

दिल्ली सरकार ने इस दीपावली पर ग्रीन पटाखों को जलाने की अनुमति दी है। ये पटाखे पारंपरिक पटाखों की तुलना में कम प्रदूषण फैलाते हैं और ध्वनि प्रदूषण भी घटाते हैं। इनका निर्माण ऐसे रसायनों से होता है जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं।
कितने सुरक्षित हैं ग्रीन पटाखे?
New Delhi: दीपावली का त्योहार खुशी और रोशनी का प्रतीक है, लेकिन पारंपरिक पटाखों के जलने से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। तेज आवाज वाले पटाखे सिर्फ धुआँ और प्रदूषण फैलाते ही नहीं हैं, बल्कि हृदय रोगियों, बच्चों और पक्षियों के लिए भी खतरा पैदा करते हैं।
दिल्ली सरकार ने इस बार ग्रीन पटाखों को जलाने की अनुमति दी है, ताकि त्योहार का आनंद लेते हुए पर्यावरण को कम नुकसान पहुँच सके।
सामान्य पटाखों में कई प्रकार के रसायन और मिश्रण होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
ग्रीन पटाखे कैसे बनते हैं?
ये रसायन जलने पर जहरीली गैसें छोड़ते हैं, जिससे हवा की गुणवत्ता (Air Quality Index) तेजी से गिरती है। दीपावली के समय लाखों लोग पटाखे जलाते हैं, जिससे हवा लंबे समय तक धुएं और जहरीली गैसों से भर जाती है। ठंड और कोहरे के मौसम में यह प्रभाव और गंभीर हो जाता है।
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तेज आवाज वाले पटाखे ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं और हृदय रोग, फेफड़ों और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। ऐसे में ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए लाभकारी साबित होता है।
हालांकि ग्रीन पटाखे पारंपरिक पटाखों से महंगे होते हैं, लेकिन पर्यावरण और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से ये बेहतर और जिम्मेदार विकल्प हैं।
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