डार्क ईगल की तैनाती: अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया में की पहली हाइपरसोनिक मिसाइल की तैनाती, चीन को मिला स्पष्ट संदेश

अमेरिका ने पहली बार अपनी लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली ‘डार्क ईगल’ को ऑस्ट्रेलिया में तैनात किया है। यह कदम हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य प्रभाव को संतुलित करने और सहयोगी देशों को सशक्त संदेश देने के उद्देश्य से उठाया गया है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 18 August 2025, 11:32 AM IST
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New Delhi: अमेरिका ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्षेत्र में अपने लंबी दूरी के हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम ‘डार्क ईगल’ की तैनाती कर एक बड़ा रणनीतिक कदम उठाया है। यह अमेरिका की इस मिसाइल प्रणाली की पहली विदेशी तैनाती है, जिसे टैलिसमैन सेबर सैन्य अभ्यास के दौरान ऑपरेशनल रूप से सक्रिय किया गया। इस कदम को अमेरिका ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य प्रभाव और क्षेत्रीय अस्थिरता के जवाब के रूप में उठाया है। यह न सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि, बल्कि चीन और रूस को दिया गया साफ और सशक्त सैन्य संदेश भी है।

क्या है डार्क ईगल?

डार्क ईगल (Dark Eagle) अमेरिका की एक उन्नत हाइपरसोनिक वेपन सिस्टम है, जिसे लॉन्ग रेंज हाइपरसोनिक वेपन (LRHW) भी कहा जाता है। यह प्रणाली मैक 5 (ध्वनि की गति से पांच गुना अधिक) से अधिक गति से उड़ान भर सकती है और लगभग 1,725 मील (लगभग 2,775 किलोमीटर) दूर तक सटीक प्रहार करने में सक्षम है।

इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएं

• चार मोबाइल लॉन्चर (प्रत्येक में दो मिसाइलें)
• कमांड और कंट्रोल वाहन, जो लक्ष्य निर्धारण और मिसाइल गाइडेंस में मदद करते हैं
• सपोर्ट वाहन, जो लॉजिस्टिक्स और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराते हैं
डार्क ईगल की सबसे खास बात यह है कि यह एंटी-एक्सेस/एरिया डिनायल (A2/AD) रणनीतियों को भेद सकती है। यह तकनीक चीन और रूस द्वारा बनाए गए उन क्षेत्रों में भी घुसपैठ कर सकती है, जिन्हें वे विदेशी सैन्य हस्तक्षेप से बचाने के लिए सुरक्षित मानते हैं।

क्यों खास है यह तैनाती?

यह तैनाती इसलिए विशेष मानी जा रही है क्योंकि यह डार्क ईगल की पहली विदेश तैनाती है। ऑस्ट्रेलिया का उत्तरी क्षेत्र रणनीतिक रूप से दक्षिण चीन सागर, ताइवान जलडमरूमध्य, और चीन के समुद्री ठिकानों के बेहद करीब है। इससे अमेरिका को चीन की पहुंच से बाहर रहते हुए भी ऑपरेशनल बढ़त मिलती है। यह अमेरिका के सहयोगी देशों ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत के बीच रणनीतिक भरोसे और सैन्य एकीकरण को भी दर्शाता है अमेरिकी रक्षा विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि यह तैनाती सिर्फ सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा में हमारे संकल्प और एकजुटता का प्रमाण है।

चीन और रूस के साथ हाइपरसोनिक प्रतिस्पर्धा

हाइपरसोनिक हथियार वर्तमान वैश्विक सैन्य प्रतिस्पर्धा का नया केंद्र बन चुके हैं। चीन ने 2019 में DF-17 मिसाइल लॉन्च की थी, जिसमें हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) शामिल है। वहीं, रूस ने अपनी Avangard प्रणाली को पहले ही तैनात कर दिया है, जो ICBM पर आधारित ग्लाइड व्हीकल है और परमाणु हथियार ढोने में सक्षम है। अमेरिका इस दौड़ में तकनीकी रूप से पीछे था, लेकिन डार्क ईगल की तैनाती से अब उसने यह अंतर काफी हद तक कम कर लिया है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, “हाइपरसोनिक हथियारों की क्षमता पारंपरिक डिफेंस सिस्टम को अप्रासंगिक बना सकती है।”

बीजिंग को स्पष्ट संदेश

ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्षेत्र से डार्क ईगल की पहुंच में दक्षिण चीन सागर, स्प्रैटली द्वीप समूह, और ताइवान तक के सभी संवेदनशील चीनी ठिकाने आते हैं। इससे अमेरिका को वह रणनीतिक गहराई मिलती है जो उसे बीजिंग को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है। चीन की A2/AD रणनीति का मकसद अमेरिकी या सहयोगी सेनाओं को उस क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकना है जिसे वह अपना प्रभाव क्षेत्र मानता है। लेकिन डार्क ईगल इन रणनीतियों को बेमानी बना सकता है। ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा विशेषज्ञ जेनिफर पार्कर कहती हैं, “यह तैनाती बीजिंग को यह संदेश देती है कि अमेरिका और उसके साझेदार पीछे हटने वाले नहीं हैं।”

सामरिक साझेदारी और AUKUS

डार्क ईगल की यह तैनाती AUKUS गठबंधन (ऑस्ट्रेलिया, यूके, यूएस) के बढ़ते सैन्य सहयोग का भी प्रतीक है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच यह समझौता न केवल पनडुब्बी सहयोग, बल्कि उच्च तकनीकी सैन्य उपकरणों की साझेदारी को भी आगे बढ़ा रहा है। इस तैनाती से यह साफ है कि अमेरिका अपने सहयोगी देशों के भूभाग का उपयोग कर, चीन पर रणनीतिक दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। यह हिंद-प्रशांत में अमेरिका की आक्रामक-रक्षात्मक सैन्य नीति की शुरुआत मानी जा रही है।

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