

राजस्थान में बच्चों की तस्करी, बाल विवाह और बाल श्रम रोकने के लिए समन्वित कार्रवाई की मुहिम तेज़ हुई है। पुलिस, सरकारी विभागों और स्वयंसेवी संगठनों ने मिलकर बचाव, पुनर्वास और कानूनी कार्रवाई को मजबूत किया है। यह साझा प्रयास बच्चों को सुरक्षित भविष्य देने की दिशा में बड़ा कदम है।
मानव तस्करी से मुकाबले पर राज्य स्तरीय परामर्श
Jaipur: राजस्थान के जयपुर में बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम का आयोजन किया। जयपुर में आयोजित “भारत में मानव दुर्व्यापार में कई विशेषज्ञ और अधिकारी शामिल हुए। इस मौके पर उन्होंने कहा कि राजस्थान में बाल सुरक्षा को लेकर कानूनों के अमल और जवाबदेही तय करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, लेकिन बचाव और अभियोजन के बीच की खाई अब भी बड़ी चुनौती है।
डीजीपी मालिनी अग्रवाल ने कहा “बच्चों की ट्रैफिकिंग को रोकना किसी एक विभाग की जिम्मेदारी नहीं है। इसके लिए सभी विभागों के बीच समन्वय और साझा कार्रवाई जरूरी है। बचाव के बाद बच्चों का पुनर्वास और देखभाल उतनी ही अहम है।”
वक्ताओं ने कहा कि बच्चों की तस्करी, बाल श्रम और बाल विवाह एक-दूसरे से जुड़े हुए गंभीर अपराध हैं। यदि ट्रैफिकिंग के बदलते तरीकों पर लगाम लगानी है तो सभी हितधारकों के बीच मजबूत तालमेल जरूरी है।
बच्चों को ट्रैफिकिंग से बचाने की तैयारी
देश के 418 जिलों में कार्यरत JRC ने अप्रैल 2024 से अप्रैल 2025 के बीच 56,242 बच्चों को ट्रैफिकिंग से मुक्त कराया और 38,353 कानूनी कार्रवाइयां शुरू कीं। राजस्थान में JRC ने 30,878 बाल विवाह रोके और 8000 से अधिक बच्चों को ट्रैफिकिंग व बाल श्रम से बचाया।
RSLSA के सचिव हरिओम अत्री ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। बाल अधिकारिता विभाग के आयुक्त आशीष मोदी ने पुनर्वास सेवाओं को मजबूत करने पर बल दिया ताकि बच्चों को दोबारा शोषण का शिकार बनने से रोका जा सके।
भारत में मानव दुर्व्यापार कार्यक्रम
जस्ट राइट्स के राष्ट्रीय संयोजक रवि कांत ने कहा “ट्रैफिकिंग एक संगठित अपराध है। इसके खिलाफ कानूनी प्रावधानों का प्रभावी क्रियान्वयन, समयबद्ध सुनवाई और अभियोजन प्रणाली को मजबूत करना जरूरी है।”
इस परामर्श में पुलिस, रेलवे, विधिक सेवा प्राधिकरण व स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।