

जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद देश के नए उपराष्ट्रपति को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। सत्ता पक्ष यानी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब इस महत्त्वपूर्ण संवैधानिक पद पर मूल विचारधारा से जुड़े वरिष्ठ नेता को बैठाने की रणनीति पर विचार कर रही है।
नए उपराष्ट्रपति की खोज में BJP (सोर्स इंटरनेट)
New Delhi: जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद देश के नए उपराष्ट्रपति को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। सत्ता पक्ष यानी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब इस महत्त्वपूर्ण संवैधानिक पद पर मूल विचारधारा से जुड़े वरिष्ठ नेता को बैठाने की रणनीति पर विचार कर रही है। पार्टी के अंदर गहन मंथन शुरू हो चुका है और संकेत मिल रहे हैं कि इस बार भाजपा कोर काडर या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ा व्यक्ति ही इस पद का प्रबल दावेदार हो सकता है।
भाजपा के सूत्रों के अनुसार, बीते वर्षों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जब दूसरे दलों से आए नेताओं ने पार्टी के लिए असहज स्थिति उत्पन्न कर दी। चाहे वह पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ हों या फिर पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक दोनों की पृष्ठभूमि भाजपा की मूल विचारधारा से मेल नहीं खाती थी, और समय-समय पर उनके बयान या व्यवहार से सरकार को राजनीतिक दबाव झेलना पड़ा।
पार्टी नेतृत्व का रुझान अब उन चेहरों की ओर है, जो छात्र जीवन से ही भाजपा और संघ की विचारधारा में रचे-बसे हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं रेखा गुप्ता, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ये सभी नेता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़ाव रखने वाले हैं, और पार्टी के “अपने लोग” माने जाते हैं।
इसी परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए, उपराष्ट्रपति के लिए भी ऐसा चेहरा तलाशा जा रहा है जो न केवल विचारधारा में रचा-बसा हो, बल्कि संसदीय प्रक्रियाओं में दक्ष और अनुभवी भी हो। यह पद केवल प्रतीकात्मक नहीं है; राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति की भूमिका कानून निर्माण प्रक्रिया में अत्यंत निर्णायक होती है।
भाजपा नेतृत्व के भीतर यह चर्चा भी चल रही है कि नए उपराष्ट्रपति का चयन क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखकर किया जाए। दक्षिण भारत के कुछ दलों और भाजपा नेताओं ने मांग उठाई है कि अब इस पद पर दक्षिण भारतीय प्रतिनिधि को मौका मिलना चाहिए, जिससे पार्टी वहां अपनी राजनीतिक पकड़ और मजबूत कर सके।
इसके अलावा, एनडीए के सहयोगी दल जैसे कि तेलुगु देशम पार्टी (TDP) भी इस पद पर दावा ठोक सकते हैं। चूंकि हरिवंश नारायण सिंह पहले से ही जेडीयू कोटे से राज्यसभा के उपसभापति हैं, ऐसे में एनडीए के अंदर सत्ता संतुलन बनाए रखने की राजनीति भी नए समीकरण गढ़ रही है।
भाजपा नेतृत्व इस बार सतर्क है। हाल के वर्षों में सत्यपाल मलिक, सुब्रमण्यम स्वामी, और यहां तक कि धनखड़ जैसे नेताओं ने ऐसे बयान दिए जिन्होंने पार्टी लाइन से हटकर सरकार को घेरा। इन सबका राजनीतिक प्रभाव केवल अंदरूनी नुकसान नहीं, बल्कि लोकतंत्र के प्रमुख संस्थानों की साख पर भी असर डालने वाला रहा है। यही वजह है कि इस बार पार्टी नेतृत्व ऐसी गलती दोहराना नहीं चाहता।