राजस्थान में महिला अपराध में जांच का औसत समय घटकर 69 दिन हुआ : डीजीपी मिश्रा

राजस्थान के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) उमेश मिश्रा ने सोमवार को दावा किया कि राज्य में महिला अपराधों में जांच का औसत समय बीते साल घटकर 69 दिन रह गया जो कि 2018 में 211 दिन था। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 16 January 2023, 3:58 PM IST
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जयपुर: राजस्थान के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) उमेश मिश्रा ने सोमवार को दावा किया कि राज्य में महिला अपराधों में जांच का औसत समय बीते साल घटकर 69 दिन रह गया जो कि 2018 में 211 दिन था।

उन्होंने कहा कि राज्य पुलिस जनता के सम्मान, जीवन एवं संपत्ति की रक्षा और जवाबदेह, पारदर्शी व संवेदनशील पुलिस-प्रशासन देने के उद्देश्य से काम कर रही है।

इसके साथ ही डीजीपी ने दुष्कर्म के मामलों में राजस्थान को देश में पहले स्थान पर बताए जाने को गलत धारणा करार दिया।

मिश्रा ने यहां पुलिस मुख्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में पुलिस के साल भर के कामकाज का लेखा जोखा पेश किया। उन्होंने कहा कि राज्य में जनता के सम्मान, जीवन एवं संपत्ति की सुरक्षा करना और जवाबदेह, पारदर्शी व संवेदनशील पुलिस-प्रशासन देना हमारा लक्ष्य है।

उन्होंने कहा, ‘‘राज्य में महिलाओं के विरुद्ध दर्ज मामलों में जांच का औसत समय जहां 2018 में 211 दिन था वहीं 2022 में मात्र 69 दिन ही रह गया।’’

उन्होंने कहा कि पुलिस ने बाल यौन अपराध संरक्षण (पोक्सो) कानून/दुष्कर्म के मामलों में त्वरित कार्रवाई व गुणवत्तापूर्ण जांच की, जिस कारण पिछले साल ऐसे पांच प्रकरणों में मृत्युदंड, 209 मामलों में 20 वर्ष के कठोर कारावास से आजीवन कारावास की सजा तथा 209 प्रकरण में अन्य सजा दिलायी गई।

मिश्रा ने कहा कि राजस्थान सरकार ने परिवादी को न्याय दिलाने के लिए जून 2019 से मामले के 'निर्बाध पंजीकरण' को महत्ता दी। इस नवाचार के अब सकारात्मक परिणाम भी मिले है। 2018 में दुष्कर्म के 30.5 प्रतिशत मामले अदालत के माध्यम से दर्ज होते थे, जो अब घटकर मात्र 14.4 प्रतिशत रह गए है।

डीजीपी ने कहा, ‘‘एक गलत धारणा यह भी है कि राजस्थान दुष्कर्म के मामलों में भारत में प्रथम स्थान पर है जबकि सच्चाई यह है कि पहला स्थान मध्य प्रदेश का और दूसरा स्थान राजस्थान का है। साथ ही राजस्थान के दूसरे स्थान पर होने का कारण ‘निर्बाध पंजीकरण’ है न की दुष्कर्म की घटनाओं की तुलनात्मक अधिकता क्योंकि हमारे यहां कुल दर्ज प्रकरणों के 41 प्रतिशत मामले अप्रमाणित पाए जाते हैं जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत आठ प्रतिशत है।’’