना जा सकता है।’’

रेशमा ने डाइनामाइट न्यूज़ से बातचीत में कहा, ''जाति-सर्वेक्षण प्रक्रिया के दौरान 'थर्ड जेंडर’ को एक अलग जाति मानने का बिहार सरकार का निर्णय एक 'आपराधिक कृत्य' है। हम पटना उच्च न्यायालय के आभारी हैं कि हमारी आवाज सुनी जा रही है। हमारे वकील ने बुधवार को सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय के समक्ष इस मुद्दे को बहुत प्रभावी ढंग से उठाया है।''

उन्होंने कहा, 'हम अपनी मांग पर कायम हैं कि राज्य सरकार को जाति आधारित गणना के दूसरे चरण के दौरान इस्तेमाल किए गए प्रारूप को वापस लेना चाहिए जिसमें 'ट्रांसजेंडर' को एक जाति के रूप में दिखाया गया है।’’

रेशमा ने कहा, 'हम इस मुद्दे को 10 अगस्त को सुनवाई की अगली तारीख पर उच्च न्यायालय के समक्ष उठाएंगे। हमें उसी तरह आरक्षण दिया जाना चाहिए जैसे कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और कुछ अन्य राज्यों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को दिया गया है।'

जाति आधारित गणना के दूसरे चरण के दौरान, प्रत्येक जाति को उपयोग के लिए एक संख्यात्मक कोड दिया गया है। विभिन्न जातियों को कुल 215 कोड आवंटित किए गए थे और इस प्रारूप में थर्ड जेंडर को भी जाति के रूप में मानते हुए इनके लिए भी एक अलग जाति कोड वर्णित किया गया है।

राज्य सरकार ने जनवरी में दो चरण का जाति सर्वेक्षण शुरू किया था और मई में अदालत द्वारा प्रक्रिया पर रोक लगाने से पहले अंतिम चरण का लगभग आधा काम पूरा कर लिया था।










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