

भारत ने रूस से अपील की थी कि वह पाकिस्तान को JF-17 फाइटर जेट के लिए जरूरी इंजन न बेचे, लेकिन पुतिन सरकार ने भारत की इस मांग को नजरअंदाज कर दिया। इससे भारत-रूस रिश्तों में दरार आने की आशंका है। क्या रूस अब चीन और पाकिस्तान के खेमे की ओर झुक रहा है?
पुतिन और मोदी
New Delhi: भारत और रूस दशकों से एक-दूसरे के रणनीतिक साझेदार रहे हैं। शीत युद्ध के दौर से लेकर आज तक, रक्षा, ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्रों में दोनों देशों के संबंध घनिष्ठ रहे हैं। लेकिन हाल ही में सामने आई एक खबर ने इन संबंधों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस पाकिस्तान को JF-17 थंडर फाइटर जेट के लिए जरूरी इंजन की सप्लाई करने जा रहा है। यह वही इंजन है, जिसके लिए भारत ने रूस से आग्रह किया था कि इसे पाकिस्तान को न दिया जाए।
‘डिफेंस सिक्योरिटी एशिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने रूस से यह अपील लंबे समय से की हुई थी कि वह पाकिस्तान को सीधे तौर पर Klimov RD-93 इंजन की सप्लाई न करे, जो JF-17 फाइटर जेट में इस्तेमाल होता है। भारत की आपत्ति का मुख्य कारण यह था कि पाकिस्तान इस इंजन की मदद से अपनी वायुसेना की ताकत बढ़ा सकता है, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन पैदा हो सकता है। हालांकि, अब यह साफ हो गया है कि रूस भारत की इस अपील को दरकिनार कर चुका है और पाकिस्तान को इंजन सप्लाई करने के अपने फैसले पर कायम है।
पुतिन और मोदी
JF-17 थंडर फाइटर जेट को चीन और पाकिस्तान ने मिलकर विकसित किया है। यह 4.5 जनरेशन का मल्टीरोल फाइटर जेट है, जिसकी क्षमता को अब और बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। पाकिस्तान पहले ही ब्लॉक I और ब्लॉक II संस्करणों का इस्तेमाल कर रहा है और अब ब्लॉक III की ओर बढ़ रहा है, जिसमें एडवांस एवियॉनिक्स, AESA रडार और बेहतर हथियार प्रणाली शामिल होंगी। इस लड़ाकू विमान का दिल Klimov RD-93 इंजन रूस से आता है और यही कारण है कि भारत ने रूस से इसे न देने की अपील की थी।
भारत की चिंता सिर्फ इंजन तक सीमित नहीं है। रूस का पाकिस्तान से सीधे रक्षा सहयोग बढ़ाना भारत को रणनीतिक रूप से असहज कर रहा है। व्लादिमीर पुतिन एक तरफ भारत के साथ ब्रिक्स एससीओ और रक्षा समझौतों के जरिए दोस्ती निभाते हैं, और दूसरी तरफ पाकिस्तान को सामरिक बढ़त देने वाले इंजन बेचते हैं। विशेषज्ञ इसे रूस की ‘डबल गेम पॉलिसी’ मान रहे हैं। जहां वह दोनों पक्षों के साथ रिश्ते बनाए रखते हुए अपने हित साधने की कोशिश कर रहा है।
चीन और पाकिस्तान का रक्षा सहयोग वर्षों पुराना है। पाकिस्तान की मिसाइल तकनीक हो या फाइटर जेट, अधिकतर हथियार प्रणालियों में चीन की मदद प्रमुख रही है। ऑपरेशन सिंधूर के दौरान भी रिपोर्ट्स सामने आई थीं कि चीन ने पाकिस्तान को खुफिया और तकनीकी मदद दी थी। अब यदि रूस भी चीन-पाक गठजोड़ में तकनीकी भागीदार बन जाता है तो भारत की सामरिक स्थिति पर असर पड़ना तय है।
भारत को अब इस घटनाक्रम को लेकर अपने रक्षा और कूटनीतिक कदमों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। एक ओर रूस से S-400 मिसाइल प्रणाली जैसे सौदे अब भी प्रगति पर हैं, दूसरी ओर पाकिस्तान को इंजन सप्लाई एक नई चुनौती के रूप में सामने आई है। भारत को इस समय अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाना होगा ताकि चीन-पाकिस्तान-रूस के संभावित त्रिकोणीय गठबंधन से उसका सामरिक संतुलन न बिगड़े।