

बिहार की सियासत एक बार फिर करवट लेने को तैयार है लेकिन इस बार मुद्दा न मंदिर है, न मंडल। 2025 के विधानसभा चुनाव के पहले, ‘नौकरी और रोज़गार’ वह चिंगारी बन गया है जिसने महागठबंधन के अंदर ही सवालों की आग सुलगा दी है। अब सवाल उठ रहा है क्या कांग्रेस ‘महागठबंधन’ के भीतर ही एक नया ‘राजनीतिक मैदान’ बना रही है? या यह सिर्फ एक चुनावी रणनीति है?
बिहार में चुनाव को लेकर सियासत तेज (इंटरनेट)
Patna: बिहार की सियासत एक बार फिर करवट लेने को तैयार है लेकिन इस बार मुद्दा न मंदिर है, न मंडल। 2025 के विधानसभा चुनाव के पहले, ‘नौकरी और रोज़गार’ वह चिंगारी बन गया है जिसने महागठबंधन के अंदर ही सवालों की आग सुलगा दी है। अब सवाल उठ रहा है क्या कांग्रेस ‘महागठबंधन’ के भीतर ही एक नया ‘राजनीतिक मैदान’ बना रही है? या यह सिर्फ एक चुनावी रणनीति है?
19 जुलाई को पटना के ज्ञान भवन में कांग्रेस का आयोजित होने वाला ‘महा-रोजगार मेला’ अब सिर्फ एक नौकरियों का आयोजन नहीं रह गया, बल्कि यह एक राजनीतिक संदेश का मंच बन गया है। इस मेले में जहां 120 से अधिक कंपनियों के आने की बात है, वहीं कांग्रेस का नारा “युवाओं को सम्मानजनक रोजगार” न केवल सरकार पर हमला करता है, बल्कि तेजस्वी यादव की रणनीतिक पकड़ पर भी सवाल खड़े करता है। राजद को यह डर सता रहा है कि कांग्रेस इस रोजगार अभियान को अपनी “स्वतंत्र पहचान” बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकती है। और यही बात महागठबंधन में हलचल पैदा कर रही है।
इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस और राजद दोनों “रोज़गार” की बात तो कर रहे हैं, लेकिन उसके पीछे की मंशा अलग दिख रही है। राजद जहां इसे तेजस्वी यादव की पुरानी पहल का विस्तार बता रही है, वहीं कांग्रेस इसे नीतीश सरकार के ‘फेल्योर’ का आईना कहकर प्रचारित कर रही है। प्रवक्ता असित नाथ तिवारी का बयान कि “कांग्रेस का रोजगार मेला एनडीए की असफलता का आईना है” सीधे-सीधे मुख्यमंत्री नीतीश पर हमला है, लेकिन यह महागठबंधन के ‘सीएम फेस’ को लेकर भी अंतर्विरोध पैदा करता है।
पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस द्वारा बार-बार सीएम फेस पर चुप्पी और स्वतंत्र कार्यक्रमों से यह संदेह पुख्ता हुआ है कि पार्टी बिहार की राजनीतिक ज़मीन को अकेले नापने की दिशा में सोच रही है। पप्पू यादव द्वारा दलित और मुस्लिम चेहरे की मांग, और कांग्रेस का समर्थन न करते हुए चुप रह जाना – क्या यह सिर्फ संयोग है? कहीं कांग्रेस महागठबंधन की छत के नीचे खड़ी होकर नई ईंटें तो नहीं जोड़ रही?
नीतीश कुमार के 1 करोड़ रोजगार के वादे के बाद से ही यह साफ हो गया था कि 2025 का चुनाव सिर्फ जाति और समीकरणों पर नहीं, बल्कि नौकरी की हकीकत पर भी लड़ा जाएगा।
तेजस्वी यादव ने शिक्षक बहाली से लेकर युवाओं को “आश्वासन की ताकत” देने की कोशिश की, और अब कांग्रेस ने युवाओं को “प्रत्यक्ष नौकरी के अवसर” देने का कार्ड खेला है। सवाल यह नहीं कि रोजगार मेला कितना सफल होगा, सवाल यह है कि इसका सियासी श्रेय किसे मिलेगा?
जहां महागठबंधन अंदरूनी प्रतिस्पर्धा से जूझ रहा है, वहीं बीजेपी अभी “बाहरी हमले” का इंतजार कर रही है। अगर कांग्रेस और राजद के बीच यह श्रेय युद्ध बढ़ता है, तो बीजेपी को 2020 जैसी स्थिति फिर मिल सकती है जहां विरोधियों के बिखराव से उसे सीधा फायदा हुआ।