

‘वोट चोरी’ के मामले में अब इलेक्शन कमीशन ऑफिसर के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की बात हो रही है। यह देश की राजनीति में एक बड़ा फैसला हो सकता है, जब मुख्य चुनाव आयुक्त के मामले में विपक्ष ‘महाभियोग प्रस्ताव’ का इस्तेमाल करेगा। मामला 65 लाख वोटरों से जुड़ा है। पढ़िए इस खास रिपोर्ट में पूरा मामला।
क्या है महाभियोग प्रस्ताव?
New Delhi: राहुल गांधी समेत सभी विपक्षी दलों ने हाल ही में आरोप लगाया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ने बिहार में 65 लाख वोटरों के नाम हटाने जैसी कार्रवाई में निष्पक्षता नहीं बरती। इस आधार पर विपक्ष CEC के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की बात कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि अगर CEC स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं रहेगा तो लोकतंत्र की नींव ही हिल जाएगी। यह देश की राजनीति में एक बड़ा फैसला हो सकता है, जब मुख्य चुनाव आयुक्त के मामले में विपक्ष 'महाभियोग प्रस्ताव' का इस्तेमाल करेगा।
क्या है महाभियोग प्रस्ताव?
महाभियोग प्रस्ताव एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से भारत में उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को उनके पद से हटाया जा सकता है, यदि वे अपने कर्तव्यों के निर्वहन में गंभीर कदाचार, पक्षपात, भ्रष्टाचार या अयोग्यता के दोषी पाए जाएं। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए लागू होती है, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) जैसे पदाधिकारियों को भी इसी प्रक्रिया के तहत हटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 324(5) के अनुसार, CEC को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जज की तरह ही महाभियोग की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस प्रस्ताव को संसद के किसी एक सदन में विशेष बहुमत से पारित करना होता है और इसके बाद राष्ट्रपति द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाता है। महाभियोग प्रस्ताव लोकतंत्र की उस बुनियादी व्यवस्था का हिस्सा है, जो सुनिश्चित करती है कि कोई भी संवैधानिक पदाधिकारी कानून से ऊपर नहीं है और उसकी जवाबदेही तय की जा सकती है।
किस अनुच्छेद के तहत आता ये प्रस्ताव
महाभियोग प्रस्ताव भारत के संविधान में उल्लेखित कुछ विशेष अनुच्छेदों के तहत लाया जाता है, जो उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे अधिकारियों को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया को निर्धारित करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया अनुच्छेद 124(4) और 124(5) के अंतर्गत आती है, जिसमें यह प्रावधान है कि उन्हें संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से पारित महाभियोग प्रस्ताव के माध्यम से हटाया जा सकता है। मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों को हटाने की प्रक्रिया भी इसी के अनुरूप होती है, जैसा कि अनुच्छेद 324(5) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया उसी प्रकार होगी, जैसी सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए निर्धारित की गई है। इस प्रकार इन अनुच्छेदों के तहत महाभियोग प्रस्ताव संवैधानिक पदों की जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक सशक्त माध्यम बनता है।
महाभियोग की प्रक्रिया कैसे होती है?
मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को हटाने की प्रक्रिया भारत के संविधान में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया के समान निर्धारित की गई है, जैसा कि अनुच्छेद 324(5) में उल्लेख है। इस प्रक्रिया की शुरुआत संसद के किसी भी एक सदन लोकसभा या राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस से होती है। इस नोटिस पर लोकसभा में कम से कम 50 और राज्यसभा में 100 सांसदों के हस्ताक्षर होने अनिवार्य होते हैं। नोटिस मिलने के बाद संबंधित सदन के सभापति (राज्यसभा) या अध्यक्ष (लोकसभा) यह तय करते हैं कि आरोपों की जांच जरूरी है या नहीं। यदि वे इसे स्वीकार कर लेते हैं तो एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया जाता है। जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश, एक हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित कानूनी विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
इसके बाद यह समिति आरोपों की गंभीरता और प्रमाणों की जांच करती है। यदि समिति अपनी रिपोर्ट में आरोपों को सही ठहराती है तो महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाता है। प्रस्ताव को पास करने के लिए प्रत्येक सदन में उपस्थित और मतदान कर रहे सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। यदि यह बहुमत मिल जाता है तो अंतिम निर्णय राष्ट्रपति के पास जाता है, जो इसके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटा सकते हैं।
क्या अब तक किसी CEC पर महाभियोग हुआ है?
अब तक भारत में किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है। यद्यपि समय-समय पर चुनाव आयोग की निष्पक्षता और कार्यशैली को लेकर राजनीतिक दलों द्वारा सवाल उठाए जाते रहे हैं, लेकिन किसी भी मामले में यह आरोप इतने ठोस या गंभीर स्तर तक नहीं पहुंचे कि संसद में औपचारिक रूप से महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सके। महाभियोग प्रक्रिया काफी जटिल और संवैधानिक रूप से गंभीर मानी जाती है। जिसमें पर्याप्त साक्ष्य, संसदीय समर्थन और कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। ऐसे में राजनीतिक असहमति या आरोपों के आधार पर सिर्फ चर्चा जरूर होती है, लेकिन अब तक किसी CEC को इस प्रक्रिया के जरिए हटाने का कोई उदाहरण भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में नहीं दर्ज है।