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सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी में बच्चों की तस्करी का मामला उठाने पर नौकरी से निकाले गए स्वीपर पिंकी और उसके पति को 55 मिनट के अंदर बहाल करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कॉन्ट्रैक्टर और अधिकारियों की कार्रवाई को दमनकारी और अवैध करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी में म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के तहत कॉन्ट्रैक्टर के माध्यम से काम करने वाले दो स्वीपर पिंकी और उसके पति को तत्काल नौकरी पर वापस रखने का आदेश दिया है। अदालत ने यह आदेश उनकी उस याचिका पर संज्ञान लेते हुए दिया, जिसमें उन्होंने राज्य में बच्चों की तस्करी से जुड़े गंभीर आरोप लगाए थे। याचिका का संज्ञान लेते ही दोनों को कॉन्ट्रैक्टर द्वारा नौकरी से बाहर कर दिया गया था, जिस पर अदालत ने कड़ी नाराज़गी दिखाई।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि एमिकस क्यूरी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट “चौंकाने वाली और निराशाजनक” है। अदालत को बताया गया कि जैसे ही कोर्ट ने पिंकी और उसके पति की याचिका पर संज्ञान लिया, दोनों को नौकरी से बाहर कर दिया गया। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है। आपने उन्हें इसलिए निकाला क्योंकि वे कोर्ट में आए? यह संविधानिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। उन्हें तुरंत काम पर बहाल किया जाए, नहीं तो जिम्मेदार अधिकारी पर कार्रवाई होगी।
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पिंकी और उसके पति म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में स्वीपर के रूप में काम करते थे। वे एक कॉन्ट्रैक्टर के अधीन नौकरी कर रहे थे। अदालत के सामने प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, यह दंपती राज्य में बच्चों की तस्करी को लेकर एक बयान दर्ज कराने और याचिका प्रस्तुत करने कोर्ट आया था। जैसे ही मामला सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आया, कॉन्ट्रैक्टर ने उन्हें सेवा से हटा दिया। अदालत ने इसे बदले की कार्रवाई मानते हुए इसे गैरकानूनी और गैर-मानवीय करार दिया। इस कदम को कोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का भी प्रयास बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि आदेश का मिनट-टू-मिनट अनुपालन होना चाहिए। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि पिंकी और उसके पति को उसी पद और समान शर्तों पर बहाल किया जाए, जिन पर वे पहले काम कर रहे थे। कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि उन्हें वापस नहीं लिया गया, तो हम उस अथॉरिटी को निलंबित करने का आदेश देंगे जिसने ऐसा किया है। यह कोर्ट गरीबों के अधिकारों की रक्षा के लिए बैठी है, न कि शक्तिशाली लोगों की मनमानी का समर्थन करने के लिए।”
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एमिकस द्वारा दाखिल रिपोर्ट ने इस मामले को और गंभीर बना दिया। रिपोर्ट में बताया गया कि पिंकी और उसका पति एक साल से भी अधिक समय से विभाग में काम कर रहे थे, और दोनों मेहनती एवं नियमित कर्मचारी थे। लेकिन जैसे ही मामला बच्चों की तस्करी से जुड़ा कोर्ट तक पहुंचा, उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। एमिकस ने बताया कि जिस कॉन्ट्रैक्टर ने उन्हें निकाला, उसने किसी भी कानूनन प्रक्रिया का पालन नहीं किया, न कोई नोटिस दिया और न कोई सेवा रजिस्टर में कारण दर्ज किया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध और दमनकारी कदम कहा।
अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि भारत के नागरिकों को न्याय मांगने का संवैधानिक अधिकार है और किसी भी नियोक्ता या प्रशासन को यह अधिकार नहीं है कि वह इस अधिकार का प्रयोग करने पर किसी कर्मचारी को दंडित करे। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि न्यायालय में आना अपराध नहीं है। अगर कोई गरीब अदालत का दरवाज़ा खटखटाता है तो उसे सुरक्षा मिलनी चाहिए, प्रताड़ना नहीं।