मालेगांव ब्लास्ट: पीड़ित परिवारों ने न्याय से जताई निराशा, एनआईए अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में देंगे चुनौती

2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में Mumbai की NIA स्पेशल कोर्ट ने आरोपियों को बरी का फैसला सुनाया है। लेकिन विस्फोट में मारे गए छह व्यक्तियों के परिवारों ने अदालत की जांच प्रक्रिया और फैसले से असंतोष जताया है और उन्होंने बॉम्बे उच्च न्यायालय में इस निर्णय को चुनौती देने का निर्णय लिया है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 31 July 2025, 11:55 AM IST
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Maharashtra: एनआईए की विशेष अदालत मुंबई ने 31 जुलाई 2025 को साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, एवं अन्य पांच आरोपियों को उचित साक्ष्य नहीं होने के आधार पर बरी कर दिया। अदालत ने रोजगारपूर्वक जांच प्रक्रिया में सैंपल संदूषण, फॉरेंसिक दोष और UAPA उद्देश्यों के लिए मंजूर न किए गए आदेश की वजहों का हवाला दिया।

पीड़ित परिवारों का फैसला

विस्फोट के पीड़ित पक्ष ने अदालत के निर्णय से असहमति जताते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय में फैसले को चुनौती देने की बात की है। उनका कहना है कि कानून व्यवस्था व न्यायालय प्रक्रिया में की गई खामियाँ न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती हैं।

पीड़ित का परिवार फैसले से हताश

इस विस्फोट में सबसे ज़्यादा प्रभावित 75 वर्षीय निसार बिलाल हुए। जिन्होंने अपने 19 वर्षीय बेटे अज़हर को खो दिया। अज़हर उन छह लोगों में से एक था जिनकी 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में मौत हो गई थी। अज़हर हाफ़िज़ बनने के लिए कुरान की तिलावत कर रहा था और एक शुरुआती रेफ्रिजरेटर मैकेनिक के रूप में भी काम करता था। घर लौटते समय स्थानीय मस्जिद से रास्ता बदलने का फैसला करने के बाद मारा गया। रास्ता बदलना जानलेवा साबित हुआ, क्योंकि बम के उड़ते हुए छर्रे उसके शरीर में धंस गए और उसकी मौके पर ही मौत हो गई।

पीड़ित पिता की टूटी उम्मीद

इस विस्फोट में सबसे कम उम्र की पीड़िता के पिता 67 वर्षीय लियाकत शेख हैं। जो 10 वर्षीय फरहीन शेख के पिता हैं, जो नाश्ता खरीदने के लिए बाहर निकली थी। पिछले दो दशकों में शेख ने मुंबई की कई यात्राएं की हैं और अपनी बेटी के लिए न्याय की माँग करते हुए अनगिनत धरना-प्रदर्शनों में भाग लिया है।

पीड़ितों को मिलेगा मुआवजा

मालेगांव बम विस्फोट मामले में कोर्ट ने इस केस में आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत 7 लोगों को बरी कर दिया है। अदालत ने मृतकों के परिवार को 2 लाख रुपये और घायलों को 50 हजार रुपये मुआवजे का आदेश दिया है।

साबित नहीं हो सकी साजिश

29 सितंबर 2008 को रमजान के पवित्र महीने और नवरात्रि से ठीक पहले भीकू चौक, मालेगांव में एक बम विस्फोट हुआ जिसमें 6 लोग मरे और 100 से अधिक घायल हुए। अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए एक लाख से अधिक पन्नों के दस्तावेज़ और 300 से अधिक गवाहों की गवाही स्वीकार की, लेकिन प्रमुख आरोप सिद्ध नहीं हो सके।

क्या सही प्रोसेस अपनाई गई?

यह मामला पहले महाराष्ट्र ATS द्वारा जांचा गया था, जिसे 2011 में NIA को सौंपा गया। 2016 में NIA ने चार्जशीट दाखिल की और कुछ आरोपों को खारिज कर दिया। अदालत ने आरोपितों की बरी के पीछे प्रोसेजरल त्रुटियाँ, उल्लेखित साक्ष्य का अपर्याप्त और UAPA संवैधानिक मंजूरी न होने जैसी कमियों को प्रमुख कारण बताया।

जानें कब और कैसे हुआ था धमाका

29 सितंबर 2008 को मालेगांव में भीकू चौक पर हुआ विस्फोट छह लोगों की जान ले गया और 101 से अधिक घायल हुए। इस मामले की प्रारंभिक जांच एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) ने संभाली। जिसमें आरोप लगाया गया कि 'अभिनव भारत' नामक संगठित गिरोह ने धमाके की साजिश रची। सबसे अहम सुराग एक मोटरसाइकिल से मिला, जो कथित रूप से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर दर्ज थी। आजादी के 17 साल बाद इस घटना के सभी पहलुओं का विश्लेषण न्यायिक प्रक्रिया में सामने आया है।

इन लोगों की हुई थी मौत

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में भिखु चौक पर रात लगभग 9:35 बजे एक दोपहिया वाहन (मोटरसाइकिल) में विस्फोट हुआ। इस धमाके में छह लोगों की मौत हुई और 101 से अधिक लोग घायल हुए। मृतकों में फरहीन उर्फ शगुफ्ता शेख लियाकत, शेख मुश्ताक यूसुफ, शेख रफीक मुस्तफा, इरफान जियाउल्लाह खान, सैयद अजहर सैयद निसार और हारून शाह मोहम्मद शाह शामिल थे। प्रारंभ में स्थानीय पुलिस ने FIR दर्ज की, लेकिन बाद में यह मामला Anti-Terrorism Squad (ATS) को सौंप दिया गया। ATS को अस्थिरता, साजिश और खुफिया मामलों की जांच में विशेषज्ञ माना जाता है।

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