Shibu Shoren: आदिवासियों को क्यों प्रिय थे शिबू शोरेन, जानिए उनके ‘दिशोम गुरु’ बनने की कहानी

झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और आदिवासियों की आवाज को देश में बुलंद करने वाले जननायक शिबू शोरेन का सोमवार को देहावसान हो गया। उनके निधन से झारखंड समेत पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई।

Post Published By: Jay Chauhan
Updated : 4 August 2025, 1:15 PM IST
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रांची: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, राज्यसभा सांसद और आदिवासियों की आवाज को बुलंद करने वाले नेता शिबू शोरेन अब इस संसार में नहीं रहे। उनके देहावसान पर पूरे देश में शोक की लहर है। झारखंड सरकार ने उनके निधन पर तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है।

आदिवासियों की जल, जंगल, जमीन की आवाज उठाने वाले अगुवा नेता ने दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल में सोमवार को 81 साल की उम्न में अंतिम सांस ली।

झामुमो के संस्थापक संरक्षक शिबू सोरेन एक ज़मीनी नेता थे। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) के बोकारो जिले के नेमरा गांव में हुआ। उन्होंने आदिवासियों, वंचितों, गरीबों की आवाज को, उनके हक हकूक की बात को देश के सामने रखा।

उनके संघर्षों के बदौलत ही साल 2000 में झारखंड को बिहार से अलग करके एक नया राज्य बनाया गया। यह राज्य 15 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया।

वे झारखंड के उन कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे जिन्होंने जीवन भर समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर आदिवासी समुदाय के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए संघर्ष किया। वे हमेशा जमीन और जनता से जुड़े रहे।

शिबू सोरेन से ‘दिशोम गुरु’ बनने की कहानी
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन बिहार (अब झारखंड) के बोकारो जिले के नेमरा गांव में हुआ। उन्होंने गांव के स्कूल से प्राथमिक शिक्षा ली।

महज 13 साल की उम्र के थे, जब उनके पिता की हत्या महाजनों ने कर दी। इसके बाद शिबू सोरेन ने पढ़ाई छोड़ दी और महाजनों के खिलाफ संघर्ष का फैसला किया।

पिता की हत्या के बाद उन्हें लगा कि पढ़ाई से ज्यादा जरूरी है महाजनों के खिलाफ आदिवासी समाज को इकट्‌ठा करना। उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ काम करना शुरू किया।

1970 में वे महाजनों के खिलाफ खुल कर सामने आए और धान कटनी आंदोलन की शुरुआत की। सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन चलाकर शिबू सोरेन चर्चा में आए, लेकिन महाजनों को अपना दुश्मन बना लिया।

शिबू को रास्ते से हटाने के लिए महाजनों ने भाड़े के लोग जुटाए। उन दिनों आदिवासियों को जागरूक करने के लिए शिबू सोरेन बाइक से गांव-गांव जाते थे। इसी दौरान एक बार उन्हें महाजनों के गुंडों ने घेर लिया। बारिश का मौसम था। बराकर नदी उफान पर थी। शिबू सोरेन समझ गए कि अब बचना मुश्किल है।

उन्होंने आव देखा न ताव, अपनी रफ्तार बढ़ाई और बाइक समेत नदी में छलांग लगा दी। सभी को लगा उनका मरना तय है, लेकिन थोड़ी देर बाद शिबू तैरते हुए नदी के दूसरे छोर पहुंच गए।

लोगों ने इसे दैवीय चमत्कार माना। आदिवासियों ने शिबू को ‘दिशोम गुरु’ कहना शुरू कर दिया। संथाली में दिशोम गुरु का अर्थ होता है देश का गुरु।

शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक संरक्षक थे। वह यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान कोयला मंत्री रह चुके थे।
हालांकि चिरूडीह हत्याकांड में नाम आने के बाद उन्होंने केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया था।

वे तीन बार (2005, 2008 और 2009) झारखंड के मुख्यमंत्री बने। उनके कार्यकाल के दौरान आदिवासी कल्याण योजनाओं और विकास कार्यों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया गया, हालांकि राजनीतिक अस्थिरता के कारण ये कार्यकाल लंबे समय तक नहीं चल सके।

उनके राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए। भ्रष्टाचार और हत्या जैसे गंभीर आरोप भी लगे, हालांकि कई मामलों में वे अदालत से बरी भी हुए। इसके बावजूद वे झारखंड की राजनीति में एक मजबूत जननेता के रूप में पहचाने जाते हैं।

1980 में शिबू सोरेन पहली बार लोकसभा सांसद बने। इसके बाद वे कई बार सांसद बने और संसद में आदिवासी समाज की समस्याओं को जोरदार तरीके से उठाया

उनके निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत कई दिग्गजों शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि उनके निधन से राजनीतिक जगत में अपूरणीय क्षति हुई है। उन्हें देश में आदिवासी समाज के बड़े नेता और झारखंड में अलग राज्य आंदोलन के अग्रदूत के रूप में  हमेशा याद किया जायेगा। देश को उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी।

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  • New Delhi

Published : 
  • 4 August 2025, 1:15 PM IST