जानें कौन हैं बानू मुश्ताक: जो बनीं अंतरराष्ट्रीय बुकर जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका, महिलाओं की बनी आवाज

कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक ने 77 साल की उम्र में इतिहास रचते हुए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता है। उनका लघुकथा संग्रह “हार्ट लैंप”, जिसे अंग्रेज़ी में दीपा भाष्थी ने अनूदित किया, इस सम्मान के लिए चुना गया। यह पुरस्कार उन्होंने न केवल लेखन में उत्कृष्टता के लिए जीता, बल्कि महिला अधिकारों, जातीय और सामाजिक उत्पीड़न जैसे मुद्दों को मुखर रूप से उठाने के लिए भी उनकी भूमिका को पहचान दिलाता है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 29 August 2025, 1:08 PM IST
google-preferred

New Delhi: कर्नाटक की जानी-मानी कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक ने 77 वर्ष की उम्र में अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतकर न केवल अपने राज्य, बल्कि पूरे भारत को गौरवान्वित कर दिया है। यह सम्मान उन्हें उनकी चर्चित पुस्तक "हार्ट लैंप" के लिए मिला, जिसे दीपा भाष्थी ने अंग्रेज़ी में अनूदित किया है। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को जीतने वाली वह पहली कन्नड़ लेखिका बन गई हैं।

अंतरराष्ट्रीय पहचान पाने वाली दूसरी भारतीय कृति

बानू मुश्ताक की यह ऐतिहासिक उपलब्धि भारत के लिए दूसरी बार है जब किसी भारतीय कृति को इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ से नवाज़ा गया है। इससे पहले 2022 में गीतांजलि श्री की हिंदी उपन्यास "रेत समाधि" (Tomb of Sand) को यह सम्मान मिला था। लेकिन बानू की जीत इसलिए भी खास है क्योंकि यह कन्नड़ साहित्य की पहली ऐसी प्रतिनिधि रचना है जिसे विश्व स्तर पर इतनी बड़ी पहचान मिली है।

जानें कौन हैं बानू मुश्ताक

 

"हजारों जुगनुओं की रोशनी"

इस उपलब्धि पर प्रतिक्रिया देते हुए बानू मुश्ताक ने कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे हजारों जुगनू एक ही आसमान को रोशन कर रहे हों- संक्षिप्त, शानदार और पूरी तरह से सामूहिक।” उनकी यह प्रतिक्रिया उनके लेखन की तरह ही गहराई और भावनात्मक अभिव्यक्ति से भरी हुई थी।

कहानी की शुरुआत

1950 के दशक में शिवमोगा की एक मुस्लिम लड़की के रूप में बानू मुश्ताक का दाखिला एक ईसाई मिशनरी स्कूल में हुआ। स्कूल प्रशासन उन्हें कन्नड़ माध्यम में पढ़ाने को तैयार नहीं था, लेकिन पिता की जिद पर यह संभव हुआ। शर्त रखी गई कि छह महीने में अगर वह कन्नड़ नहीं सीखती तो स्कूल छोड़ना होगा। लेकिन बानू ने इस चुनौती को कुछ ही दिनों में पार कर दिखाया। यहीं से उनकी भाषा की समझ और साहित्यिक सोच की नींव पड़ी।

कम उम्र में लेखन की शुरुआत

बानू ने मिडिल स्कूल में ही अपनी पहली कहानी लिखी थी। हालांकि उनकी पहली रचना 26 वर्ष की उम्र में प्रसिद्ध कन्नड़ पत्रिका प्रजामाता में प्रकाशित हुई। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी कहानियां जल्द ही कर्नाटक के साहित्यिक हलकों में चर्चित हो गईं।

प्रगतिशील आंदोलनों से प्रेरणा

उनकी कहानियों पर बंदया आंदोलन और अन्य प्रगतिशील साहित्यिक आंदोलनों का गहरा प्रभाव है। उन्होंने जाति, वर्ग और लिंग भेदभाव के खिलाफ लिखना शुरू किया। सामाजिक बदलाव और हाशिए पर खड़े लोगों की पीड़ा उनकी लेखनी का मुख्य विषय रही। उन्होंने पितृसत्तात्मक समाज की आलोचना की, न केवल शब्दों में बल्कि जीवन में भी उन्होंने अपनी मर्जी से शादी की और सामाजिक दायरों को तोड़ा।

महिलाओं के अधिकारों की आवाज

बानू मुश्ताक सिर्फ लेखिका नहीं, बल्कि एक कानूनी जागरूकता रखने वाली कार्यकर्ता भी रहीं। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई, धर्म और समाज द्वारा लगाए गए बंधनों की आलोचना की और महिलाओं के साथ होने वाली प्रणालीगत क्रूरता को चुनौती दी। वह कहती हैं कि समाज अक्सर महिलाओं से बिना सवाल पूछे आज्ञाकारिता की मांग करता है, और इसी पर वह लगातार सवाल उठाती हैं।

‘हार्ट लैंप’

"हार्ट लैंप" में कुल 12 कहानियां हैं, जो 1990 से 2023 के बीच लिखी गईं। ये कहानियां महिला जीवन, जातिगत उत्पीड़न, धार्मिक असहिष्णुता और सत्ता के दमन जैसे मुद्दों को बेहद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती हैं। यही वजह है कि इस पुस्तक को न केवल साहित्यिक बल्कि सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जा रहा है।

अन्य प्रमुख रचनाएं

बानू मुश्ताक अब तक छह लघुकथा संग्रह, एक उपन्यास, एक निबंध संग्रह और एक कविता संग्रह प्रकाशित कर चुकी हैं। उनकी पहली पांच लघुकथाएं 2013 में ‘हसीना मट्टू इथारा कथेगलु’ में संकलित हुई थीं। 2023 में उन्होंने ‘हेन्नू हदीना स्वयंवर’ नामक एक और संग्रह प्रकाशित किया।

सम्मान और पुरस्कार

बानू को पहले भी कई सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है, जिनमें कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार और दाना चिंतामणि अत्तिमाबे सम्मान प्रमुख हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बुकर उनकी अब तक की सबसे बड़ी पहचान बन गई है।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 29 August 2025, 1:08 PM IST

Related News

No related posts found.