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बलिया 19 अगस्त 1942 को एक ऐसी ऐतिहासिक घटना का गवाह बना था। जो आज भी हर बलिया वासी के दिल में जीवित है। यह घटना न केवल स्वतंत्रता संग्राम के एक अहम मोड़ को दर्शाती है, बल्कि यह बलिया के क्रांतिकारियों की वीरता और बलिदान का प्रतीक भी बन चुकी है। हर साल बलिया में 19 अगस्त को बलिदान दिवस मनाया जाता है।
बलिया जेल से आजाद हुए थे सभी कैदी
Ballia News: 19 अगस्त को बलिया जेल के बाहर का दृश्य कुछ अलग ही होता है। जैसे ही सुबह के 8:30 बजे होते हैं, जेल के आसपास भारी पुलिस फोर्स और पैरा मिलिट्री की तैनाती हो जाती है। डीएम और एसपी भी घटनास्थल पर दो घंटे से मौजूद होते हैं। लेकिन उसी समय, कुवंर सिंह चौराहे से शोर मचता है और आजादी के तराने गाते हुए क्रांतिकारी जेल की ओर बढ़ते हैं। जेल के बाहर डीएम और एसपी उनका स्वागत करते हैं और फिर फूल-माला पहनाते हैं। जैसे ही क्रांतिकारी जेल के बड़े दरवाजे पर पहुंचते हैं, वह ताला तोड़ देते हैं।
आजादी के गीत गाते बाहर निकले कैदी
जेल के भीतर बंद सभी कैदी आजाद होकर आजादी के गीत गाते हैं और फिर पूरा जत्था बलिया कलक्ट्रेट पर कब्जा करने की ओर चल पड़ता है। यह दृश्य आज भी हर साल 19 अगस्त को बलिया में देखा जाता है, जब बलिया के लोग और प्रशासन मिलकर उस क्रांतिकारी घटना को याद करते हैं। यह एक प्रतीक है उस महान संघर्ष का, जब 1942 में बलिया ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बगावत कर दी थी।
अगस्त क्रांति और बलिया की बगावत
महात्मा गांधी के "करो या मरो" नारे ने पूरे भारत में हलचल मचाई थी, लेकिन बलिया में इस नारे का असर कुछ अलग था। जब गांधी जी और उनके साथियों की गिरफ्तारी की खबर बलिया पहुंची, तो वहां के लोग बुरी तरह से उबाल गए। हंसिया, हथौड़ा, लाठी, बेलन, चिमटा और झाड़ू लेकर लोग सड़कों पर उतर आए। महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन में शामिल हो गई थीं। बलिया में जनाक्रोश चरम पर था, सरकारी दफ्तरों को लूटा जा रहा था, रेल की पटरियां उखाड़ी जा रही थीं। अंग्रेजों ने इस विरोध को कुचलने के लिए कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन बलिया में बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं, और युवक सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। देखते ही देखते, बलिया के लोग कलक्ट्रेट तक पहुंच गए थे और आक्रोश और संघर्ष की लहर में पुलिस और प्रशासन बेबस हो गए थे।
डीएम और क्रांतिकारियों की जंग
उस समय के डीएम जगदीश्वर निगम ने पहले बलिया के आक्रोश को कुचलने की कोशिश की थी, लेकिन बलिया के लोगों की जिद और उनके सामूहिक साहस के आगे वह भी झुक गए। डीएम ने वॉयसराय को संदेश भेजकर कहा कि बलिया अब स्वतंत्र होने से कोई रोक नहीं सकता। बलिया के लोगों के संघर्ष के सामने, अगले दिन डीएम के बेटे शैलेश निगम भी क्रांतिकारियों के साथ शामिल हो गए। लेकिन इसके बाद स्थिति और भी गंभीर हो गई। पुलिस ने 30 छात्रों को गिरफ्तार किया और उन्हें क्रूरता से यातनाएं दीं। जब यह खबर अन्य लोगों को मिली, तो महिलाओं और पुरुषों ने रेलवे स्टेशन, कचहरी और टाउन हाल पर कब्जा कर लिया। उन्होंने वहां से अंग्रेजी झंडे को उखाड़ फेंका, जिससे अंग्रेजी शासन के खिलाफ गुस्सा और भी बढ़ गया।
बैरिया में गोलीबारी और बलिया का संघर्ष
18 अगस्त 1942 को बैरिया में एक खूनी संघर्ष हुआ, जब अंग्रेजों ने 20 क्रांतिकारियों को गोली से उड़ा दिया। इस जघन्य कृत्य के बाद, बलिया के लोगों ने और भी भड़क कर पुलिस थाने को घेर लिया और सभी पुलिसकर्मियों को बंदी बना लिया। इसके बाद 19 अगस्त को क्रांतिकारियों ने जेल के ताले तोड़ने के बाद कलक्ट्रेट पर धावा बोला। जेल में बंद कैदी अब स्वतंत्र हो चुके थे और उन्होंने यह प्रतीकात्मक क्रांति की शुरुआत की। बलिया के लोगों ने तिरंगा फहराया और स्वतंत्रता के लिए अपने संघर्ष को और भी मजबूत कर दिया।
बलिया की आजादी का ऐलान
जब यह घटना डीएम जगदीश्वर निगम को ज्ञात हुई, तो कहा जाता है कि उनकी पैंट गिली हो गई थी। उन्होंने क्रांतिकारियों से अनुरोध किया कि वह बलिया की कमान संभालें, और इसी के साथ चित्तू पांडेय ने डीएम बलिया की कुर्सी पर बैठकर बलिया की आजादी का ऐलान किया। इस ऐतिहासिक घटना के बाद बलिया के लोग हर साल 19 अगस्त को इस दिन को याद करते हैं और बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं। यह दिन उनके लिए एक महत्वपूर्ण इतिहास बन चुका है, जो बलिया के संघर्ष और बलिदान की गाथा को जीवित रखता है।
बलिया के लोग और उनकी श्रद्धांजलि
बलिया में हर साल 19 अगस्त को बलिदान दिवस मनाया जाता है। इस दिन को लेकर शहर में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें स्थानीय लोग और प्रशासन एक साथ मिलकर उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने अपनी जान की कुर्बानी दी थी। यह दिन सिर्फ बलिया ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत में स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। बलिया का संघर्ष यह दर्शाता है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सिर्फ बड़े नेता ही नहीं, बल्कि छोटे शहरों और गांवों में रहने वाले आम लोग भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे थे। बलिया की यह क्रांति न सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि यह भारतीय जनता के सामूहिक साहस, संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है।