

सुप्रीम कोर्ट के आवारा कुत्तों को दिल्ली-एनसीआर से हटाने के आदेश पर CJI बीआर गवई ने पुनर्विचार का संकेत दिया है। राजनीतिक, सामाजिक और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस आदेश की व्यवहार्यता और मानवीय पहलुओं पर सवाल उठाए हैं।
Supreme Court
New Delhi: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ की जगह अब वर्तमान CJI बीआर गवई ने बुधवार को दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर पुनर्विचार का संकेत दिया है। यह टिप्पणी उन्होंने कॉन्फ्रेंस फॉर ह्यूमन राइट्स (इंडिया) की याचिका पर सुनवाई के दौरान की है।
देश में तेजी से उठ रहा मुद्दा
NGO की सचिव ननीता शर्मा ने मामले की जल्द सुनवाई की मांग की, जिसमें उन्होंने 2024 में जस्टिस जे.के. माहेश्वरी की बेंच के आदेश का हवाला दिया। उस आदेश में साफ कहा गया था कि कुत्तों की अंधाधुंध हत्या नहीं हो सकती और संवेदनशीलता बनाए रखना संवैधानिक मूल्य है। ननीता शर्मा ने दलील दी कि 11 अगस्त 2025 को जस्टिस पारदीवाला की बेंच ने 8 हफ्तों के भीतर सभी आवारा कुत्तों को दिल्ली-एनसीआर के आवासीय इलाकों से हटाकर शेल्टर होम में भेजने का आदेश दे दिया, जो पिछले आदेश के विपरीत है।
CJI गवई ने क्या कहा?
सुनवाई के दौरान CJI ने कहा, "समझ गया…मैं देखूंगा।" उन्होंने संकेत दिया कि इस मामले पर फिर से विचार हो सकता है। कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि आदेश में किसी तरह की बाधा डालने वालों पर कानूनी कार्रवाई होगी।
क्या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई को खुद संज्ञान लेते हुए कहा था कि देश में डॉग बाइट्स और रेबीज के मामले चिंताजनक स्तर पर हैं। लोकसभा में सरकार ने बताया था कि 2024 में 37 लाख से अधिक डॉग बाइट के मामले और 54 रेबीज से मौत के मामले दर्ज हुए। दिल्ली में 30 जून को छह साल की छवि शर्मा की मौत ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया था।
सियासत गरमाई, देश में बढ़ रहा विवाद
इस आदेश के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों से कई तरह की प्रतिक्रियाएं आई। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सुझाव दिया कि कुत्तों के प्रबंधन के लिए मिलने वाला फंड नगर निगमों की बजाय सीधे भरोसेमंद एनजीओ और पशु कल्याण संस्थाओं को दिया जाए, ताकि बेहतर परिणाम मिलें। राहुल गांधी ने इस फैसले को दशकों पुरानी मानवीय और वैज्ञानिक नीति से पीछे जाने वाला कदम बताया। प्रियंका गांधी ने भी उनके बयान का समर्थन किया।