सुप्रीम कोर्ट का आदेश बना चुनौती: कौन उठाएगा खर्चा और कहां रहेंगे दिल्ली के 10 लाख कुत्ते

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को हटाकर आठ हफ्तों में आश्रय स्थलों में भेजने का आदेश दिया है। लेकिन इस फैसले को लागू करना नगर निगमों के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि दिल्ली में करीब 10 लाख आवारा कुत्ते हैं, जबकि आश्रय स्थलों की संख्या बेहद सीमित है।

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 12 August 2025, 6:17 PM IST
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New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में बढ़ती आवारा कुत्तों की समस्या को गंभीरता से लेते हुए एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने आदेश दिया है कि सभी आवारा कुत्तों को आठ सप्ताह के भीतर रिहायशी इलाकों से हटाकर आश्रय स्थलों में रखा जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति जेडी पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने "जनहित" को प्राथमिकता देते हुए सुनाया।

लेकिन सवाल यह है कि क्या इस आदेश को व्यवहार में लाना संभव है? सड़कों से लाखों कुत्तों को हटाकर आश्रय स्थलों में रखना आसान नहीं है, क्योंकि इन कुत्तों की संख्या जितनी ज्यादा है, उतने संसाधन फिलहाल नगर निकायों के पास मौजूद नहीं हैं।

क्या कहता है आदेश?

  1. सभी आवारा कुत्तों को रिहायशी इलाकों से हटाकर सरकारी आश्रय स्थलों में रखा जाए।
  2. कोई भी व्यक्ति, संस्था या पशु प्रेमी इस प्रक्रिया में बाधा नहीं डाल सकता।
  3. आठ सप्ताह में नगर निकायों को इस पर कार्रवाई कर रिपोर्ट देनी होगी।
  4. आदेश का पालन नहीं करने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है।

दिल्ली में 10 लाख कुत्ते, लेकिन सिर्फ 20 केंद्र

वर्ष 2009 की जनगणना के अनुसार दिल्ली में 5.6 लाख आवारा कुत्ते थे। वर्ष 2025 तक यह आंकड़ा 10 लाख के करीब पहुंच चुका है। एमसीडी के पास सिर्फ 20 पशु नियंत्रण केंद्र हैं, जो नसबंदी और अल्पकालिक देखभाल के लिए हैं। यदि एक आश्रय में औसतन 500 कुत्ते रखे जा सकें तो कम से कम 2000 आश्रय स्थलों की जरूरत होगी। वर्तमान केंद्रों में अधिकतम 4,000 कुत्तों को ही रखा जा सकता है। यानी कुल जरूरत का 5% से भी कम।

सालाना 1000 करोड़ से ज्यादा का खर्चा

एक कुत्ते के भोजन, देखभाल और इलाज पर 30-50 रुपये प्रतिदिन खर्च होता है। 10 लाख कुत्तों पर सालाना खर्च हो सकता है 1000 करोड़ से ज्यादा। प्रशिक्षित स्टाफ, पशु चिकित्सक, वैन, सीसीटीवी और एम्बुलेंस जैसी व्यवस्था नहीं हैं।

जमकर हो रहा विरोध

Animal Birth Control Rules 2023 के अनुसार नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को वापस उसी इलाके में छोड़ना होता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश ABC नियमों के खिलाफ माना जा रहा है। पशु अधिकार संगठनों और रेस्क्यू वॉलंटियर्स ने कोर्ट के फैसले को "अमानवीय और अव्यावहारिक" बताया है। PETA, FIAPO और कई सेलेब्रिटीज ने सोशल मीडिया पर इसका विरोध किया है। एमसीडी स्थायी समिति के अध्यक्ष सत्य शर्मा ने कहा, "हम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं, लेकिन इतने बड़े स्तर पर आश्रय स्थल बनाना तत्काल संभव नहीं है। भूमि, धन और समय तीनों की भारी कमी है।" अब तक इस वर्ष दिल्ली में 26,000 डॉग बाइट केस और 49 रेबीज के मामले सामने आए हैं। अदालत का तर्क है कि "जनहित में यह आदेश जरूरी है। पशु प्रेमियों की भावनाएँ जनस्वास्थ्य से ऊपर नहीं हो सकतीं।" विरोधियों का कहना है कि अचानक विस्थापन से कुत्तों में हिंसक प्रवृत्ति, भूखमरी और सामाजिक तनाव पैदा होंगे।

अब आगे क्या?

नगर निकायों को 8 हफ्तों में एक्शन लेना है। लेकिन जमीन, बजट और कर्मचारियों की भारी कमी है। मामला एक तरफ लोगों की सुरक्षा से जुड़ा है, तो दूसरी तरफ पशु अधिकारों और मानवीयता का सवाल है। मध्य मार्ग निकलना ही इस आदेश को सफल बनाने की एकमात्र कुंजी हो सकती है।

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  • New Delhi

Published : 
  • 12 August 2025, 6:17 PM IST