

बिहार में चुनाव आयोग द्वारा जारी विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज होगी। राजनीतिक दलों ने मतदाता सूची की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि 99.5% मतदाताओं ने दस्तावेज जमा किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट सोमवार को बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण बन गया है क्योंकि इसमें केवल तकनीकी और प्रशासनिक मुद्दे नहीं हैं, बल्कि मतदाताओं के अधिकार, पारदर्शिता, और राजनीतिक विश्वास का गंभीर सवाल भी जुड़ा हुआ है। इन याचिकाओं में कई प्रमुख राजनीतिक दलों जैसे राष्ट्रीय जनता दल (RJD), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की याचिकाएं शामिल हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है और लाखों वैध मतदाताओं को सूची से बाहर किया जा सकता है।
24 जून 2025 को चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की घोषणा की थी। इसके तहत 1 अगस्त को मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित की गई थी, और मतदाताओं को 1 सितंबर तक दावा या आपत्ति दर्ज करने का मौका दिया गया। लेकिन राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर आरोप लगाया कि प्रक्रिया ठीक से प्रचारित नहीं की गई और बड़ी संख्या में मतदाताओं को इसका पता ही नहीं चला। याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि ऑनलाइन दावा दर्ज करने का विकल्प प्रभावी नहीं था, जिससे ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को खासा नुकसान हुआ।
चुनाव आयोग
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ सोमवार को उन जवाबों पर विचार करेगी, जो याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग के उस नोटिस के जवाब में दाखिल किए हैं जिसमें आयोग ने कहा है कि बिहार में मसौदा मतदाता सूची में शामिल 7.24 करोड़ में से 99.5 प्रतिशत मतदाताओं ने आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं। आयोग ने यह भी कहा है कि 22 अगस्त तक, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार ऑनलाइन मोड में दावे करने की सुविधा भी दी गई थी, लेकिन उसके बावजूद केवल 22,723 दावे और 1,34,738 आपत्तियां ही प्राप्त हुईं।
22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करे कि जिन मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं। उन्हें ऑनलाइन के साथ-साथ ऑफलाइन माध्यम से भी दावा करने का अवसर मिले। कोर्ट ने यह भी माना कि राज्य में मतदाता सूची को लेकर भ्रम और अविश्वास की स्थिति बनी हुई है।
RJD, AIMIM और अन्य दलों का कहना है कि 1 सितंबर तक की समय सीमा अपर्याप्त थी। उनका तर्क है कि बिहार जैसे राज्य में, जहां बड़ी जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में निवास करती है और डिजिटल साक्षरता सीमित है, वहां इतनी कम समय में दावा और आपत्ति दर्ज करना संभव नहीं था।
चुनाव आयोग ने इन मांगों का विरोध करते हुए कहा है कि यदि दावे-आपत्तियों के लिए समय बढ़ाया गया, तो इससे पूरी चुनाव प्रक्रिया की टाइमलाइन गड़बड़ा जाएगी। आयोग के मुताबिक, मसौदा सूची पर दावे एक सितंबर तक दर्ज किए जा चुके हैं और अब इन पर विचार कर 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।