

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस 2025 पर लाल किले से अपने भाषण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का उल्लेख कर नया राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस ने इसे स्वतंत्रता दिवस के राजनीतिकरण और लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन बताया है, जबकि पीएम ने आरएसएस को राष्ट्र सेवा का प्रतीक बताया। इस मुद्दे पर अब तीखी सियासी बहस शुरू हो चुकी है।
इमरान मसूद
New Delhi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2025 को लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की 100वीं वर्षगांठ का उल्लेख करते हुए इसे राष्ट्र सेवा का एक स्वर्णिम अध्याय बताया। उन्होंने कहा कि “व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण” के संकल्प के साथ आरएसएस के स्वयंसेवकों ने मातृभूमि की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया है। यह बयान न सिर्फ ऐतिहासिक रूप से अलग था, बल्कि राजनीतिक रूप से एक नई बहस की शुरुआत भी बन गया।
'दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन'
अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “आज, मैं गर्व के साथ कहना चाहता हूँ कि 100 वर्ष पूर्व एक संगठन का जन्म हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। राष्ट्र की सेवा के 100 वर्ष एक गौरवपूर्ण, स्वर्णिम अध्याय हैं। एक तरह से, आरएसएस दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन है।” पीएम के इस बयान को आरएसएस के योगदान की सार्वजनिक स्वीकृति के तौर पर देखा जा रहा है, जो आमतौर पर स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय आयोजनों में कम देखने को मिलता है।
‘52 साल तक तिरंगा नहीं फहराया’
प्रधानमंत्री के इस बयान पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा, “आरएसएस ने 52 साल तक तिरंगा नहीं फहराया, भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया, और ब्रिटिश सेना में शामिल होने के लिए भारतीयों से अपील की।” उन्होंने आरोप लगाया कि स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस का कोई योगदान नहीं था, और इसलिए प्रधानमंत्री को ऐसे संगठन का महिमामंडन करने से बचना चाहिए। इमरान मसूद ने सवाल उठाया कि जो संगठन संविधान और तिरंगे में विश्वास नहीं करता था, उसे स्वतंत्रता दिवस जैसे पवित्र दिन पर कैसे सम्मानित किया जा सकता है?
जयराम रमेश का आरोप: ‘प्रधानमंत्री थक चुके हैं’
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की मंशा पर ही सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री अब पूरी तरह से आरएसएस की दया और मोहन भागवत के आशीर्वाद पर निर्भर हैं। यह आरएसएस को खुश करने की हताश कोशिश है।” रमेश ने आगे कहा कि स्वतंत्रता दिवस के मंच का राजनीतिकरण करके प्रधानमंत्री ने संविधान और लोकतंत्र की भावना का अपमान किया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि, “प्रधानमंत्री थक चुके हैं और जल्दी ही सेवानिवृत्त होंगे। ऐसे में यह प्रयास उनके कार्यकाल के विस्तार के लिए किया गया है।” कांग्रेस ने पूरे घटनाक्रम को प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत और संगठनात्मक स्वार्थ से प्रेरित राजनीति बताया।
क्या यह स्वतंत्रता दिवस का राजनीतिकरण है?
कांग्रेस का तर्क है कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय एकता और गर्व के दिन को भी राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया। आरएसएस, जो कि एक राजनीतिक रूप से विवादास्पद संगठन माना जाता है, का लाल किले से सार्वजनिक प्रशंसा करना इस समारोह की गैर-राजनीतिक परंपरा के विपरीत है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान प्रधानमंत्री की वैचारिक निष्ठा को दर्शाता है, लेकिन स्वतंत्रता दिवस जैसे मंच से इसकी सार्वजनिक अभिव्यक्ति सवालों के घेरे में है।