

शहरी चकाचौंध से भरी दिल्ली की गर्म दोपहरी में लोग मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में लगे सरस मेले में जुट रहे हैं। ग्रामीण भारत के कौशल को प्रदर्शित करता यह मेला 22 सितंबर तक चलेगा। इस मेले में आपके लिए क्या खास है, इसका जायजा लिया डाइनामाइट न्यूज़ की टीम ने।
दिल्ली में लगा है सरस मेला
नई दिल्ली: दिल्ली के दिल यानी इंडिया गेट के सामने स्थित मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में इन दिनों एक अलग ही रौनक छाई हुई है। यह रौनक है सरस आजीविका मेला 2025 की, जो शहरी चकाचौंध के बीच भारत के गांवों की मिट्टी और उसकी खुशबू दिल्लीवासियों के लिए लेकर आया है।
भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की पहल पर लगा यह सरस मेला पहली बार दिल्ली में आयोजित हो रहा है। इससे पहले यह मेला हरियाणा के सूरजकुंड में लगता था, लेकिन यहां पहुंचे लोगों के मुताबिक, सूरजकुंड की तुलना में दिल्ली का यह मेला काफी अलग और अधिक विविधताओं से भरा है।
5 सितंबर को शुरू हुआ यह मेला 22 सितंबर तक चलेगा। आयोजक सुधीर कुमार सिंह ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया कि देश के 31 राज्यों के ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों की 400 से अधिक महिलाएं अपने उत्पादों की बिक्री के लिए 200 से अधिक रंग-बिरंगे स्टॉल लगाए हुए हैं। यहां हैंडीक्राफ्ट, हैंडलूम, लकड़ी आदि के बने सामान बिक्री के लिए रखे गए हैं और इनके दाम भी वाजिब हैं।
इस मेले में केवल प्रदर्शनी और साज-सज्जा ही नहीं है, बल्कि यह देश की अनगिनत ग्रामीण महिलाओं के हुनर और आत्मनिर्भरता की कहानी भी बयां कर रहा है।
मेले में कदम रखते ही आपको रंगों, लोक-परंपराओं और शिल्पों की दुनिया में प्रवेश करने का एहसास होता है। यहां गुजरात का पटोला, झारखंड का तसर, उत्तराखंड और हिमाचल के ऊनी उत्पाद, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की वुडक्राफ्ट जैसी कलाएं एक ही छत के नीचे देखने को मिलती हैं।
हर स्टॉल पर एक ‘लखपति दीदी’ मुस्कुराती हुई मिलती हैं, जो न सिर्फ अपने हाथों से बनाए सामान बेच रही हैं, बल्कि अपनी सफलता की कहानी भी साझा कर रही हैं। ये महिलाएं अपने स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सशक्त हुई हैं और अब ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों का चेहरा बन चुकी हैं।
इस सरस मेले की एक और खासियत यह है कि यह केवल कला और शिल्प तक सीमित नहीं है। यहां का सरस इंडिया फूड कोर्ट देश के हर राज्य के खास स्वाद की ओर खींच ले जाता है। बिहार की लिट्टी-चोखा से लेकर महाराष्ट्र की पूरन पोली, राजस्थान की दाल-बाटी-चूरमा से लेकर पंजाब के बटर चिकन और लस्सी तक, यहां देश के कोने-कोने का स्वाद मौजूद है। दिल्ली के लोग, जो आमतौर पर मॉल के फूड कोर्ट में फास्ट फूड खाते हैं, यहां आकर गांव के पारंपरिक और स्वादिष्ट व्यंजनों का मजा लेते दिख रहे हैं।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता ने मेला देखने आई एक युवती से बात की। उन्होंने बताया, “यहां का खाना बिल्कुल हाइजीनिक है। मैं राजस्थान की रहने वाली हूं और मैंने यहां जयपुर के स्टॉल से एक रजवाड़ी थाली ऑर्डर की है, जिसमें दाल-बाटी-चूरमा और गोंद का लड्डू मिला है। इसका स्वाद बिल्कुल राजस्थान में मिलने वाले खाने जैसा है।” इसी तरह असम से आए एक महिला उद्यमी ने कहा, “असम के खाने को दिल्ली के लोग खूब पसंद कर रहे हैं।”
सरस मेले की शामें और भी खास होती हैं, जब विभिन्न राज्यों के लोक कलाकार अपनी कला का जादू बिखेरते हैं। राजस्थान के कालबेलिया नृत्य से लेकर असम के बिहू, पंजाब के गिद्दा से लेकर केरल के कथकली तक—हर दिन एक नया रंग देखने को मिलता है। ये सांस्कृतिक कार्यक्रम न केवल मनोरंजन करते हैं, बल्कि भारत की समृद्ध और विविध विरासत को भी मंच देते हैं।
सरस मेला 2025 दिल्लीवासियों के लिए एक अनूठा अनुभव है। यह एक ऐसा मंच है, जहां संस्कृति, कला, स्वाद और उद्यमिता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। जैसा कहा जाता है कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है, उसी तरह यह मेला भारत के दूर-दराज गांवों की महिलाओं को सशक्त बनाने की कहानी बयां करता है और दिल्लीवासियों को अपनी जड़ों से जुड़ने का अनोखा अवसर देता है।