Karwa Chauth 2025: चांद की पूजा ही क्यों? सूरज और तारों की क्यों नहीं?

उत्तर भारत में खासतौर पर विवाहित महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाला एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है। इसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए बड़े श्रद्धा भाव से करती हैं।

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 7 October 2025, 4:00 AM IST
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New Delhi: उत्तर भारत में खासतौर पर विवाहित महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाला एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है। इसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए बड़े श्रद्धा भाव से करती हैं। इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं, दिनभर अन्न-जल का त्याग करती हैं, मेहंदी लगाती हैं, करवा माता की पूजा करती हैं, और फिर रात के समय चांद के निकलने के बाद व्रत खोलती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि करवाचौथ के व्रत में केवल चांद की ही पूजा क्यों की जाती है और सूरज या तारों की पूजा क्यों नहीं की जाती? आइए, जानते हैं इस सवाल का उत्तर।

चंद्रमा का दिव्य और शुभ प्रतीकात्मक महत्व

हिंदू धर्म में चंद्रमा को एक दिव्य शक्ति के रूप में माना गया है। चंद्रमा मन की शांति, सुकून और स्थिरता का प्रतीक होता है। जब महिलाएं करवा चौथ के दिन व्रत रखती हैं, तो उनका उद्देश्य चंद्रमा की शांति और आंतरिक सौम्यता की प्रार्थना करना होता है। चंद्रमा की पूजा से न केवल महिला को बल्कि पूरे परिवार को आंतरिक शांति और सुख मिलता है।

इसके अलावा चंद्रमा का संबंध वैवाहिक जीवन और सौभाग्य से भी है। करवा चौथ का यह व्रत पति की लंबी उम्र और परिवार में सुख-समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है। हिंदू परंपराओं में चंद्रमा को अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, और इसलिए महिलाएं चंद्रमा को देखकर अपना व्रत खोलती हैं।

सूरज की पूजा क्यों नहीं होती?

सूर्य को हिंदू धर्म में शक्तिशाली देवता के रूप में पूजा जाता है। हालांकि, करवाचौथ के दौरान सूर्य की पूजा नहीं की जाती, इसका एक खास कारण है। दरअसल, करवाचौथ का व्रत सूर्योदय से शुरू होता है, और पूरे दिन का उपवास रखकर महिलाएं रात को चांद को देखकर व्रत तोड़ती हैं।

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अगर सूरज की पूजा की जाती, तो यह व्रत की प्रक्रिया के उलट होता, क्योंकि सूर्यास्त के समय सूर्य की पूजा करना व्रत की शुरुआत को ही नकारता। इसलिए, सूरज की पूजा को छोड़कर चांद की पूजा करना ही इस व्रत की परंपरा और विधि के अनुरूप होता है।

चंद्रमा और तारों का संबंध

करवाचौथ का व्रत पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन में सुख और शांति लाने के लिए किया जाता है। चंद्रमा के साथ ही महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना करती हैं, इसलिए इस व्रत का तारों से कोई सीधा संबंध नहीं होता। तारों की पूजा का इस व्रत में कोई महत्व नहीं है, जबकि चंद्रमा ही एक ऐसा प्रतीक है जो जीवन के चक्र और पुनर्जन्म से जुड़ा है, और इसलिए उसकी पूजा की जाती है।

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गणेश जी का श्राप और छलनी से चांद देखना

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश ने एक बार चंद्रमा को श्राप दे दिया था। भगवान गणेश ने कहा था कि जो कोई भी चंद्रमा को सीधा देखेगा, वह कलंक और दोष का सामना करेगा। इस श्राप के कारण महिलाएं करवाचौथ के दिन चंद्रमा को छलनी से देखती हैं। छलनी से चांद देखने का उद्देश्य यह होता है कि चांद को बिना देखे ही उसका दर्शन किया जाए, जिससे उसका दोष न लगे और व्रति को कोई अपशकुन न हो।

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  • 7 October 2025, 4:00 AM IST