

भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर अपने गुप्त तहखानों, अद्भुत खजाने और रहस्यों के लिए प्रसिद्ध है। यह आस्था, परंपरा और समृद्धि का अनोखा संगम है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
पद्मनाभस्वामी मंदिर
Kerala: भारत के मंदिर न केवल भक्ति का केंद्र हैं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी अहम योगदान करते हैं। हर साल करोड़ों भक्त मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाते हैं, जिसमें नकद राशि से लेकर सोने, चांदी, हीरे-जवाहरात तक शामिल होते हैं। यही धार्मिक आस्था का आर्थिक पक्ष भारत में धर्म का अर्थशास्त्र कहलाता है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, भारत के सबसे अमीर मंदिर की बात करें तो केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर शीर्ष पर आता है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार पद्मनाभस्वामी को समर्पित है। यहां भक्तों द्वारा हर साल करीब 500 करोड़ रुपये का चढ़ावा चढ़ाया जाता है।
120,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति
पद्मनाभस्वामी मंदिर की कुल अनुमानित संपत्ति ₹1.2 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक है, जिससे यह दुनिया का सबसे अमीर मंदिर बन गया है। मंदिर की यह संपत्ति गुप्त तहखानों में छिपे बेशकीमती खजानों के कारण और अधिक चर्चित हो गई है।
गुप्त तहखानों से निकला अनमोल खजाना
वर्ष 2011 में मंदिर तब सुर्खियों में आया जब इसके 6 गुप्त तहखानों के दरवाजे खोले गए। इनसे निकले खजाने में बड़ी मात्रा में सोने की मूर्तियां, हीरे-जवाहरात, चांदी के सिक्के और बेशकीमती आभूषण शामिल थे, जिनकी कुल कीमत लगभग 20 अरब डॉलर (₹1.6 लाख करोड़) आंकी गई थी।
अब भी बंद है ‘वॉल्ट बी’
मंदिर का सातवां तहखाना जिसे ‘वॉल्ट बी’ कहा जाता है। आज तक नहीं खोला गया है। इस दरवाजे को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं और रहस्य जुड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस तहखाने को खोलने की अनुमति नहीं दी है। ऐसा माना जाता है कि इसमें सबसे ज्यादा खजाना हो सकता है।
त्रावणकोर राजपरिवार के हाथों में मंदिर की देखरेख
पद्मनाभस्वामी मंदिर की प्राचीन परंपरा के अनुसार, इसकी देखरेख त्रावणकोर के शाही परिवार द्वारा की जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी 2020 में एक ऐतिहासिक फैसले में राजपरिवार के अधिकार को बहाल रखा, जिससे मंदिर की परंपरा और संस्कृति की रक्षा सुनिश्चित हुई।
धार्मिक आस्था का आर्थिक रूप
मंदिर की कमाई में दर्शन टिकट, चढ़ावा और भगवान को चढ़ाए गए प्रसाद का योगदान होता है। यह मंदिर सिर्फ भक्ति का स्थल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत का भी प्रतीक बन चुका है।