PM मोदी 524 साल पुराने मंदिर का करेंगे उद्घाटन, जानिए कहां है माता रानी का सबसे प्राचीन मंदिर

त्रिपुरा के ऐतिहासिक त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पुनर्निर्मित स्वरूप का उद्घाटन आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। यह मंदिर 524 वर्ष पुराना है और 51 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में देवी माता का सबसे प्राचीन मंदिर कौन-सा है?

Post Published By: Nidhi Kushwaha
Updated : 22 September 2025, 2:30 PM IST
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Agartala: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज त्रिपुरा के गोमती जिले स्थित 524 साल पुराने त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पुनर्विकसित स्वरूप का भव्य उद्घाटन करेंगे। यह मंदिर न केवल उत्तर-पूर्व भारत की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि पूरे भारतवर्ष में देवी उपासना का एक प्रमुख केंद्र भी है। माना जाता है कि यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां देवी सती के चरण गिरे थे, इसलिए इसे "कुर्भपीठ" भी कहा जाता है।

किसने करवाया था निर्माण?

त्रिपुर सुंदरी मंदिर का निर्माण महाराजा धन्या माणिक्य द्वारा वर्ष 1501 में करवाया गया था। यह मंदिर उदयपुर में स्थित है और तांत्रिक साधना के लिए भी यह विशेष महत्व रखता है। वर्तमान में मंदिर को आधुनिक सुविधाओं से युक्त करते हुए पुनः विकसित किया गया है, जिससे यह धार्मिक पर्यटन का भी केंद्र बनता जा रहा है।

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माता रानी का सबसे प्राचीन मंदिर कहां है?

इस सवाल का उत्तर आपको बिहार के कैमूर जिले की मुंडेश्वरी पहाड़ी पर मिलेगा, जहां स्थित है दुनिया का सबसे प्राचीन जीवित देवी मंदिर,  माता मुंडेश्वरी देवी मंदिर। मुंडेश्वरी मंदिर समुद्र तल से लगभग 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, यह मंदिर दुनिया का सबसे प्राचीन जीवित मंदिर है, जहां आज भी निरंतर पूजा-अर्चना हो रही है। इतिहासकारों के अनुसार, इसका निर्माण 108 ईस्वी के आसपास हुआ था।

यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि प्राचीन भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का जीता-जागता उदाहरण है। यहां मिले ब्राह्मी लिपि में लिखे शिलालेख, गुप्तकालीन स्थापत्य शैली और पुरातत्वीय सामग्री इसकी ऐतिहासिकता को प्रमाणित करते हैं।

द्वितीय वास्तुकला और पंचमुखी शिवलिंग

मुंडेश्वरी मंदिर की सबसे खास बात इसकी अष्टकोणीय संरचना है, जो भारत में बहुत ही दुर्लभ है। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं की नक्काशीदार मूर्तियां, प्रवेश द्वार पर बनी गंगा-यमुना की आकृतियां और गर्भगृह में स्थापित पंचमुखी शिवलिंग इसे विशेष बनाते हैं। पंचमुखी शिवलिंग की यह प्रतिमा दिन में तीन बार रंग बदलती है। यानी की सुबह हलका सफेद, दोपहर में धूप के अनुसार पीला और शाम को गहरा भूरा रंग। यह रहस्य आज भी वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बना हुआ है।

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माता मुंडेश्वरी की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस क्षेत्र में चंड-मुंड नामक असुर उत्पात मचा रहे थे। तब देवी ने अवतार लेकर उनका वध किया। मुंड नामक असुर इसी पहाड़ी में छिपा था और माता ने यहीं उसका संहार किया। इसी घटना के बाद देवी को मुंडेश्वरी कहा जाने लगा। गर्भगृह में आज भी देवी वाराही के स्वरूप में विराजमान हैं, जिनका वाहन महिष है।

इतिहास से जुड़ा श्रीलंका का संबंध

यहां से प्राप्त एक दुर्लभ मुद्रा पर श्रीलंका के राजा दुत्तगामनी का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने ईसा पूर्व 101 से 77 तक शासन किया था। इससे इतिहासकारों को यह संकेत मिलता है कि मंदिर का इतिहास शककाल या उससे भी पहले का हो सकता है। मंदिर का उल्लेख मार्कण्डेय पुराण में भी मिलता है, जो इसकी आध्यात्मिक महत्ता को और भी प्रबल बनाता है।

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