आखिर क्यों पंजाब बार-बार झेलता बाढ़ की मार, सरकार के लिए राहत पहुंचाना बना बड़ी चुनौती; पढ़ें पूरा विश्लेषण

पंजाब इन दिनों भयंकर बाढ़ की चपेट में है, जहां 1,902 गांव पानी में डूब चुके हैं और लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। सरकारी राहत अभियान जारी है, लेकिन चुनौतियां भी बड़ी हैं। इस आपदा ने राज्य की जल प्रबंधन नीतियों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 7 September 2025, 3:36 PM IST
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New Delhi: पंजाब इस समय एक अभूतपूर्व जल संकट से जूझ रहा है। राज्य के सभी 23 जिलों को बाढ़ प्रभावित घोषित किया जा चुका है। शुक्रवार को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 1,902 गांव पूरी तरह जलमग्न हो चुके हैं, 3.8 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं और लगभग 11.7 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि बर्बाद हो चुकी है। इस आपदा में अब तक कम से कम 43 लोगों की जान जा चुकी है। बाढ़ की भयावहता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गांव के गांव डूब चुके हैं और हजारों परिवारों को अपने घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करना पड़ा है। सड़कों पर नावें चल रही हैं, बिजली-पानी की आपूर्ति ठप है और संचार व्यवस्था भी बाधित हो चुकी है। सरकार और एनडीआरएफ की टीमें राहत एवं बचाव कार्यों में जुटी हैं, लेकिन हालत बेहद चुनौतीपूर्ण हैं।

क्यों आती है पंजाब में इतनी भयावह बाढ़?

पंजाब को ‘पांच नदियों की भूमि’ कहा जाता है रावी, ब्यास, सतलुज, झेलम और चिनाब जिनमें से तीन प्रमुख नदियां भारत के पंजाब से होकर गुजरती हैं। ये नदियां जहां इस क्षेत्र को उपजाऊ बनाती हैं, वहीं मानसून के समय इनका उफान बाढ़ की वजह बन जाता है।

1. भौगोलिक स्थिति और नदियों का जाल
रावी नदी पठानकोट और गुरदासपुर से होकर गुजरती है। ब्यास नदी होशियारपुर, कपूरथला, अमृतसर, तरनतारन तक जाती है। सतलुज पंजाब के कई जिलों जैसे रोपड़, लुधियाना, फिरोजपुर से गुजरती है। इसके अलावा मौसमी नदियां जैसे घग्गर और छोटी धाराएं, जिन्हें 'चोई' कहा जाता है, भी बारिश के मौसम में भारी जलप्रवाह लाती हैं।

क्यों पंजाब बार-बार झेलता बाढ़ की मार

2. बांधों का दबाव और जल प्रबंधन की कमी
राज्य में तीन प्रमुख बांधों भाखड़ा, पोंग और रंजीत सागर का जलस्तर जब बढ़ जाता है, तो पानी छोड़ना पड़ता है जिससे निचले क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। हाल ही में, 26 अगस्त को थीन बांध से पानी छोड़े जाने के बाद माधोपुर बैराज के दो गेट टूट गए, जिससे रावी नदी में बाढ़ आ गई और आस-पास के इलाके जलमग्न हो गए।

3. शासन की असफलताएं और समन्वय की कमी
जल संसाधनों के प्रबंधन में प्रशासनिक लापरवाही, समय पर चेतावनी न देना, और राहत योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन न होना भी बाढ़ के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर बांधों के जलस्तर की निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली बेहतर होती तो जान-माल का नुकसान कम किया जा सकता था।

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पंजाब में बाढ़ का इतिहास

1955 की पहली बड़ी बाढ़

पंजाब में बाढ़ की पहली दर्ज की गई बड़ी घटना 1955 में सामने आई थी। उस समय सतलुज और घग्गर नदियां उफान पर थीं। विशेष रूप से मालवा क्षेत्र को भारी नुकसान हुआ। गांवों में पानी भर गया, और फसलें तबाह हो गईं। यह बाढ़ राज्य के लिए एक चेतावनी थी कि भविष्य में यदि जल प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया गया, तो परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं।

1978 की बाढ़ में बांध बना जिम्मेदार

1978 में सतलुज नदी फिर बाढ़ का कारण बनी। इस बार भाखड़ा डैम से अचानक छोड़े गए पानी ने तबाही मचाई। लुधियाना, फिरोजपुर और कपूरथला जैसे औद्योगिक और कृषि क्षेत्रों में भारी नुकसान हुआ। बांध प्रबंधन और पूर्व चेतावनी प्रणाली की कमी ने हालात को और बिगाड़ा।

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1988 में सबसे भीषण त्रासदी

1988 की बाढ़ को पंजाब के इतिहास की सबसे भीषण बाढ़ माना जाता है। चार दिनों में 634 मिमी बारिश हुई, जिससे 600 से ज्यादा लोगों की जान गई और 34 लाख लोग प्रभावित हुए। करीब 9000 गांव पानी में डूब गए थे। हजारों एकड़ कृषि भूमि बर्बाद हो गई थी। यह आपदा जलवायु असंतुलन और मानव जनित कारणों की संयुक्त मार थी।

1993 में पहाड़ों से तबाही

1993 में सतलुज, रावी और घग्गर नदियां उफान पर थीं। बारिश इतनी तीव्र थी कि लैंडस्लाइड भी हुआ, जिससे पंजाब के ऊपरी क्षेत्रों में रेल और सड़क संपर्क टूट गया। 350 से 550 के करीब लोगों की जान गई और 12 लाख एकड़ खेती तबाह हुई। यह बाढ़ बताती है कि जलवायु के चरम रूप और ढांचागत कमजोरियां कितना बड़ा खतरा बन सकती हैं।

क्यों पंजाब बार-बार झेलता बाढ़ की मार

2019 में चेतावनी का संकेत

हाल की बाढ़ों में 2019 को भी अहम माना जाता है। रोपड़, फिरोजपुर और जालंधर जिलों के लगभग 300 गांव प्रभावित हुए थे। 1.7 लाख एकड़ जमीन बर्बाद हुई। यह बाढ़ एक संकेत थी कि अब भी राज्य तैयार नहीं है, और हर वर्ष मानसून में खतरे मंडराते रहते हैं।

2025 में इतिहास की पुनरावृत्ति

अब 2025 में फिर से बाढ़ का कहर पंजाब पर टूटा है। इस बार भी वही समस्याएं सामने हैं नदियों का उफान, बांधों से पानी का छोड़ा जाना, राहत योजनाओं का धीमा क्रियान्वयन और प्रभावित लोगों की बढ़ती पीड़ा। राज्य सरकार के अनुसार, अब तक 43 मौतें दर्ज की गई हैं और राहत एवं बचाव कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। एनडीआरएफ की टीमें बोट के जरिए ग्रामीण इलाकों से लोगों को निकाल रही हैं।

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क्या सिर्फ भारत का पंजाब है प्रभावित?

नहीं, यह संकट सिर्फ भारतीय पंजाब तक सीमित नहीं है। पाकिस्तान का पंजाब प्रांत भी इसी तरह की बाढ़ से जूझ रहा है। वहां भी 43 लोगों की मौत हुई है और 9 लाख से अधिक लोग बेघर हुए हैं। यह संकेत करता है कि यह क्षेत्र, जो ऐतिहासिक रूप से सिंचाई और कृषि का केंद्र रहा है, अब जलवायु परिवर्तन और अव्यवस्थित जल प्रबंधन के कारण आपदा का क्षेत्र बन गया है।

सरकार की कोशिशें और भविष्य की राह

राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों ने राहत पहुंचाने के लिए संसाधनों को सक्रिय कर दिया है। हेलीकॉप्टर और बोट के जरिए लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। राहत कैंप बनाए गए हैं जहां भोजन, पानी और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि सिर्फ राहत कार्यों से समाधान नहीं होगा। पंजाब में दीर्घकालिक बाढ़ प्रबंधन नीति, सतत जलप्रबंधन और मौसम आधारित चेतावनी प्रणाली को मजबूत करना जरूरी है। साथ ही, नदियों के आसपास के निर्माण कार्यों पर पुनर्विचार और पर्यावरणीय संतुलन की बहाली भी समय की मांग है।

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